Janmashtami: श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के रंग में रंगी कान्हानगरी, जन्मभूमि में की गई विशेष पूजा-आरती, द्वारका में भी धूम
मुख्यधारा डेस्क
भगवान श्रीकृष्ण का आज जन्मदिवस (Janmashtami) है। इसे पूरे देश भर में कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। कृष्णनगरी मथुरा में जन्माष्टमी ही एक ऐसा पर्व है जिसमें सबसे ज्यादा भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
मथुरा में स्थित कृष्ण जन्मभूमि से लेकर गोकुल, वृंदावन, नंदगांव और बरसाने सभी जगह भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
सोमवार सुबह श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पर्दे खोले गए और आरती की गई। मंदिरों में सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।
जन्माष्टमी के मौके पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर 20 घंटे खुला रहेगा, जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन करने में परेशानी का सामना न करना पड़े। श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव सुबह साढ़े पांच बजे से शुरू हो गया है। सबसे पहले ठाकुर जी का पंचामृत अभिषेक और पुष्पांजलि के साथ-साथ मंगला आरती से उत्सव शुरू हो गया है।
संत नृत्य गोपाल दास के नेतृत्व में आधी रात को ठाकुर जी के बाल स्वरूप का महाभिषेक होगा। ये समारोह रात करीब 11 बजे से शुरू कर रात करीब 12.40 तक जारी रहेगा। ये उत्सव रात 2 बजे शयन आरती के साथ खत्म होगा। उन्होंने कहा कि इस दिन दो प्रमुख शोभा यात्रा और एक आध्यात्मिक शोभा यात्रा भी निकाली जाएगी जो शहर के प्रमुख बाजारों को कवर करेगी।
सुरक्षा व्यवस्था के जबरदस्त इंतजाम किए गए हैं। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर विशेष भस्म आरती की गई। जन्माष्टमी मनाने के लिए हर साल मथुरा में लाखों श्रद्धालु देश-विदेशों से पहुंचते हैं।
आज के दिन बृजवासी अपने आराध्य श्री कृष्ण के जन्मोत्सव में लीन हो जाते हैं। आज की रात मथुरा में रौनक अलग दिखाई देती है। भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूरे देश भर में मनाई जाती है लेकिन मथुरा और गुजरात के द्वारका में अलग ही भक्ति का भाव दिखाई देता है। द्वारका में भी आज सुबह विशेष पूजा-अर्चना और आरती की गई।
इस मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ थी। जन्माष्टमी के मौके पर छुट्टी भी रहती है। इस बार भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।
बता दें कि द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी की रात श्रीकृष्ण प्रकट हुए थे। उस समय रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि का चंद्र था। आज रात भी रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि का चंद्र रहेगा। श्रीकृष्ण रात में अवतरित हुए, इस वजह से जन्माष्टमी रात में मनाने की परंपरा है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के कारण ही कंस, जरासंध, कालयवन जैसे राक्षसों का वध हुआ। भगवान ने पांडवों की मदद करके अधर्मी कौरव वंश को खत्म करवाया।
जन्माष्टमी पर दिनभर व्रत रखने की परंपरा है, ताकि भक्त पूरी एकाग्रता से पूजा-पाठ कर सकें। जब हम निराहार रहते हैं तो आलस नहीं आता है और हमारा मन व्यर्थ बातों में भटकता नहीं है। व्रत रखने से हमारे पाचन तंत्र को भी आराम मिलता है।
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ भगवान शिव का भी अभिषेक करना चाहिए।