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…तो डोईवाला से इस कारण पलटी मार गए त्रिवेंद्र रावत!

admin
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मामचन्द शाह

उत्तराखंड की राजनीति में आज की सबसे बड़ी खबर सामने आई है। जहां पूर्व मुख्यमंत्री एवं डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत विधानसभा चुनाव 2022 का रण लडऩे से पहले ही पलटी मार गए हैं। त्रिवेंद्र के इस निर्णय से जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए तीन सीटों पर समीकरण बदलने की संभावना है, वहीं भारतीय जनता पार्टी से हाल ही में निष्कासित किए गए कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह का जलवा एक बार फिर से डोईवाला में भी देखने को मिले तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

दरअसल त्रिवेंद्र सरकार के दौरान लिए गए निर्णयों के कारण पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत व भारतीय जनता पार्टी की बहुत किरकिरी हुई थी। उनको जनता के आक्रोश का तब एहसास हुआ, जब वे केदारनाथ धाम में बाबा केदार के दर्शनों को जा रहे थे। तब उन्हें धाम के प्रांगण तक में नहीं घुसने दिया गया और उन्हें काले झंडे दिखाकर उनका भारी विरोध किया गया। उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली मर्तबा हुआ होगा, जब बाबा केदार जैसे आस्था के केंद्र से प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री जैसे गरिमामय माननीय को बाबा के दर्शन नहीं करने दिए गए। बताया जाता है कि त्रिवेंद्र रावत ने तभी चुनाव न लडऩे का फैसला ले लिया था।

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बताया गया कि बाद में जब त्रिवेंद्र रावत देहरादून पहुंचे तो अपने से पूर्व मुख्यमंत्रियों के हश्र का आकलन किया। उन्होंने पाया कि जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी जैसे ईमानदार मुख्यमंत्री भी 2012 के चुनाव में कोटद्वार से हार गए थे। उसके बाद 2017 के चुनाव परिणामों पर नजर गई तो पाया कि हरीश रावत, जो स्वयं को गाड-गदेरों का बेटा कहते हैं, हरिद्वार ग्रामीण व किच्छा दो सीटों पर चुनाव लडऩे के बावजूद जनता ने उन्हें बुरी तरह नकार दिया। यही कारण था कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने चुनाव न लडऩे का दूरगामी फैसला लिया है।

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यही नहीं पिछले दिनों से त्रिवेंद्र की विधानसभा सीट पर हरक सिंह रावत की नजर भी थी। उन्होंने ये बात सार्वजनिक भी की थी कि वे डोईवाला से चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। बताते चलें कि एक ही सरकार व पार्टी में पांच साल काटने के बावजूद हरक सिंह व त्रिवेंद्र रावत एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। हरक सिंह के खौफ से भी त्रिवेंद्र की चुनाव लडऩे से पलटी मारने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि यह अलग बात है कि हरक सिंह अभी भी कांग्रेस में शामिल होने की जद्दोजहद कर रहे हैं। बावजूद इसके यदि उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के बाद डोईवाला सीट पर चुनाव लड़ाया गया तो वे इस विधानसभा सीट के समीकरण बिगाडऩे की कुव्वत रखते हैं।

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हालांकि चर्चा यह भी है कि त्रिवेंद्र के चुनाव न लडऩे के बाद इस सीट पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचन्द अग्रवाल को चुनाव लड़ाया जाएगा। इसके अलावा ऋषिकेश सीट पर सुबोध उनियाल चुनावी रण में ताल ठोकेंगे और नरेंद्रनगर सीट पर इस बार ओमगोपाल रावत को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। हालांकि अभी यह सिर्फ ये चर्चाएं मात्र हैं।

इस सबके इतर क्षेत्रवासी यह भी बताते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव न लडऩे के पीछे डोईवाला सीट पर उत्तराखंड क्रांति दल के मजबूत दावेदार पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल द्वारा मिल रही राजनीतिक चुनौतियों के कारण पूर्व मुख्यमंत्री मैदान से पीछे हटे। डोईवाला क्षेत्र में पहली बार शिव प्रसाद सेमवाल के रूप में उक्रांद जैसे क्षेत्रीय दल का कोई उम्मीदवार इस तरह मुख्य मुकाबले में बना हुआ है।

बहरहाल, एक सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वयं के लिए बड़ा दूरगामी फैसला लिया है। अब डोईवाला के चुनावी मैदान में किस प्रत्याशी के सिर ताज सजेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, किंतु जिस तरह से पूर्व सीएम वक्त की नजाकत को भांपने में सफल रहे, वह त्रिवेंद्र जैसे कोई दूरदर्शी नेता ही कर सकता है!

 

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