चौलाई (Chaulai) को मिले मोटे अनाज का दर्जा की पैरवी - Mukhyadhara

चौलाई (Chaulai) को मिले मोटे अनाज का दर्जा की पैरवी

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चौलाई (Chaulai) को मिले मोटे अनाज का दर्जा की पैरवी

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देव भूमि उत्तराखंड अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता हैं जिस प्रकार से यहां के लोगों का रहन सहन हैं वैसे ही यहां के लोगो का खानपान भी हैं यही खानपान यहां के लोगो को स्वस्थ रहने का राज हैं आज हम बात कर रहें हैं चौलाई की जिसे रामदाना या राजगिरा भी कहते हैं यह उत्तराखंड के अधिकतर पर्वतीय क्षेत्रों में होता हैं जिसका प्रयोग लड्डू, खीर, आटा, रोटी और भी बहुत सी चीजें बनाने में किया जाता है।

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प्रकृति ने हमारे पहाड़ी उत्पादों में ही हमें पौष्टिक आहार दिया हैं जिसमें चौलाई भी एक हैं  इसमें आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की भरपूर मात्रा होता है। चौलाई में कई पोषक तत्व होते है जो कई बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। चौलाई का आटा प्रोटीन और मिनरल्स का अच्छा स्रोत है जिसके पत्ते की सब्जी बनाई जाती है। मिनरल्स, विटामिन्स, फोलेट, आयरन और सेलेनियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर चौलाई पेट और त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होती है इसके सेवन से शरीर किसी भी तरह के इंफेक्शन से लड़ने के लिए तैयार हो जाता हैं पहाड़ो में लाल मैरून व क्रीम कलर की चौलाई पाई जाती हैं जिसमें विटामिन सी,ए, फोलेट, जिंक और विटामिन ई होता है जो इम्यूनिटी बूस्टर हैं। यही नही पहाड़ो में पल्टी, फाफर, चिणा, तोरई भी होती हैं जो शरीर के लिए बहुत ही लाभकारी है ये फसलें हमारे रोजगार के स्रोत भी हैं। आज जरूरत हैं तो इन्हें बढ़ावा देने की ताकि ऐसे पौष्टिक बूस्टर आहार को बाजार मिल सके। चौलई यह एक ऐसा साग है जो खेती के अलावा बिना यहां-वहां भी उग जाता है। आयुर्वेद में इस साग को बेहद मान दिया गया है। उसका कारण यह है कि इस साग को शरीर के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। यह शरीर में पैदा होने वाली विषाक्तता को कम करता है और कब्ज से भी बचाए रखता है. इसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना हैऔर माना जाता है कि इसका उपज एक साथ कई देशों में हुई है।भारत के प्राचीन ग्रंथों में चौलाई की विशेषताओं का गान किया गया है।

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ऐसी मान्यता है कि चौलाई सांप, कीड़े-मकौड़ों का जहर उतारने में कारगर है। पूरे विश्व में इसकी करीब ६० प्रजातियां हैं लेकिन यह सभी देशों में खाई नहीं जाती। बगीचों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए भी इसे उगाया जाता था, क्योंकि इसके फूल देखने में अत्यंत मोहक होते हैं।खाने के लिए दो प्रकार की चौलाई ज्यादा मशहूर है, एक वह जिसका डंठल सीधा व हरा होता है। केदारनाथ औऱ बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के तमाम मंदिरों में स्थानीय अनाजों से निर्मित प्रसाद का चलन एक बड़ी मुहिम बन चुका है। चौलाई आदि स्थानीय फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में लाने की पैरवी है। भारत में चौलाई की खेती लगभग सभी जगह पर की जा सकती हैं। यह फसल पत्तियों वाली सब्जियों की मुख्य फसल है। इसकी खेती हरे साग के लिए की जाती है। इसलिए इस फसल की खेती मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों के आसपास सबसे ज्यादा की जाती है। किसान भाई इस फसल की खेती नगदी फसल के रूप में करता है। भारत के अलावा चौलाई की खेती दक्षिणी पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका, मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका देशो में अधिक मात्रा में की जाती हैं।

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चौलाई को भारत में विभिन्न जगहों पर राजगिरी और रामदाना के नाम से भी जाना जाता है। चौलाई की खेती के लिए अर्ध शुष्क वातावरण को उपयोगी माना जाता हैं। इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं। चौलाई को गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगाया जा सकता हैं। लेकिन अधिक उपज लेने के लिए इसे शुष्क मौसम में उगाना अच्छा होता है। वर्तमान समय में कई किसान शहरी क्षेत्रों के आस पास इस पत्तियो वाली सब्जी की खेती कर अच्छी खासी कमाई कर रहें है। चौलाई एक ऐसा साग है जो की लाल और हरे दोनों ही रंग में आता है। यह न सिर्फ एक स्वादिष्ट सब्जी है बल्कि चौलाई के फायदे इतने होते हैं जो बहुत से रोगों को ठीक कर सकते हैं। चौलाई का सेवन भाजी व साग के रूप में किया जाता है जो विटामिन सी से भरपूर होता है। इसमें अनेकों औषधीय गुण होते हैं, इसलिए आयुर्वेद में चौलाई को अनेक रोगों में उपयोगी बताया गया है। सबसे बड़ा गुण सभी प्रकार के विषों का निवारण करना है, इसलिए इसे विषदन भी कहा जाता है। इसमें सोना धातु पाया जाता हैजो किसी और साग-सब्जियों में नहीं पाया जाता। औषधि के रूप में चौलाई के पंचाग यानि पांचों अंग- जड, डंठल, पत्ते, फल, फूल काम में लाए जाते हैं। इसकी डंडियों, पत्तियों में प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी प्रचुर मात्रा में मिलते है।

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चौलाई पेट के रोगों के लिए भी गुणकारी होती है क्योंकि इसमें रेशे, क्षार द्रव्य होते हैं जो आंतों में चिपके हुए मल को निकालकर उसे बाहर धकेलने में मदद करते हैं जिससे पेट साफ होता है, कब्ज दूर होता है, पाचन संस्थान को शक्ति मिलती है। छोटे बच्चों के कब्ज में चौलाई का औषधि रूप में दो से तीन चम्मच रस लाभदायक होता है। चौलाई का नित्य सेवन करने से अनेक विकार दूर होते हैं। चौलाई की फसल अत्यधिक मात्रा में उगाई जाती है। विपणन की सही व्यवस्था न होने के कारण औने पौने दामों पर बिचौलियों को चौलाई बेचना काश्तकारों की मजबूरी है चौलाई के लड्डूओं को बहुत ही ज्यादा पसंद किया जा रहा है। इस साल भारी तादाद में तीर्थयात्री केदारधाम पहुंच रहे हैं। ऐसे में डिमांड को पूरा किया जाना मुश्किल हो रहा हैण्लड्डू बनाने वाली संस्थाओं को एफएसएसएआई फूड सेफ्टी एंड स्टैर्डड अथोरिटी ऑफ इंडिया से लाइसेंस प्राप्त करना होगा, जिससे लड्डू की गुणवत्ता बनी रहे।बदरीनाथ के प्रसाद में शामिल चौलाई के लड्डू बनाकर यात्रियों को बेच रही हैं और अपनी आर्थिकी भी मजबूत कर रही हैं। महिलाएं विभिन्न माध्यमों से अब तक करीब डेढ़ लाख रुपये के लड्डू बेच चुकी हैं। यह लड्डू यात्रियों को भी खूब पसंद आ रहे हैं और वह इसे घर भी लेकर जा रहे हैं।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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