शिक्षा व्यवस्था (Education System) का बुरा हाल, कैसे बदलेगी पहाड़ की तस्वीर? - Mukhyadhara

शिक्षा व्यवस्था (Education System) का बुरा हाल, कैसे बदलेगी पहाड़ की तस्वीर?

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शिक्षा व्यवस्था (Education System) का बुरा हाल, कैसे बदलेगी पहाड़ की तस्वीर?

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में सरकारी शिक्षा के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुणवत्ता की है। 20 प्रतिशत से अधिक सरकारी विद्यालयों में बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर, शौचालय, बिजली, पानी, खेल के मैदान जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं अथवा नहीं होने जैसी हालत में हैं। 600 से अधिक प्राथमिक विद्यालय एकल शिक्षकों के भरोसे संचालित हो रहे हैं।उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा के लिए बजट की कोई कमी नहीं है। अकेले समग्र शिक्षा
परियोजना के तहत उत्तराखंड को इस बार केंद्र से 1196 करोड़ रूपये की धनराशि प्राप्त हुई है।

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इसके अलावा राज्य सरकार भी प्रदेश के 13,930 प्राथमिक विद्यालयों और 2314 राजकीय इंटर कालेजों में फर्नीचलर, भवन, कक्ष-कक्षा, चोहर दिवारी, पेयजल, विद्युतीकरण, छात्र-छाात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, पुस्तकालय, निश्शुल्क किताबों, स्मार्ट क्लासेस, खेल सामग्री,खेल मैदान, ड्रेस, जूते इत्यादि पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सौंदर्यीकरण के लिए यूथ एं ईको क्लाबों को प्रतिवर्ष अनुदान दिया जा रहा है। इसके बावजूद सरकारी विद्यालय बदहाल है। इससे साफ है कि यहां नियुक्ति शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारी सरकारी नौकरी मिलने का सुख भोग रहे हैं, जिससे उनकी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी की इच्छाशिक्त शून्य होती जा रही है।

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विद्यालयी शिक्षा के उन्नयन की जिम्मेदारी अकेले शिक्षक व शिक्षा विभाग से जुडे अधिकारियों की ही नहीं है, यह अभिभावकों और समाज के प्रत्येक व्यक्ति की है। हां इतना जरूर है कि सरकारी विद्यालयों का सौंदर्यीकरण की पहली जिम्मेदारी विद्यालय शिक्षक, स्टाफ और छात्र-
छात्राओं की है। छात्र को पौधरोपण से लेकर सौंदर्यीकरण के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है। जब रंग-रोगन से लेकर सौंदर्यीकरण तक का बजट दिया जा रहा है तो फिर कई स्कूल भवनों में वर्षां से रंगाई क्यों नहीं हुई। इसकी रिपोर्ट विभाग से मांगी गई है।शिक्षा मंत्री की बैठक के बाद विभागीय अधिकारियों ने अपने क्षेत्र के सरकारी कुछ विद्यालयों का जब धरातलीय निरीक्षण किया तो उन्हें भी कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव दिखा।जिसके बाद शिक्षा महानिदेशक ने समस्त जनपदों के मुख्य शिक्षा अधिकारी को पत्र प्रेषित कर विद्यालयों की सुविधाओं और सादर्यीकरण की रिपोर्ट तलब की।

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महानिदेशक ने बताया कि विद्यालयों के लिए कलर कोड निर्धारित है। लेकिन देखने में आया कि कई विद्याश्ल कलर कोड का ध्यान नहीं दख रहे हैं। विद्यालयों की इस प्रकार की बुनियादी सुविधाएं की निगरानी और रिपोर्ट तैयार करने जिम्मेदारी जनपद स्तर पर मुख्य शिक्षा अधिकारी और खंड स्तर पर खंड शिक्षा अधिकारी को इस कार्य के लिए नोडल अधिकारी नामित किया गया। रिपोर्ट शिक्षा मुख्यालय तलब करने के बाद भी मुख्य शिक्षा अधिकारी अपने जनपद के विद्यालयों का धरातलीय निरीक्षण करते रहेंगे। शिक्षा विभाग पोर्टल पर सभी सरकारी विद्यालयों में पेयजल और शौचालय उपलब्ध होने के दावे तो करता है लेकिन विभागीय मंत्री ने  की बदहाली बयां कर अधिकारियों के आंखें खोल दी।

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प्रदेश में स्कूलों की छात्र संख्या बढ़ाना हमेशा शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। वहीं बेहद कम छात्र संख्या वाले स्कूल अब शिक्षा विभाग के लिए बोझ हो गए हैं। जिन विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम हो रही है, ऐसे स्कूलों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जिस कारण पिथौरागढ़ में 183 स्कूल बंद कर दिए गए हैं। गौर हो कि प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने की बात तो करती है, लेकिन जमीनी हकीकत ठीक उलट दिखाई दे रहे है। पिथौरागढ़ जनपद के विद्यालयों की हालात दिनों दिन बद से बदत्तर होती नजर आ रही है।सीमांत जिला मुख्यालय में छात्र संख्या शून्य होने से जनपद में 158 प्राथमिक विद्यालय और 25 उच्च प्राथमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं।अभिभावकों का रुझान भी निजी स्कूलों की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। विद्यालयों में संसाधन जुटाने, स्मार्ट क्लास, व्यावसायिक शिक्षा जैसी व्यवस्था केंद्रपोषित योजना समग्र शिक्षा अभियान के भरोसे है। पूंजीगत मद में बेहद कम बजट होने के बाद भी कड़वी सच्चाई यह है कि इस बजट का भी भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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