हिमालय के नीचे बढ़ रहे तनाव से बड़े भूकंप (Earthquake) का खतरा
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर-पश्चिम हिमालय के नीचे सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले 20 सालों में आए 4500 से अधिक भूकंप के हल्के झटकों के बाद यहां भूगर्भ में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है।जमीन के नीचे खिंचाव की स्थिति है।यह तनाव गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र में मेन सेंट्रल थर्स्ट जोन के दक्षिण में दर्ज किया जा रहा है। भूकंप के लिहाज से इस लॉक जोन में पैदा तनाव आगे नहीं बढ़ने से दिक्कतें बढ़ रही हैं। भूगर्भ में पत्थरों की जटिल संरचना अवरोध पैदा कर तनाव को दक्षिण दिशा में आगे नहीं बढ़ने दे रही है। इससे यह स्ट्रेस चमोली और आसपास के क्षेत्र में ही निकल रहा है। यह तनाव इस क्षेत्र में बड़े भूकंप का खतरा भी बढ़ा रहा है।
रिसर्च में बताया कि उत्तर-पश्चिम हिमालय क्षेत्र भूकंप के लिहाज से लॉक जोन है। 1905 के कांगड़ा भूकंप और 1934 के बिहार-नेपाल भूकंप के बीच का यह गैप जोन है, जहां 250 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया। इससे पहले यहां तीव्र भूकंप दर्ज किया गया था। लेकिन इस गैप एरिया में 12 से 25 किमी गहराई में 1.8 से 5.7 मैग्नीट्यूट के हल्के भूकंप के झटके लगातार दर्ज किए जा रहे हैं। उच्च हिमालय क्षेत्र में चमोली और आसपास भूकंप के हल्के झटकों के हाइपोसेंटर यानी तनाव जमीन के अंदर और उसके आसपास जमा हो रहा है। चमोली क्षेत्र में भूगर्भ में स्ट्रेस के कारण सर्वाधिक एनर्जी निकल रही है। इस स्ट्रेस ड्रॉप से लगातार तरंगें निकल रही हैं।
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साफ्टवेयर की मदद से तरंगों का अध्ययन कर तनाव का आंकलन किया गया है।यह पाया गया कि इस इलाके में तनाव उत्तराखंड में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक और तेजी से बढ़ रहा है। यह यहीं उत्पन्न होकर यहीं पर डिसॉल्व हो रहा है। उच्च हिमालय के 12 से 14 किमी.गहराई में इस दबाव का बढ़ना पाया गया है। देहरादून भी भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है। यहां पर शहंशाही आश्रम से मसूरी की ओर मेन बाउंड्री थर्स्ट गुजरती है, लेकिन चमोली रेंज में जमीन के नीचे बढ़ने वाला तनाव दक्षिण दिशा में नहीं बढ़ पा रहा है। नीचे पत्थरों की जटिल संरचना भूकंप को देहरादून की ओर बढ़ने से रोक रही है। इस कारण चमोली रेंज में बढ़ते तनाव का देहरादून पर कोई खास असर नहीं दिख रहा बड़े भूकंप के खतरे की चेतावनी के बाद से गातार वैज्ञानिक शोध करने में जुट गए हैं।
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इसी बीच रुड़की समेत तीन आईआईटी के भूकंप वैज्ञानिकों का एक शोध सामने आया है। जिसमें उन्होंने चौंकाने वाला खुलासा किया है इसके मुताबिक अगर मसूरी और नैनीताल में बड़ा भूकंप आता है तो मसूरी में 1054 करोड़ और नैनीताल में 1447 करोड़ का नुकसान होगा। यह नुकसान मैदानी क्षेत्र में मसूरी की तुलना में 200 करोड़ और नैनीताल की तुलना में 100 करोड़ कम होगा। जनवरी 2019 में एमएचआरडी भारत सरकार ने इंप्रिंट-2 स्कीम के तहत च्नेक्स्ट जेनरेशन अर्थक्वेक लॉस एस्टीमेशन टूल फॉर हिली रिजनज् नाम का एक प्रोजेक्ट आईआईटी रुड़की, आईआईटी रोपड़, मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर और नोएडा की रिस्क मैनेजमेंट सॉल्यूशन को दिया था।
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आईआईटी रुड़की ने आने वाले 50 वर्षों में बड़े और अपेक्षाकृत कम तीव्रता के भूकंप में हिमालयी क्षेत्र में होने वाले भवनों के नुकसान का आकलन किया है। हिमालय क्षेत्र में जल्द ही बड़ा भूकंप आ सकता है। उन्होंने कहा है कि रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 8 रह सकती है। जिससे भारी तबाही हो सकती है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि संरचनाओं को मजबूत करके जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति व ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत है।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )