विकास की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार (Corruption) - Mukhyadhara

विकास की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार (Corruption)

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विकास की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार (Corruption)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

वैश्विक स्तरपर आज भारत के नाम प्रतिष्ठा होल्ड और वर्चस्वता का आधार बढ़ता ही जा रहा है, जिसके दम पर भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक मुख्य पक्ष माना जाता है जो हम बड़े बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष के भारत के साथ बॉडी लैंग्वेज से समझ मेंआता है और हम प्रोत्साहित होकर विज़न 2047, विजन नए भारत, विज़न 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं परंतु जिस तरह हमने हाल के कुछ दिनों में बंगाल के मंत्री, जबलपुर के आरटीओ, एमपी के चपरासी के यहां करोड़ों रुपए, एमपी में पोषण घोटाला सहित अनेकों भ्रष्टाचार के
तथाकथित मामले मीडिया के माध्यम से हमने पढ़े और देखें और ऐसे अनेक मामलों की रिसर्च करेंगे तो हमें पता चलेगा कि इस तरह के भ्रष्टाचार जारी रहे तो हम उपरोक्त विज़नस को पूर्ण नहीं कर पाएंगे? इसलिए अब जरूरी हो गया है कि भारत को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक कालखंड में कदम रखना अनिवार्य है। अब सीबीआई ईडी के साथ अन्य एजेंसियों को आय से अधिक संपत्ति रखने वालों का तेजी से पता लगाना होगा।

सेवा क्षेत्र के हर चपरासी से लेकर बाबू और बड़े अधिकारियों तक की आर्थिक स्थिति की जांच तेजी से करनी होगी क्योंकि सरकारी क्षेत्र के लोगों के पास ही भ्रष्टाचार का कुबेर खजाना होगा तो अन्य निजी लोगों की बात ही क्या? प्रधानमंत्री शासन के जिम्मेदारी भरे बजट-2023 ने समावेशी आर्थिक समृद्धि और वैश्विक महत्वाकांक्षा के साथ उस ‘नए भारत’ की नींव रखी है, जो अपनी स्वाधीनता के सौवें वर्ष में साकार होगा। यह बजट ‘अमृत काल’ को सबसे अच्छे ढंग से रेखांकित करता है। निश्चित ही सरकार की नजर अमृतकाल पर है। उसी दृष्टि से रणनीतियां एवं योजनाएं बन रही है। पिछले वर्ष भी अमृतकाल बजट चर्चा के केन्द्र में था। भारत का केन्द्रीय बजट एवं मोदी सरकार की नीतियां भी बहुत हद
तक साल 2047 को लक्ष्य करके बनायी जा रही है। उस समय तक भारत को दुनिया का एक विकसित देश बना देने का विचार है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने की सबसे बड़ी बाधा है अनियंत्रित भ्रष्टाचार।

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भ्रष्टाचार मुक्त नौकरशाही बनाना अत्यावश्यक है क्योंकि नौकरशाही देश के विकास के कार्यों को प्रचालित करने में मेरुदंड का कार्य करती है साथ ही सुदृढ़ समाज की स्थापना भी करती है। अधिकारियों को सार्वजनिक जीवन में शुचिता के मापदंडों पर खरा उतरने के लिए पूरे प्रयास करने चाहिए। भारत के वरिष्ठ नौकरशाह और चीफ विजिलेंस कमिश्नर रहे एन विट्ठल ने कहा था कि राजनीतिज्ञों से ज्यादा नौकरशाह भ्रष्ट हैं, क्योंकि राजनेताओं को तो जनता एक समय बाद हटा सकती है, लेकिन नौकरशाह पूरी सेवा काल तक भ्रष्टाचार करता रहता है। काफी हद तक यह सही भी प्रतीत होता है, क्योंकि राजनेता पर प्रत्येक पांच वर्ष बाद चुने जाने का दबाव होता है, जो नौकरशाह पर नहीं होता है।आजादी
का अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र में अपेक्षित विकास न हो पाने के कारणों पर आकलन किया जाये तो भ्रष्टाचार सर्वोपरि है। भ्रष्टाचार के कारण एक तो कुछ ही लोगों के पास धन एकत्रित होता है, साथ ही बाजार में कृत्रिम वृद्धि लाता है जिससे वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती है और वस्तुएं गरीब व्यक्ति की पहुँच से बाहर हो जाती हैं।

भारत विश्व में तेजी से उभरती हुयी अर्थव्यवस्था है। लेकिन भारत में काला धन और भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है। वस्तुतः कालाधन अघोषित आय है जिस पर टैक्स की देनदारी बनती है लेकिन उसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को नहीं दी जाती। काले धन के उत्पन्न होने के कई कारण हैं जैसे स्मगलिंग, पोचिंग ड्रग्स, घोटाले, जालसाजी, भ्रष्टाचार आदि से काला धन उत्पन्न होता है। काले धन के कारण भारत में समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी है, जो भारत के समावेशी विकास में बाधा है। काले धन के कारण ही इस उभरती हुई अर्थव्यस्था में भ्रष्टाचार एक
गंभीर मुद्दा है। सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री बनते ही भ्रष्टाचार मुक्त भारत का संकल्प लिया। उन्होंने न खाऊंगा और न खाने दूंगा का शंखनाद किया, उनके दो बार के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने के लिये अनेक कठोर कदम उठाये गये है और उसके परिणाम भी देखने को मिले हैं, लेकिन भ्रष्टाचार फिर भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

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भ्रष्टाचार की जटिल से जटिल होती स्थितियों को देखते हुए ही केंद्रीय सतर्कता आयोग ने हाल ही में सरकारी संस्थानों, मंत्रालयों और नागरिकों के लिए छह बिंदुओं का सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा पत्र जारी किया, जिसमें उनसे भ्रष्टाचार मुक्त भारत की संकल्पना के साथ जुड़ने का आह्वान किया गया है। प्रतिज्ञा पत्र को आयोग ने भ्रष्टाचार मुक्त देश के लिए विशेष अभियान के तौर पर पेश किया है। राष्ट्र में भ्रष्टाचार के विरुद्ध समय-समय पर ऐसी क्रांतियां एवं प्रशासनिक उपक्रम होते रहे हैं। लेकिन उनका लक्ष्य, साधन और उद्देश्य शुद्ध न रहने से उनका दीर्घकालिक परिणाम संदिग्ध रहा है। प्रश्न है कि बजट हो या सरकार के संकल्प, या फिर सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा पत्र क्या इनका हश्र ढाक के तीन पात ही होना है? अमृत की राह में भ्रष्टाचार बड़ा रोड़ा है, देश को भ्रष्टाचार मुक्त करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी ही चाहिए।

हमारे देश में भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिए समय-समय पर प्रशासनिक सुधार पर बल दिया जाता रहा है। अनेक समितियां बनाई गयी, जिनकी रिपोर्ट में प्रशासनिक सुधार के महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट सुझाया गया, जिसमें नौकरशाही को पारदर्शी, जवाबदेह तथा मजबूत बनाया जा सके । इसी उद्देश्य से वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार भी लाया गया, जिसमें जनता, सरकारी कार्यों में सहभागिता को निर्धारित कर सके और जनता तथा सरकार के बीच नजदीकियां बढ़ें, ताकि पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सके और भ्रष्टाचार कम हो सके। सरकारी कार्यों में यदि जनता का हस्तक्षेप होगा, तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सकेगा, लेकिन भारत में नागरिक समाज की कमी एवं उदासीनता के कारण लोग मात्र अपने अधिकारों की अपेक्षा करते हैं, कर्तव्यों को तरजीह नहीं देते। इसी कारण लोग आरटीआइ का उपयोग निजी हित तथा दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए करने लगे जिससे आरटीआइ भी अपने लक्ष्यों से भटक गयी।

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सुशासन की अवधारणा भी भारत में अधूरी ही रही है, क्योंकि सुशासन का अर्थ ही यही है कि सरकार के कार्यों को कम करने के लिए लोगों की सहभागिता, लेकिन नागरिक समाज की कमी, उपेक्षा एवं उदासीनता उद्देश्यों को पूर्ण करने में बाधा बन रही है। भ्रष्टाचार ने तो भारत की शिक्षा व्यवस्था को भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। जैसे उच्च शिक्षा मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में भ्रष्टाचार के कारण देश में कुशल डॉक्टरों और इंजीनियरों के अभाव से देश को गुजरना पड़ रहा है। डॉक्टरों की अकुशलता के कारण मरीजों का कई बार सही इलाज न होने के कारण प्राण संकट में पड़ जाता है। अर्थात पैसे के बल पर ये लोग मेडिकल कालेजों में प्रवेश पाते हैं जो उसके योग्य होते ही नहीं हैं। इस तरह स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ खि़लवाड़ जघन्य अपराध है। भ्रष्टाचार के कारण ही मकान, जमीन, उच्च शिक्षा और ऐसी अनेक वस्तुओं के मूल्य में कृत्रिम वृद्धि होने के कारण देश की बहुत बड़ी आबादी इन वस्तुओं तक अपनी पहुँच बनाने में असमर्थ होती है।

प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार भ्रष्टाचार के माध्यम से जमा किया गया काला धन बेनामी संपत्ति को बढ़ाने के साथ साथ हवाला कारोबार को भी बल देता है। ऐसा प्रमाण है कि हवाला का उपयोग आतंकवादियों ने हथियारों की ख़रीद फरोख़्त में किया है। इसलिये देश को भ्रष्टाचार और काले धन नामक दीमक से मुक्त कराने हेतु कठोर कदम उठाए गये हैं।भ्रष्टाचार को बलशाली बनाती है रिश्वत। रिश्वत एक नासूर है। रिश्वत देने
वाला काम जल्दी होने की उम्मीद में रिश्वत दे रहा है। लेने वाला काम करने के बदले रिश्वत ले रहा है। यानी भ्रष्ट- व्यवस्था कायम हैं। काम में विलम्ब या आम आदमी को परेशान करना- यह भ्रष्टाचार को पोषित करने की जमीन है। भले ही अपेक्षित सारे काम करना सरकारी कर्मचारी-अधिकारी की जिम्मेदारी हो, फिर भी भ्रष्टाचार को शिष्टाचार एवं रिश्वत को एक तरह से सुविधा शुल्क मान लिया गया है और इसके लेन-देन को लेकर कहीं कोई अपराध बोध नहीं दिखाई देता। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर इस भ्रष्टाचार को खत्म कैसे किया जाए? क्या सिर्फ इस तरह के बजट-प्रावधान, सरकारी संकल्पों, प्रतिज्ञा पत्र से भ्रष्टाचार दूर होगा? असल में जरूरत है नीचे से लेकर ऊपर तक सुधार करने की। नीचे का व्यक्ति तभी सुधर सकता है, जब ऊपर बैठा हुआ व्यक्ति भी उस सुधार के लिए प्रेरित हो और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हो।

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आजकल राष्ट्र में थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद ऐसे-ऐसे घोटाले, आर्थिक काण्ड, प्रशासनिक रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार के किस्से उद्घाटित हो रहे हैं कि अन्य सारे समाचार दूसरे नम्बर पर आ जाते हैं। पुरानी कहावत तो यह है कि “सच जब तक जूतियां पहनता है, झूठ पूरे नगर का चक्कर लगा आता है।”भ्रष्टाचार देश में अगर बढ़ रहा है, तो किसकी जिम्मेदारी बनती है? भ्रष्टाचार को कौन खत्म करेगा? आजादी के 75वें साल में इस सवाल का उठना अपने आप में गंभीर बात है।इसीलिये आजादी के अमृत स्वप्न में भ्रष्टाचार से मुक्ति भी शामिल है।आज भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री अगर चिंता जता रहे हैं, तो देश अच्छी तरह से वस्तुस्थिति को समझ रहा है। प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि किसी के पास रहने को जगह नहीं और किसी के पास चोरी का माल रखने की जगह नहीं है।

देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से अध्यात्म की धारा को प्रवाहित करती आई है। हिंदू धर्म व संस्कृति की पोषक माने जाने वाली गंगा व यमुना के इस मायके में संतों-महात्माओं के तप करने की अनगिनत गाथाएं भरी पड़ी हैं। ऋषि-मुनियों ने ध्यान व तप कर देश दुनिया को यहां से सनातन धर्म की महत्ता का संदेश दिया है।आज भी यहां विभिन्न रूपों में मौजूद उनकी स्मृतियों से दुनिया प्रेरणा प्राप्त करती है। यहां कदम-कदम पर मठ-मंदिर अवस्थित हैं, जिनका तमाम पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इससे उनकी प्राचीनता, ऐतिहासिकता, आध्यात्मिकता व सांस्कृतिक महत्व का पता चलता है. इन अनगिनत देवालयों के अलावा यहां बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जैसे विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी स्थित हैं, जो सदियों से हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था के केंद्र रहे हैं। इस क्षेत्र के आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए पौराणिक समय से
लेकर आधुनिक काल तक प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधक व श्रद्धालु हिमालय की कंदराओं का रुख करते आए हैं और यही कारण रहा कि यह क्षेत्र देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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पूरे देश में जिस तरह से घूसखोर अधिकारी-कर्मचारी व नेता एंटी करप्शन ब्यूरो के शिकंजे में फंस रहे है, उससे लगता है कि भ्रष्टाचार चरम पर है। रिश्वत के बिना कुछ भी काम संभव नहीं। एक तरह से रिश्वतखोरी देश का सर्वमान्य धर्म बन गया है, जिसका पालन देश के अधिकांश लोग पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। यही वजह है कि रिश्वतखोरी के आधार पर बनाए गए भ्रष्ट देशों की सूची में भारत सबसे ऊपर है, जहां हर दूसरे व्यक्ति ने रिश्वत देने की बात मानी है। ट्रैस रिश्वत जोखिम मैट्रिक्स 2021 की हालिया रिपोर्ट में भारत 82वें स्थान पहुंच गया है। 2020में यह 77वें स्थान पर था। भारत में 74फीसदी का कहना है कि पिछले 3 सालों में रिश्वतखोरी बढ़ी है, जबकि दुनिया में यह बात स्वीकार करने वालों की संख्या 60 प्रतिशत है। इंडिया करेप्शन सर्वे के अनुसार घूसखोरी में राजस्थान सबसे आगे, बिहार दूसरे तो उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है।

वाशिंगटन की संस्था ग्लोबल फाईनेंशियल इंटिग्रिटी के अनुसार भारत में आजादी से लेकर अब तक रिश्वत ने 450अरब डॉलर का नुकसान कया है। पिछले साल भारत में काम करवाने के लिए 54 फीसदी लोगों ने रिश्वत दी, जबकि पूरी दुनिया की चौथाई आबादी घूस देने को मजबूर है रिश्वत लेना और देना अपराध है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए अभियान चल रहे हैं, रिश्वतखोरों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है, पर फिर भी भ्रष्टाचार का मर्ज खत्म नहीं हो रहा। हालात ये हैं कि उत्तराखंड में लोगों के सरकारी काम तब तक नहीं होते जब तक वो रिश्वत नहीं देते। रिश्वत दे दी तो काम मिनटों में हो जाता है, ना दी तो महीनों-महीनों चक्कर काटते रहो। हर दफ्तर का यही हाल है। उत्तराखंड के 50 फीसदी लोगों को सरकारी दफ्तरों में अपने काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है। ऐसा हम नहीं कह रहे, ये कहना है इंडिया करप्शन सर्वे 2019 की रिपोर्ट का। जिसने सूबे के सरकारी दफ्तरों में चल रहे रिश्वत के खेल की पोल खोलकर रख दी है।

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भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के मामले में उत्तराखंड के सरकारी विभाग अव्वल हैं। हम भ्रष्टाचार के समाधान की करें तो, भ्रष्टाचार के समाधान के लिए आवश्यक है कि भ्रष्टाचार संबंधी नियम और भी सख्त हों तथा भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले।इसके लिए सख्त और चुस्त प्रशासन अनिवार्य है । इस समस्या के निदान के लिए केवल सरकार ही उत्तरदायी नहीं है,इसके लिए सभी धार्मिक,सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को एकजुट होना होगा । सभी को संयुक्त रूप से इसे प्रोत्साहन देने वाले तत्वों का विरोध करना होगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भ्रष्टाचार, भारत को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णय कालखंड में कदम रखना जरूरी हो गया है। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत सामाजिक बहिष्कार रंगे हाथ पकड़ने की मानसिकता के लिए हर नागरिक को
जागरूक होना जरूरी है। यह लेखक के निजी विचार हैं।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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