मोरी: सख्त भूकानून के अभाव में बाहरी राज्यवासियों ने गरीब लोगों की जमीनें औने-पौने दामों पर खरीदकर उगाए सेब के बगीचे (apple orchard) - Mukhyadhara

मोरी: सख्त भूकानून के अभाव में बाहरी राज्यवासियों ने गरीब लोगों की जमीनें औने-पौने दामों पर खरीदकर उगाए सेब के बगीचे (apple orchard)

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मोरी: सख्त भूकानून के अभाव में बाहरी राज्यवासियों ने गरीब लोगों की जमीनें औने-पौने दामों पर खरीदकर उगाए सेब के बगीचे (apple orchard)

नीरज उत्तराखंडी/मोरी

सख्त भूमि कानून के अभाव में बाहरी राज्यों के लोगों ने प्रखंड में गरीब लोगों की जमीनें औने-पौने दामों पर खरीदकर वहां लगे पेड़ काट दिए और सेब के बगीचे उगा दिए। 2005 से मोरी को तहसील का दर्जा मिलने के बाद से अब तक उत्तरप्रदेश, हिमाचलप्रदेश और नेपाल के 20 लोगों ने सैकड़ों हेक्टेयर भूमि खरीद ली और खरीदी गई जमीन की आड़ में सरकारी तथा वन भूमि पर अवैध कब्जा कर बांज, बुरांस के पेड़ों का सफाया कर सेब के बगीचे खड़े कर लिए।

तहसील अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2005 से 2009 तक प्रखण्ड में 15 हिमाचल निवासियों द्वारा 4.847 हेक्टेयर भूमि व उत्तरप्रदेश के बिजनौर, गाजियाबाद तथा सहारनपुर के 4 व्यक्तियों द्वारा 0.158 हेक्टेयर तथा नेपाली मूल के 10 व्यक्ति द्वारा जमीन खरीद ली गई है।

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गौरतलब है कि 2005 से पूर्व जब तहसील मोरी, पुरोला तहसील का भाग हुआ करता था, उस दौरान भी जिले एवं राज्य से बाहर के दर्जनों व्यक्तियों द्वारा सैकड़ों हेक्टेयर भूमि खरीद कर वन भूमि एवं सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर राजस्व, वन एवं पार्क क्षेत्र की भूमि में हरे बाज, बुरांस के पेड़ों को काटकर सेब के बागों में तब्दील किया जाता रहा। इसमें आईएएस, आईएफएस, आईपीएस अधिकारियों से लेकर सफेद पोश नेता भी शामिल हैं। वन ज भूमि पर अतिक्रमण करने तथा जंगलों का सफाया करने वालों पर कार्रवाई अमल में इसलिए नहीं लाई जाती क्योंकि अवैध गतिविधियों को अंजाम ऊंची पहुंच के लोग दे रहे हैं।

उत्तराखण्ड की लचर भूमि खरीद नीति का ही नतीजा है कि बाहरी लोगों द्वारा यहां जमीन खरीद कर कृषि योग्य भूमि ही नहीं, वन और राजस्व भूमि पर भी कब्जा बदस्तूर जारी है जबकि हिमाचल प्रदेश में भू कानून इतना सख्त है कि हिमाचल के ही जनजाति क्षेत्र किन्नौर जिले में तो कोई हिमाचली भी जमीन खरीद नहीं सकता ।

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हिमाचल प्रदेश में गैर हिमाचलियों को भूमि हस्तांतरण और बिक्री पर पाबंदी के लिए हिमाचल प्रदेश काश्तकारी एवं भूमि सुधार अधिनियम 1972 की धारा 188 में गैरहिमाचलियों के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। इसमें हिमाचल प्रदेश के वे स्थाई निवासी भी आते हैं जिनके पास कृषि भूमि नहीं है। धारा 133(1) में स्पष्ट लिखा गया है कि जमीन की खरीद, उपहार में देने, जमीन का आदान-प्रदान मुकदमें करने, उसकी वसीयत पटूटे पर देने व इस तरह के अन्य मामलों में किसी भी गैरकृषक को जमीन का हस्तानांतरण बिल्कुल नहीं होगा। धारा118(1) का उल्लंघन करते हुए जमीन किसी को हस्तांतरित कर दी हो या इस धारा की पाबंदियों को तोड़ते हुए किसी गैरकृषक ने कोई भवन या अन्य निर्माण कर लिया हो तो ऐसे मामलों के प्रकाश में आने पर उन्हें राज्य सरकार अधिगृहीत कर लेती है।

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मोरी में काबिज रसूखदार शंकर अग्रवाल केंद्र सरकार में सचिव , बीना शेखरी आईएफएस वन सेवा की वरिष्ठ अधिकारी, एसके द्विवेदी, प्रताप सिंह आईएएस पूर्व जिला अधिकारी, राजीव कंडारी,आरके बेरी आईएफएस यमुना सर्किल के सेवानिवृत मुख्य वन संरक्षक, आरके गोयल- अधिशासी अभियंता पीडब्लूडी, रेणु सिंह -डीएफओ की पत्नी।

हिमाचल प्रदेश के रंजन प्रधान पुत्र गुरूनीमा खम्पा, बाल कृष्ण रावत शामिल हैं।

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