भारत की पहली पर्वतारोही महिला बछेन्द्री पाल (Bachendri Pal)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
अगर इंसान ठान ले, कोई भी चीज नामुमकिन नहीं है।’, बछेन्द्री पाल ने इस बात को सही साबित करके दिखाया। एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली और दुनिया की पांचवीं भारतीय महिला बछेन्द्री पाल ने महिलाओं को कुछ भी न समझने वाले रूढ़िवादी लोगों को मुंहतोड़ जवाब दिया और हजारों लाखों महिलाओं को स्पोर्ट और एडवेंचर के लिए प्रेरित किया। घर-घर में लोगों ने कहना शुरू कर दिया की हमारी बिटिया भी बछेन्द्री पाल जैसी बनेगी। बछेन्द्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में हुआ था। अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली पाल पहली महिला थीं। उन्होंने बीए में ग्रेजुएशन की और संस्कृत से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने बीएड की पढ़ाई पूरी की। पर्वतारोही बनने के लिए पाल को अपने परिवार से बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं मिला, क्योंकि उसके परिवार वाले उस टीचर बनाना चाहते थे। बछेन्द्री पाल के बचपन का एक किस्सा काफी मशहूर हुआ था।
बताया जाता है कि पाल ने महज 12 साल की उम्र में अपनी सहेलियों के साथ एक स्कूल पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की चोटी पर चढ़ाई की थी। उस दौरान पाल को भी एहसास नहीं हुआ होगा कि वह आगे चलकर देश और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की चढ़ाई कर भारत का झंडा आसमान में लहराएगी। बछेंद्री के गांव में लड़कियों की पढ़ाई को ज्यादा अहमियत नहीं दिया जाता था। वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती थी और आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कुछ साल सिलाई कर गुजारा करना पड़ा। घर चलाने के लिए पाल जंगलों से घास और लकड़ियां ले जाने का काम भी अकेले करती थीं। इतनी पढ़ी-लिखी और डिग्री होल्डर होने के बावजूद पाल को नौकरी नहीं मिली। परिवार के खिलाफ जाकर उन्होंने माउंटनियरिंग में करियर बनाने का सोचा। इसके लिए उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन कर दिया था। 23 मई, 1984 का वो खास दिन जिसे न केवल पाल बल्कि भारत भी नहीं भूल सकता है। 1984 में भारत ने एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल बनाया गया। इस दल का नाम रखा गया “एवरेस्ट -84″। इस दल में बछेंद्री पाल समेत 11 पुरुष और पांच महिलाएं शामल थी। यह बछेंद्री के जीवन के लिए बड़ा मौका था, जिसका उन्हें लंबे समय से इंतजार था।
यह भी पढें : अंग्रेजों ने दिखाया था रेल लाइन (railway line) का सपना, निर्माण अब भी अधर में लटका
एवरेस्ट फतह करने के बावजूद पाल इस सेक्टर में कोई करियर नहीं बना पा रही थी। इस बीच टाटा समूह के जेआरडी टाटा ने पाल को जमशेदपुर बुलाया और अकादमी बना कर युवाओं को प्रशिक्षण देने को कहा। बता दें कि पाल ने अब तक 4500 से ज्यादा पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए तैयार किया। महिला सशक्तीकरण और गंगा बचाओ जैसे सामाजिक अभियानों से भी जुड़ी। बछेंद्र पाल को वर्ष 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, जबकि वर्ष 2019 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में बछेंद्री पाल को कई मेडल और अवार्ड मिल चुके हैं। भारत देश के पास पहले से ही प्रतिभावान और मेहनती लोगों की कमी नहीं थी।
यह भी पढें : विकास और आस्था के बीच टकराव की स्थिति !
भारतीय पुरुषों ने तो अपने हुनर से देश का कई बार नाम रोशन किया ही लेकिन महिलाएं भी इस मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। बात चाहें घर के काम की हो या फिर एथलेटिक्स की, महिलाएं हर जगह बराबरी पर नजर आती हैं। इसी कड़ी में आज हम उत्तराखंड की एक ऐली महिला की बात कर रहें हैं, जिन्होंने करीब 40 साल पहले माउंट एवरेस्ट फतह कर देश की पहली पर्वतारोही महिला होने का गौरव हासिल किया। उत्तराखंड के पहाड़ों की इस बेटी को आज हर कोई प्रणाम कर रहा हे।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)