मुख्यधारा प्रतिनिधि
पुरोला। आज आपको पुरोला के एक ऐसे वरिष्ठ पत्रकार की संघर्षों की हकीकत से रूबरू करवा रहे हैं, जो मुफलिसी में रहकर भी कभी अपने दायित्व से पीछे नहीं हटे और अपनी कलम की धार से 1994 से लगातार जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे हैं। कई बार जीवन में विकट परिस्थितियां भी हावी हुईं, लेकिन फिर भी उनकी कलम नहीं डिगमिगायी। यही कारण है कि उन्हें लखनऊ में वर्ष 2009 में उमेश डोभाल स्मृति युवा पत्रकारिता जैसा सम्मानीय और गौरवपूर्ण पुरस्कार से भी नवाजा गया।
हम बात कर रहे हैं पुरोला निवासी वरिष्ठ पत्रकार नीरज उत्तराखंडी की। उनकी लेखनी में वो बात है, जो समाज को सही राह दिखाने में हमेशा मददगार साबित हुई है। यही नहीं वह पत्रकारिता के शुरुआत से ही निष्पक्ष सेवा भाव के साथ जनहित के मुद्दों को उठाने से कभी पीछे नहीं हटे। यही नहीं आज जब प्रदेश में स्वरोजगार की बात हो रही है, ऐसे में पत्रकारिता के साथ-साथ उन्होंने कुछ साल पहले ही इसकी शुरुआत कर दी थी और आज उन्होंने बागवानी की एक मिसाल पेश की है, जो न केवल उनकी आर्थिकी संवारेगी, बल्कि काम से जी चुराने वाले युवाओं के लिए भी प्रेरणादायक के रूप में काम करेगी।
तो आइए आपको सीधे वरिष्ठ पत्रकार नीरज उत्तराखंडी की जुबानी ही उनकी संघर्षभरी पत्रिकारिता से रूबरू करवाते हैं:-
आज आपको अपने संघर्षों की हकीकत बयां करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है। कहते हैं कि दुख बांटने से कम होता है और सुख बांटने से बढ़ता है। तो क्यों न सुख के इन सुखद पलों को आपके साथ बांटकर दोगुना किया जाए।
साथियों 1994 से मैंने पत्रकारिता शुरू की। जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र के सदर बाजार चकराता से जौनसार बावर का पहला समाचार पत्र ‘जौनसार मेल’ से संपादक नारायण दत्त जोशी जी के सानिध्य और आशीर्वाद में पत्रकारिता की शुरुआत की। इस बीच सहिया बाजार से अमर उजाला के पत्रकार संदीप चौधरी, चकराता से दैनिक जागरण के पत्रकार खजान निराला से पत्रकारिता में रिपोर्टिंग करना सीखा।
इसी दौरान रवांई घाटी पुरोला से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र रवांई मेल पत्र के सम्पादक राजेंद्र असवाल से सम्पर्क हुआ और उनके सानिध्य और आशीर्वाद में रिपोर्टिंग करने का अवसर मिला और एक खुला मंच मिला व लेख कविता और समाचार लिखने का बेहतरीन मौका भी।
उसके बाद जौनसार बावर के डाकपत्थर से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र गढ़ बैराट में भारत चौहान, उतराखण्ड की जानी मानी मासिक समाचार पत्रिकाओं पर्वतजन में शिव प्रसाद सेमवाल, गजेन्द्र रावत, अमेन्द्र बिष्ट, राजकुमार धीमान, युववाणी के संपादक कोठियाल जी के सानिध्य में पत्रकारिता के गुर सीखने का अवसर मिला और हमारे लेख पत्रिकाओं में छपने लगे।
इस बीच साप्ताहिक समाचार पत्र संडे पोस्ट सांध्य दैनिक वैली मेल, देहरादून टाइम्स, नूतन सवेरा में भी समाचार छपे, जिससे मेरा हौसला बढऩे लगा। उसके बाद विभिन्न पत्रिकाओं जैसे उतराखण्ड लाइव चंडीगढ़, उतराखण्ड स्वर, उतराखण्ड का सच, उतराखण्ड वाणी, विजन 2020, द नार्दन रिपोर्टर, रीजनल रिपोर्टर आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपने से हौसला बुलंद होता चला गया।
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इस बीच सुनील नव प्रभात के सहयोग से ईटीवी में संवाद सहयोगी के रूप काम करने का अवसर मिला। आज पंजाब केसरी, उतराखण्ड टाइम्स मे राजीव थपलियाल के आशीर्वाद से पुरोला से रिपोर्टिंग करने का अवसर मिल रहा है।
वर्ष 2009 में लखनऊ में उमेश डोभाल स्मृति युवा पत्रकारिता पुरस्कार, वर्ष 2011 में देहरादून में महुआ टीवी और विजन 2020 के सानिध्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खडूडी द्वारा पं. हरिशंकर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, पुरोला में बरफिया लाल जुवांठा स्मृति सम्मान से सम्मानित होने का सौभाग्य मिला और आज भी पत्रकारिता बदस्तूर जारी है।
साहित्य के क्षेत्र में उतराखण्ड के जाने माने युवा साहित्यकार महावीर रवांल्टा के सानिध्य, सहयोग एवं आशीर्वाद में काव्य संग्रह ‘रावण फिर से जाग उठा है’ का प्रकाशन हुआ। उन्हीं के आशीर्वाद से रवांई सांस्कृतिक समागम समारोह में कविता पाठ करने का अवसर भी मिला। यह सफर अभी भी जारी है। आप सबके सहयोग से आज भी संघर्षरत हूं।
पत्रकारिता क्षेत्र के अपने करीब 26-27 वर्षों के सफर में मैंने कभी स्वयं के लिए नहीं सोचा और हमेशा जन सरोकारों की पैरवी करता रहा। यही कारण रहा कि कई बार आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। कुछ साल पहले स्वरोजगार का विचार आया और पत्रकारिता के साथ ही अपनी पैतृक जगह पर सेब का बगीचा शुरू कर दिया। इस कार्य में मेरी धर्मपत्नी का भी मुझे भरपूर सहयोग किया। मैं ये कह सकता हूं कि यह काम उनके सहयोग के बिना सफल नहीं सकता था, लेकिन उन्होंने हमेशा मेरी हिम्मत को प्रोत्साहित करने का काम किया। यही कारण है कि आज हमारा सेब का बगीचा फल देने के लिए तैयार हो गया है।
हालांकि कृषि और बागवानी के क्षेत्र में आर्थिकी को मजबूत करने का हमारा यह एक छोटा सा प्रयास जरूर है, लेकिन यह बेरोजगार युवा यदि इस फार्मूले पर काम करें तो यह दूरगामी परिणाम दे सकता है। बशर्ते वे स्वरोजगार के साथ घुल-मिलकर इसी के साथ जीने को राजी हो सकें।
नीरज उत्तराखंडी अंत में पुरोला में अपने वरिष्ठ सहयोगियों जगमोहन पोखरियाल, राधे कृष्ण उनियाल, अनिल असवाल, बलदेव भंडारी, वीरेन्द्र चौहान, सचिन नौटियाल, मनमोहन सिंह चौहान, चन्द्र भूषण बिजल्वाण, चन्द्र मोहन नौडियाल, विक्रम रावत आदि का नाम लेना नहीं भूले, जो उन्हें हमेशा प्रेरित करते रहते हैं।
#Mukhyadhara Team स्वरोजगार की राह पर चलकर आजीविका को सृजित करने वाले ऐसे कर्मवीर वरिष्ठ पत्रकार नीरज उत्तराखंडी को सल्यूट करने के साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की काम करती है।