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उत्तराखंड का बेड़ू (Bedu): कैंसर, कोलेस्ट्रॉल और दिल की बीमारियों का है रामबाण इलाज

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उत्तराखंड का बेड़ू (Bedu): कैंसर, कोलेस्ट्रॉल और दिल की बीमारियों का है रामबाण इलाज

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

बेड़ू पाको बारा मासा गाना जो उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकगीत है, जिसका मतलब है बेड़ू ऐसा फल है जो पहाड़ों में बारह महीने पकता है। उत्तराखंड में अनेक स्वास्थ्य वर्धक वनस्पतियां और फल पाए जाते हैं, जिसमें बेड़ू भी एक चर्चित फल है, जिसे हिमालयन फिग नाम से भी जाना जाता है।

बेड़ू पहाड़ी इलाकों में काफी मात्रा में मिलने वाला स्वास्थ्य वर्धक और स्वाद से भरपूर फल है। पहाड़ों में प्रकृति से निशुल्क उपहार के रूप में मिले इस फल से अलग अलग उत्पाद बनाकर पहाड़ के उत्पादों को एक नई पहचान तो मिली है, साथ ही इससे रोजगार के नए आयाम भी विकसित होने की ओर अग्रसित है।

शुरुआत में बेड़ू सेबने जैम, जूस, स्क्वेश, चटनी को बाजार में उतारने के बाद अब इस फल से वाइन भी बनेगी, जिसका प्लांट कोटद्वार में लगने जा रहा है। जिससे बेड़ू को अब एक और नई पहचान मिलने जा रही है। इससे यहां के किसानों को भी फायदा मिलेगा।

आईएलएसपी के प्रबंधक ने जानकारी देते हुए बताया कि पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी की पहल पर बेड़ू को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए इससे पहले पिथौरागढ़ से इसकी शुरुआत की गई थी और अब इससे कोटद्वार में स्थापित हो रही एक वाइन कंपनी वाइन बनाएगी, जिसका फायदा यहां के लोगों को मिलेगा।

बेड़ू जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही इसमें शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है।

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बेड़ू (पहाड़ी अंजीर) का फल औषधियों गुणों से भरपूर है। यह कई बीमारियों में काम आता है। इसमें विटामिन सी, प्रोटीन वसा, फाइबर, सोडियम, फासफोरस, कैल्शियम और लोह तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। शरीर के विकास के लिए यह सभी तत्व जरूरी हैं। साथ ही अनेकों बीमारियां भी इस फल के सेवन से दूर होती हैं।

न्यूट्रिशन एक्सपर्ट ने इसके फायदे बताते हुए इससे भविष्य में रोजगार के अवसर बढ़ाने की ओर ध्यान देने की बात कही है। उत्तराखंड के पहाड़ों में खेती ही आजीविका का मुख्य साधन है लेकिन अब ग्रामीण इलाकों से खेती सिमटते जा रही है। जिसके तमाम कारण है। जिसमें सबसे बड़ी वजह जो है वो जंगली जानवरों का फसल को बर्बाद कर देना है।

पहाड़ों में विषम परिस्थितियों में खेती की जाती है जिसमें काफी मेहनत लगती है लेकिनजंगली जानवर फसल उगने के बाद खराब कर देते हैं। जिससे उसका उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता नतीजन ग्रामीण इलाकों के लोग अब खेती से दूर होते जा रहे हैं।

उत्तराखंड में बेडू का कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता है लेकिन बहुत पहले गांव के लोग जंगल से बेडू लाकर खाते थे। बेडू का उत्तराखंड की संस्कृति से कितना लगाव था इसका अंदाजा आप पौराणिक गीतों से भी लगा सकते हैं जिसमे एक गीत बेड़ू पाको बारा मासा गाना आपने जरूर सुना होगा। गीत के माध्यम से बताया गया है कि बेडू बारामास पकने वाला फल था, यह इतना स्वादिष्ट फल है कि जो एक बार खा ले, वह इसे हर बार खाना चाहेगा।

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विश्व में बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है। इसे गुणों की बात की जाय तो यह सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणो से भरपूर होता है।

आयुर्वेद में बेडु के फल का गुदा कब्ज, फेफड़ो के विकार तथा मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है। इसके प्रयोग से तंत्रिका तंत्र विकार तथा मारियों से निजात मिलती है, पारम्परिक रूप से बेडु को उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह तथा फंगस सक्रंमण के निवारण के लिये प्रयोग किया जाता रहा है। उत्तराखंड के गांवों में बेडु की पत्तियां पशुचारे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं,

बताया जाता है कि जो पशु दूध कम देता है तो उसे बेडू की पत्तियां चारे में खिलाने पर पशु दूध अधिक देती है।

उत्तराखंड में आज के समय में इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकता है जो विभिन्न खाद्य एवं फार्मास्यूटिकल उद्योग में उपयोग को देखते हुये स्वरोजगार के साथ-साथ बेहतर आर्थिकी का साधन है।

चारधाम यात्रा मार्गो पर बने अन्य स्टोरों के लिए जेम व चटनी के कुल 1000 प्रोडक्ट भेजे गये।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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