बदलावों के बाद उत्तराखण्ड में कृृषि भूमि का मालिक किसान, अब अपनी ही भूमि पर हो जाएगा नौकर : मनोज रावत
देहरादून/मुख्यधारा
उत्तराखण्ड में भू- कानून से संबधित बहुत बड़े आंदोलन हो रहे हैं। हजारों के संख्या मेें लोग इन आंदोलनों में सम्मलित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री जी ने अभी हाल ही में केदारनाथ विधानसभा के अगस्त्यमुनि में घोषणा की कि, जल्दी ही कठोर भू-कानून लाया जायेगा। ऐसी घोषणा मुख्यमंत्री 2022 में भी करके एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति बना कर कर चुके थे।
आज की प्रेस कांफ्रेस मैं अपनी पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं की अनुमति से पूर्व विधायक मनोज रावत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को प्रेस के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि, मुख्यमंत्री कठोर भू-कानून छोड़िये 2018 के बाद आपकी सरकारों ने जो परिवर्तन उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) की कुछ धराओं जैसे 143 और 154 में कर दिए हैं उनसे उत्तराखण्ड की सारी कीमती जमीनें बिक चुकी हैं। मंसूरी के जार्ज एवरेस्ट का उदाहरण बता कर मैं कोशिस करुंगा कि, आपको बता सकूं कि कैसे उत्तराखण्ड सरकार राज्य की खरबों की जमीनों को कौड़ियों के भाव अपनी चहेती कंपनियों या समूहों को दे रही है।
मैं आप सभी को दो जिलों – हरिद्वार और पौड़ी के डाटा पी0डी0एफ0 के माध्यम से शेयर करुंगाा ये डाटा लगभग कुल सौदों का 35 प्रतिशत है क्योंकि सरकार के घर से ऐसा संबेदनशील डाटा निकालना बहुत मुश्किल का काम है। एक तरफ सरकार राज्य के बाहरी बड़े लोगों को हजारों बीघा जमीन देकर नए जंमीदार पैदा कर रही थी दूसरी तरफ आज भी हर तहसील में धारा 143 में कृृषि भूमि को अकृृषित करके होटल, लोन लेकर घर बनाने के सैकड़ों मामले पेड़िग हैं। आपके माध्यम से मैं मुख्यमंत्री को बताना चाहता हूं कि, मेरी तहसील केदारनाथ की ऊखीमठ में ही सैकड़ों लोग अपनी जमीन को 143 करने के लिए सालों से एड़ियां रगड़ रहे हैं। याने एक तरफ बाहरी बडे़ लोगों को उपहार में हजारों बीघा जमीनें दी जा रही हैं और राज्य के स्थानीय लोग अपनी 1 नाली जमीन को व्यवसायिक घोषित करने के लिए सालों तक तहसील के चक्कर लगा रहे हैं।
पृृथक उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन का सबसे बड़ा कारण यहां के संशाधनों – जल , जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों का अधिकार और इनका प्रबंधन और उपभोग स्थानीय लोगों के हाथों से निकलना था। राज्य बनते ही उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण शहरों में कृृषि भूमि की अनियमित खरीद- फरोख्त होने लगी थी इसलिए राज्य की जनता कठोर भू-कानून की मांग करने लगी थी।
उत्तराखण्ड पर्वतीय राज्य है , देश के पर्वतीय क्षेत्रों में कृृषि योग्य भूमि की हमेशा कमी रही है इसलिए देश के सभी पर्वतीय राज्यों – जम्मू-कश्मीर, हिमाचल से लेकर उत्तर- पूर्व तक भू-कानूनों में ऐसे प्राविधान रखे गए हैं कि, राज्य के बाहर के लोग यहां की भूमि और कृृषि भूमि को बिल्कुल न खरीद सकें।
अलग राज्य बनते समय उत्तराखण्ड में उत्तर प्रदेश का भू-कानून लागू किया गया था इस कानून में कृृषि भूमि को खरीदने के लिए कई तरीके थे। इनका फायदा उठा कर राज्य के महत्वपूर्ण हिस्सों में कृृषि भूमि की जमकर खरीद-फरोख्त होने लगी । राज्य के लोग इस भू-व्यापार का विरोध करने लगे। इसलिए राज्य की पहली चुनी हुई प0 नारायण दत्त तिवारी की सरकार ने राज्य के बाहर के निवासियों को केवल आवास बनाने के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की इजाजत देने वाले कानून बनाया बाद में भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के सरकार ने इसे केवल 250 वर्ग मीटर कर दिया था। लेकिन सरकारों ने कानून में कुछ ऐसी कमियां रखी थी या शासन याने राज्य सरकार को कुछ ऐसी ताकतें दी थी जिनका प्रयोग कर सरकारें कुछ महत्वपूर्ण लोगों को या उनसे जुड़ी संस्थाओं को जमीन देने के लिए कोई न कोई तरीका खोज ही लेतीं थीं। लेकिन यह प्रक्रिया लंबी, कष्ट साध्य थी और इसे चुनौती भी दी जा सकती थी इसलिए इसका प्रयोग कम ही हुआ। प्रभावशाली लोग व्यापक रुप से जमीनों का सौदा करना चाहते थे, इसलिए वे उत्तराखण्ड में प्रचलित भू-कानून , उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) के उन प्राविधानों में परिवर्तन करने की फिराक में रहते थे, जो प्राविधान उन्हें उत्तराखण्ड में मनमाफिक कृृषि भूमि खरीदनें- बेचने से रोकते थे।
2017 में प्रदेश में आई भाजपा की सरकार ने धनपतियों की यह आशा पूरी कर दी। 6 दिसंबर 2018 उत्तराखण्ड के इतिहास में काले दिन के रुप में जाना जायेगा। इस दिन उत्तराखण्ड विधानसभा में, भापपा की त्रिवेंद्र रावत सरकार ने उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 में भारी बदलाव कर दिए गए, जो 21 दिसंबर 2018 को राज्यपाल महोदय की अनुमति के बाद कानून बन गए। इन बदलावों के बाद उत्तराखण्ड में कृृषि भूमि का मालिक किसान, अब अपनी ही भूमि पर नौकर हो जायेगा। उत्तराखण्ड भारत-तिब्बत सीमा का सीमांत प्रदेश है इसलिए यह देश की सुरक्षा की दृृष्टि से बेहद संवेदनशील राज्य है। यहां हर किसी को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए थी। लेकिन इन संशोधनों के बाद कोई भी धन्ना सेठ पैसे लेकर आकर श्रीनगर और गौचर , अगस्त्यमुनि, श्रीनगर द्वाराहाट, गैरसैंण तो छोड़िए भारत -तिब्बत सीमा के मलारी, मिलम, मुनस्यारी , धरचूला जैसे आन्तरिक सीमा के क्षेत्र में भी कितनी ही भूमि , औद्योगिक प्रयोजन के नाम पर खरीद कर देश की सुरक्षा को भी खतरा पैदा कर देगा।
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2018 में क्या परिवर्तन किए गए थे ?
1- धारा 143 जो कृषि भूमि को अकृषित भूमि में परिवर्तित करने से संबधित है। अकृृषित भूमि पर उत्तराखण्ड में प्रचलित भू-कानून , उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) के उन प्राविधानों के वे प्रावधान नहीं लगते हैं जो कि कृृषि भूमि के रुप में उत्तराखण्ड में भूमि की खरीद-फरोख्त को बाधित अथवा सीमित करते थे। इस संशोधन विधेयक के पास होने के बाद हुए बदलावों के बाद इसमें 143 क को जोड़ दिया है जिसके बाद पर्वतीय जिलों में औद्योगिक प्रयोजनों के लिए कितनी भी मात्रा में कृषि भूमि को धारा 154 के अधीन खरीदने पर वह स्वतः ही अकृषिक भूमि मानी जाती है।
2- राज्य में उद्योग और पर्यटन को इस संशोधन विधेयक के पास होने से पहले ही औद्योगिक कार्य माना जाता था परंतु इस संशोधन विधेयक के द्वारा चिकित्सा, स्वास्थ्य और शैक्षणिक प्रयोजन भी औद्योगिक प्रयोजन में सम्मलित कर दिए गए। इस तरह इस संशोधन विधेयक के बाद हर महत्वपूर्ण कारोबारी गतिविधि औद्योगिक प्रयोजन के अंर्तगत आ गयी । याने विधानसभा में हुए इस संशोधन के बाद धनपति अपने किसी भी कारोबारी कार्य के लिए उत्ताखण्ड में कितनी भी जमीन बिना किसी बाधा के खरीद सकता था।
3- उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) की धारा 154 किसी भी व्यक्ति, परिवार या कंपनी द्वारा उत्तराखण्ड में रखी जाने वाले अधिकतम भूमि की सीमा से संबधित है। इस संशोधन से पहले किसी भी व्यक्ति, परिवार या कंपनी को यह धारा 12.5 एकड़ से अधिक भूमि खरीदने से रोकती थी परंतु इस संशोधन के बाद अब 154 में उपधारा (2) के जोड़े जाने के बाद अब औद्योगिक प्रयोजन हेतु पर्वतीय जिलों अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में किसी भी सीमा तक भूमि क्रय की जा सकती है।
पहले इन संशोधनों को पर्वतीय जिलों के लिए किया गया था लेकिन बाद में मैदानी जिलों हरिद्वार, नैनीताल और उधमसिंह नगर के लिए भी कर दिया गया। वास्तव में यहीं जमीनों का बड़ा खेल होना था। यहीं के कुछ बड़े लोगों को फायदा देने के लिए ये संशोधन किए गए।
संविधान निर्माता भी पर्वतीय राज्यों के विशेष ढ़ाचे को जानते थे इसलिए उन्होंने संविधान के आर्टिकल 370 के प्राविधानों द्वारा जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को भूमि खरीद से रोका तो आर्टिकिल 371-ए के प्राविधानों द्वारा उत्तर पूर्वी राज्यों में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद को बाधित किया। हिमाचल प्रदेश के अलग राज्य बनने के बाद वहां हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एण्ड लैंड रिफार्म एक्ट की धारा – 118 लागू की गयी जो हिमाचल में गैर-कृृषक को कृृषि भमि खरीदने से रोकती है।
बाहरी लोगों द्वारा अनियमित भू-खरीद की आशंका को देखते हुए 2002 में उत्तराखण्ड बनने के बाद कांग्रेस सरकार भी हिमाचल के भू- कानून की तर्ज पर अध्यादेश लायी थी बाद में धन्ना सेठों के दबाव में तिवारी सरकार ने बहुगुणा समिति का गठन किया इस कमेटी ने धन्ना सेठो के दबाव में अध्यादेश के मसौेदे के कठोर तत्वों को बाहर निकाल दिया जिसका नतीजा है कि आज उत्तराखण्ड के शहरी क्षेत्रों में बेरोकटोक भू-व्यापार हो रहा है। फिर भी तिवारी सरकार ने यह व्यवस्था तो कर दी थी कि, ग्रामीण क्षेत्रों में जो व्यक्ति मूल अधिनियम की धारा – 129 के तहत जमीन का खातेदार न हो वह बिना अनुमति के 500 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता है। बाद में खण्डूड़ी सरकार ने यह सीमा कम करके 250 वर्ग मीटर कर दी थी। इस आदेश को जब उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तो इस परिवर्तन को न्यायालय ने समाप्त कर दिया था परंतु राज्य सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील करने पर 250 वर्ग मीटर तक भू-खरीद के आदेश को माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी उचित माना। तब इस मुद्दे को चुनाव में भाजपा ने खूब भुनाया भी था।
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अंग्रेज भी पर्वतीय राज्यों के विशेष भौगोलिक-आर्थिक-सामाजिक ढ़ाचे को जानते थे इसलिए उन्होंने भी इन पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग भू-कानून बना कर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के कृषकों की भूमिधरी के अधिकारों की रक्षा की।
परंतु दिसंबर 2018 के उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 की धारा 143 और 154 में बदलाव के बाद अब उत्तराखण्ड देश का इकलौता पहाड़ी राज्य हो गया है जंहा कोई भी कितनी भी मात्रा में कृृषि भूमि खरीद सकता है ये पर्वतीय जिलों के साथ तो छलावा है ही देश की सुरक्षा के लिए भी चुनौती है। देश के पहाड़ी राज्यों ही नहीं महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के भू-कानून भी कृृषि भूमि की खरीद-फरोख्त को रोकते हैं।
2017 में आयी भाजपा की सरकारें यहीं पर नहीं रुकी। दिसंबर 2018 में किए इन परिवर्तनों के बाद जब भी सरकार को लगा कि, अभी भी कानून के कुछ प्रावधान कृृषि भूमि की खरीद-फरोख्त को रोक रहे हैं या बाधित कर रहे हैं तो उसने उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) में परिवर्तन करने में कोई हिचक नहीं की। 2018 से लेकर आज तक इस कानून में 11 संशोधन किए गए।
21 दिसंबर 2018 केे उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) की धारा 143 व 154 में संशोधन के बाद त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने यदि औद्योगिक प्रयोजन के लिए कितनी भी मात्रा में जमीन खरीदने की छूट भले ही दी हो लेकिन उसने 143 में एक प्रावधान ‘‘143 क’’ को और जोड़ा था कि, यदि खरीदी गई कृृषि भूमि का प्रयोग औद्योगिक प्रयोजन के लिए न किया गया तो वह जमीन राज्य सरकार में निहित हो जायेगी अथवा अंतरण समाप्त माना जायेगा। हालांकि आज तक इस प्रावधान का प्रयोग कर कभी भी कोई जमीन राज्य सरकार में निहित नहीं हुई है। लेकिन, 2022 में पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा जोड़े गए इस प्रावधान ‘‘ 143 क ’’ को हटा दिया गया। ‘‘ 143 क ’’ को हटाने के बाद राज्य में कोई भी व्यक्ति, अफगानिस्तान या पाकिस्तान सहित किसी भी देश के व्यक्ति की कोई भी कंपनी कितनी भी मात्रा में जमीन औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीद सकती है। और उसका प्रयोग औद्योगिक प्रयोजन के लिए न करने पर भी सरकार उसका कुछ नही ंकर सकती है। याने औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदी गई कृृषि भूमि का प्रयोग प्लाटिंग आदि के लिए कर सकती है। राज्य में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं।
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उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जंमीदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) में ये परिवर्तन कुछ विशेष समूहों को फायदा पंहुचाने के लिए किए गए हैं जिनमें से राज्य में कारोबार करने वाले एक स्वामी से संबधित कंपनियों को हरिद्वार और पौड़ी जिले में बड़ी जमीनों को खरीदने की छूट दी गई। दो जिलो में कृृषि भूमि खरीदने वालों में इन स्वामी से संबधित कई बेनामी कंपनियां भी हैं।
हम बहुत मेहनत से दो जिलों में जमीन की खरीद-फरोख्त से संबधित डाटा का 35 प्रतिशत ही इकट्ठा कर पाए हैं । वर्ना राज्य में बदरीनाथ- केदारनाथ मार्ग, महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों- नैनीताल, मंसूरी , मैदानी व पर्वतीय जिलों की सभी महत्वपूर्ण कृृषि भूमियां उत्तराखण्ड से बाहरी लोगों के हाथों बिक चुकी हैं।
दूसरा मामला राज्य की सरकारी जमीनों को भ्रष्ट तरीकों से अपनी चहेती कंपयिों को देने का है। आप खोजंेगे तो यह कंपनी भी किसी न किसी रुप में जमीनों को फायदा उठाने वाले समूहों से संबधित निकलेगी।
उत्तराखण्ड राज्य बनते समय ‘‘ पार्क ईस्टेट ’’ की हाथी पांव इलाके में 422 एकड़ भूमि थी। इसमें से 172 एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने स्र्व0 एम0सी0शाह परिवार , स्व0 सी0पी0 शर्मा, जो यमकेश्वर के मराल गांव के मूल निवासी थे, अभिनेत्री अर्चना पूरण सिंह के पिता स्र्व0 पूरण सिंह आदि से पर्यटन विकास के लिए 1990 से लेकर 1992 तक अधिगृृहित की थी।
दिल्ली से सबसे नजदीक हिल स्टेशन मंसूरी की यह सरकारी जमीन उत्तराखण्ड की सबसे बेशकीमती जमीनों में एक थी इसलिए देश- विदेश के सारे बड़े उद्योगपतियों और करोबारियों की नजर इस जमीन पर थी। उत्तर प्रदेश के जमाने में समाजवादी पार्टी की सरकार में इस जमीन को एस्सल वर्ड को देने की बात चली थी लेकिन भारी जनविरोध के कारण तब की सरकार ने यह फैसला नहीं लिया।
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जो काम उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार नही कर पायी थी उसे 19 जुलाई 2023 को उत्तराखण्ड के पर्यटन सचिव / उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सचिन कुर्वे के एक हस्ताक्षर से हो गया। उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने 172 एकड़ में से 142 एकड़ भूमि ( 762 बीघा या 2862 नाली या 5744566 वर्ग मीटर ) ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड’’ को केवल 1 करोड़ रुपए सालाना किराए पर इस जमीन पर साहसिक पर्यटन से संबधित गतिविधियों के ओपरेशसन , मैंनेजमैंट और डेवलपमैंट के नाम पर 15 साल के लिए दे दिया।
इस 762 बीघा भूमि याने 5744566 वर्ग मीटर भूमि का सरकारी रेटों से मूल्य आज के समय 2757,91,71,840 रुपया ( 2757 करोड़ के लागभग है। जमीन का यह रेट सरकारी सर्किल रेट के अनुसार है। जमीन का वास्तविक बाजार मूल्य आम तौर पर इसके चार गुना और व्यवसायिक या पर्यटक स्थलों पर 10 गुना तक होता है।
उत्तराखण्ड सरकार के पर्यटन विभाग के काबिल अधिकारियों ने खरबों रुपयें की यह भूमि 15 साल के लिए साहसिक पर्यटन से संबधित किसी भी व्यवसायिक गतिविधि को चलाने के लिए दे दी थी। पर्यटन गतिविधियों में वहां से हैलीकाप्टर संचालन भी था। मेरे केदारनाथ में 10 नाली जमीन से हैली संचालन करने वाली कंपनियां साल का ही 1 करोड़ किराया आदि में देती हैं। इस कंपनी की मांग पर पर्यटन विभाग ने समझौता हस्ताक्षरित करते समय शर्तों में एक बिंदु और जोड़ दिया जिसके अनुसार 15 साल काम करने के बाद भी यदि पर्यटन विभाग इस भूमि को फिर से इन गतिविधियों के लिए किसी कंपनी को देना चाहता हो तो उस समय भी उसे सबसे पहले इसी कंपनी को देना ही होगा। इस तरह उत्तराखण्ड के सबसे कीमती इस भूमि को उत्तराखण्ड सरकार के काबिल अधिकारियों ने हमेशा के लिए इस कंपनी को देने का पूरा कानूनी इंतजाम उत्तराखण्ड सरकार के काबिल अधिकारियों ने कर दिया। आप सभी सालों से पत्रकारिता कर रहे हैं इसलिए आप जानते हैं कि, किसी अधिकारी की इतनी हैसियत नहीं होती कि अपने दम पर इतना बड़ा निर्णय ले ले। कंपनी को यह काम देने का रास्ता राज्य की कैबिनेट के एक निर्णय के बाद हुआ याने इस जमीन के सौदे में पूरी सरकार सम्मलित थी।
जिस भूमि को 15 साल के लिए 1 करोड़ सालाना किराए में दिया गया उस भूमि का देने के लिए हुए टेंडर के वित्तीय वर्ष में ही पर्यटन विभाग ने उस भूमि पर एशियाई विकास बैंक से 23 करोड़ रुपए कर्ज लेकर उसे विकसित किया था। उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग के काबिल अधिकारी ही बता सकते हैं कि, कर्जे के 23 करोड़ खर्च कर जमीन का सजा-धजा कर उसकी सारी कमियां दूर कर 15 साल के लिए राज्य की अरबों की जमीन देकर किराए के रुप में 15 करोड़ कमाने का ये कौन सा विकास का माडल है। सूचना अधिकार में मिली जानकारी से पता चला है कि, कर्जे के 23 करोड़ रुपए के काम में से भी 5 करोड़ रुपए के काम तो जमीन पर कहीं हुए ही नहीं , जो काम हुए हैं वे भी बेहद घटिया काम हैं। ये काम भी उत्तराखण्ड में काम कर रही एक बड़ी दागी कम्पनी ने किया था। यह कम्पनी भी एक मंत्री जी से संबधित कई विभागों में अरबों के काम कर रही है।
‘‘राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड’’ को जिस टैंडर के माध्यम से यह काम दिया गया उस टेंडर की सारी प्रक्रिया ही इस कम्पनी को लाभ पंहुचाने के लिए किया गया देश के सबसे बड़े घोटालांे में से एक था। तीनों कम्पनियों के ‘‘बुक आफ एकांउटस ’’ के एक ही कार्यालय एक ही स्थान- द्वितीय फलोर दीक्ष भवन पतंजलि योग पीठ- 1 महर्षि दयानंद ग्राम , निकट बहादराबाद हरिद्वार में हैं। इन तीनों कम्पनियों के कार्यालय, डाइरैक्टर या उनके पते किसी न किसी रुप में एक दूसरे से बहुत नजदीक से जुड़े हैं। ‘‘राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड’’ का पता ग्राम – भौन , नीलकंठ पट्टी उदयपुर तल्ला- 2 , यमकेश्वर पौड़ी गढ़वाल का है। आप सभी लोग पौड़ी गढ़वाल के इस गांव से पता कर सकते हैं कि इस गांव में कितनी पर्यटन गतिविधियां हो रही हैं और उससे कितने उत्तराखण्डियों को रोजगार मिला है। इस टेंडर को प्रकाशित करते समय पर्यटन विभाग ने टेंडर में भाग लेने के लिए कड़ी शर्तें रखी थी लेकिन ठीक टैंडर के दिन अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी , यू0टी0डी0बी0 कर्नल अश्विनी पुंडीर के एक साधारण आदेश द्वारा एम0एस0एम0ई0 कम्पनियों को भी इस टेंडर में भाग लेने की अनुमति दे दी। अब कोई भी बता सकता है कि बिना अनुभव के स्टार्ट अप कंपनियां कैसे इस उत्तराखण्ड में पर्यटन विकास कर सकती हैं ?
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इस तरह खरबों की इस भूमि को 15 साल के लिए देने के लिए किए गए टेंडर में भाग ले रही तीनों पारिवारिक कपंनियों में से एक ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड’’ ही सभी शर्तों को पूरा करती थी। उसके समर्थन में उतरी दो नई कम्पनियां कोई शर्तें पूरा नहीं करती थी। ये दोनों कम्पनियां किसी न किसी रुप में राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड से जुड़ी थी।
टेंडर की प्रक्रिया के सामान्य जानकार भी जानते हैं कि, यदि टेंडर में तीन से कम कंपनियां भाग ले रही हैं तो उसे निरस्त किया जाना चाहिए। टेंडर के दिन शर्तों में परिवर्तन इसी लिए किया गया कि , राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड को टैंडर देने के लिए उसके समर्थन में दो कम्पनियों को खड़ा कर उसे अरबों की जमीन दी जा सके। टेंडर के दिन टेंडर की शर्तों में परिवर्तन कर दो अयोग्य कम्पनियों को टेंडर में भाग लेने की अनुमति देना उत्तराखण्ड सरकार के वित्त अनुभाग- 7 के 14 जुलाई 2017 की उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति (प्रक्योरमैंट) नियमावली 2017 का उल्लंघन था। इस कम्पनी को जमीन देने की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी उस पटकथा में भी बहुत ही बड़ा घोटला और नियम विरुद्ध कार्य पर्यटन विभाग ने कर दिए थे उनका खुलाशा करने के लिए कई दिन चाहिए हैं।
इस तरह उत्तराखण्ड की मंसूरी जैसे हिल स्टेशन में खरबों की जमीन एक बेनामी सी कम्पनी जिसका संबध उत्तराखण्ड में जमीनों के सबसे बड़े सौदागरों में से एक ग्रुप से है को उत्तराखण्ड सरकार के काबिल अधिकारियों ने पर्यटन विकास के नाम पर दे दी। 2018 में उत्तराखण्ड जंमीदारी विनाश अधिनियम में जो दो परिवर्तन किए गए उसका सबसे बड़ा फायदा उठाने वाला भी यही समूह है।
इस जमीन को कब्जे में लेने के बाद इस र्दुदांत कम्पनी ने सबसे पहलें इस जमीन साथ लगी जमीनों और मकानों तक जाने वाले 200 साल से भी पुराने रास्ते को बंद कर दिया। जिसे खुलाने के लिए स्थानीय निवासी आज भी संघर्ष कर रहे हैं। कंम्पनी तीन घंटे की पार्किग के लिए ही 400 रुपए वसूलती है और इस सड़क पर चलने के लिए 200 रुपए प्रति व्यक्ति लेती है।
कंपनी ने इस जमीन से जो कि , विनोग हिल वल्र्ड सैंचुरी में पड़ती है से बिना अनुमति के व्यवसायिक हैलिकाप्टर संचालन किया आज भी इस भूमि से हैलिकाप्टर संचालन हो रहा है। इस भूमि पर जार्ज एवरेस्ट हाउस जैसी बेशकीमती हेरिटेज प्रापर्टी भी है।
सरकार ने पिछले साल केदारनाथ के लिए भी ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवैंचर प्राईवेट लिमिटेड’’ को अकेले हैलिकाप्टर उड़ाने की अनुमति देने की कोशिस की थी, लेकिन विरोध के बाद इस विचार को बदल दिया। सरकार की नजर मंसूरी के बाद रुद्रप्रयाग जिले के स्विटजरलैंड के नाम से जाने जाने वाले चोपता की जमीन पर है इसीलिए वहां स्थानीय बेरोजगार युवकों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है।