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एंटीबायोटिक(Antibiotics) का अत्यधिक सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक

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एंटीबायोटिक(Antibiotics) का अत्यधिक सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड पुलिस की एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने हरिद्वार के गंगनहर क्षेत्र स्थित मतलबपुर गांव में नकली दवा फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया है।एसटीएफ ने यहां से करीब 25 लाख रुपये कीमत की नकली एंटीबायोटिक दवाइयां और 25 लाख रुपये की दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कच्चे माल की खेप बरामद की थी। पहली एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन की खोज 1928 में हुई थी। एंटीबायोटिक की खोज से पहले बैक्टीरियल इंफेक्शन के शिकार मरीजों को बचाना डॉक्टरों के लिए मुश्किल होता था। पेनिसिलिन की खोज ने इलाज के तौर-तरीके बदल दिए। तब से अब तक 100 से ज्यादा तरह की एंटीबायोटिक दवाएं बन चुकी हैं, जिनका इस्तेमाल अलग-अलग बीमारियों के इलाज में किया जाता है। लिवर इन दवाओं को तोड़ता है। फिर वहां से खून के जरिए दवा शरीर में पहुंचती है और जहां बैक्टीरिया मिलते हैं, उन्हें मार देती है। पेनिसिलिन की तरह ही सेफैलेक्सिन, एजिथ्रोमाइसिन पॉपुलर एंटीबायोटिक दवाएं हैं।

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आजकल सामान्य खांसी-जुकाम में भी एंटीबायोटिक दे दी जाती है, जिसकी जरूरत नहीं होती है। पत्र में कहा गया है कि बैक्टीरियल AMR का 2019 में 1.27  मिलियन वैश्विक मौतों से सीधा संबंध था।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के लेटर में कहा गया है कि एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस (AMR) ग्लोबल तौर पर बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक है। एक अनुमान के मुताबिक, 2019 में लगभग 13 लाख मौतों के लिए बैक्टीरियल AMRसीधे तौर पर जिम्मेदार था। इसके अलावा 50 लाख मौतें ड्रग रेजिस्टेंस इंफेक्शन से हुई हैं।दरअसल, 20वीं सदी के शुरुआत से पहले सामान्य और छोटी बीमारियों से भी छुटकारा पाने में महीनों लगते थे, लेकिन एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स (एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल दवाएं) के इस्तेमाल से बीमारियों का तुरंत इलाज होने लगा।

एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार- बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेता है। इसके बाद इसे ठीक करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है। इसे ही एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) कहते हैं। भारत में दवाओं से जुड़े कानूनों के तहत सभी तरह की एंटीबायोटिक्स को H और H1 जैसी कैटेगरी में रखा गया है, जिन्हें बिना डॉक्टर के पर्चे के नहीं बेचा जा सकता। लेकिन, लोग मेडिकल स्टोर से बेरोकटोक ये दवाएं खरीद रहे हैं। हेल्थ वर्कर्स से लेकर फार्मासिस्ट, झोलाछाप डॉक्टर तक एंटीबायोटिक्स के बेधड़क इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं।

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एंटीबायोटिक्स महत्वपूर्ण औषधियाँ हैं। कई एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण (जीवाणु संक्रमण) का सफलतापूर्वक इलाज कर सकते हैं। एंटीबायोटिक्स बीमारी को फैलने से रोकसकते हैं। और एंटीबायोटिक्स गंभीर रोग जटिलताओं को कम कर सकते हैं। लेकिन कुछ एंटीबायोटिक्स जो बैक्टीरिया संक्रमण के लिए विशिष्ट उपचार हुआ करते थे, अब उतना अच्छा काम नहीं करते हैं। और कुछ दवाएं कुछ जीवाणुओं के विरुद्ध बिल्कुल भी काम नहीं करती हैं। जब कोई एंटीबायोटिक बैक्टीरिया के कुछ उपभेदों के खिलाफ काम नहीं करता है, तो उन बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक प्रतिरोधी कहा जाता है। एंटीबायोटिक प्रतिरोध दुनिया की सबसे जरूरी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। सर्दी और अन्य वायरल बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक्स लेना काम नहीं करता है – और यह ऐसे बैक्टीरिया पैदा कर सकता है जिन्हें मारना कठिन होता है। बहुत बार या गलत कारणों से एंटीबायोटिक लेने से बैक्टीरिया में इतना बदलाव आ सकता है कि एंटीबायोटिक्स उनके खिलाफ काम नहीं करते हैं। इसे जीवाणु प्रतिरोध या एंटीबायोटिक प्रतिरोध कहा जाता है।

लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार-बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेती है। इसके बाद इसे ठीक करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है। इसे ही एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं। ऐसी स्थिति में इलाज तो ठीक से हो नहीं पाता बल्कि लिवर में टॉक्सिन जमा होने लगता है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने हाल ही में एक सर्वेक्षण में पाया कि अध्ययन के लिए सर्वेक्षण किए गए लगभग 10,000 अस्पताल के मरीजों में से आधे से अधिक को संक्रमण का इलाज करने के बजाय रोकने के लिए
एंटीबायोटिक्स दिए गए थे। यह एक चिंताजनक संकेत है क्योंकि भारत दुनिया भर में दवा प्रतिरोधी रोगजनकों के सबसे बड़े बोझ में से एक है, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के बड़े मामले सामने आते हैं।

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एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग – विशेष रूप से तब एंटीबायोटिक लेना जब वे सही उपचार न हों एंटीबायोटिक प्रतिरोध को बढ़ावा देता है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के अनुसार, लोगों में लगभग एक- तिहाई एंटीबायोटिक का उपयोग न तो आवश्यक है और न ही उचित है।एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण का इलाज करते हैं। लेकिन वे वायरस से होने वाले संक्रमण (वायरल संक्रमण) का इलाज नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, बैक्टीरिया के कारण होने वाले स्ट्रेप गले के लिए एंटीबायोटिक सही इलाज है। लेकिन यह अधिकांश गले की खराश के लिए सही इलाज नहीं है, जो वायरस के कारण होती हैं। भारत ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी-एएमआर) को लागू करके, रोगाणुरोधी प्रतिरोध कम करने में एक बड़ा कदम उठाया है, जो दुनिया भर में बढ़ती चिंता का विषय बन रहा है। यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना का एक प्रमुख घटक है। यह रणनीति स्वास्थ्य कर्मियों, आम जनता के साथ-साथ पशु चिकित्सा और कृषि उद्योगों में हितधारकों को शिक्षित करने के महत्व पर जोर देती है।

यह शैक्षिक पहल जिम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देने और एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को कम करने में महत्वपूर्ण है। योजना मानती है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध केवल मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती नहीं है; यह पशु चिकित्सा और पर्यावरणीय सेटिंग में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग का भी परिणाम है। जिनमें स्वास्थ्य, पशुपालन, कृषि और पर्यावरण के लिए जिम्मेदार मंत्रालय शामिल हैं।रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना मजबूत डेटा संग्रह और निगरानी के महत्व को रेखांकित करती है। इसमें कृषि, मानव स्वास्थ्य और पशु चिकित्सा क्षेत्रों में
एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग की बारीकी से निगरानी करना शामिल है। हर दिन, हजारों लोग संक्रामक रोगों के इलाज के लिए अस्पतालों में भर्ती होते हैं जिन्हें एंटीबायोटिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

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अस्पताल में भर्ती मरीजों के बीच एंटीबायोटिक का दुरुपयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध , प्रतिकूल घटनाओं और उपचार लागत का प्रमुख कारण है । प्रभावी और तर्कसंगत चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए अस्पताल की सेटिंग में एंटीबायोटिक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि मरीज़ों के लिए एंटीबायोटिक नुस्खे बढ़ाने के उपायों से मरीज़ों को मदद मिल सकती है। स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों को अनुचित इनपेशेंट प्रिस्क्राइबिंग को कम करने में सहायता करने के लिए, यह निर्धारित करना आवश्यक है कि अस्पतालों में कितनी बार गलत
इनपेशेंट प्रिस्क्राइबिंग होती है और कम प्रिस्क्राइबिंग से मरीजों को कितना लाभ होगा। एंटीबायोटिक नुस्खे दिशानिर्देशों की निगरानी और अनुपालन को लागू करने के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा होना चाहिए। इसमें गैर-अनुपालन को दंडित करने और अनुपालन को प्रोत्साहित करने के तंत्र शामिल हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध पैटर्न की नियमित निगरानी महत्वपूर्ण है। दिशानिर्देशों की प्रभावशीलता का आकलन समय के साथ प्रतिरोध पैटर्न में परिवर्तनों को ट्रैक करने और सुधारात्मक कार्रवाई करने की क्षमता से किया जा सकता है। प्रतिरोध को कम करने के लिए आरक्षित एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुंच को प्रतिबंधित करना महत्वपूर्ण है।

एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रमुख कारक हैं। आम जनता, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता
और अस्पताल सभी दवाओं का सही उपयोग सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध की वृद्धि कम हो सकती है। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर और विशेष रूप से फार्मासिस्ट दवा के दुरुपयोग और दवा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं निभा सकते हैं।फार्मासिस्टों द्वारा उचित और प्रभावी रोगी शिक्षा और परामर्श नैदानिक, आर्थिक और मानवतावादी परिणामों सहित रोगियों के इलाज के लिए वांछित परिणाम प्राप्त करने की कुंजी है। दवाओं को लिखते और वितरित करते समय रोगियों को उनके बारे में शिक्षित करके और वे उनका उचित उपयोग कैसे कर सकते हैं, दवा के दुरुपयोग और दुरुपयोग को रोका/कम किया जा सकता है।

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दवाओं के दुरुपयोग और दुरुपयोग की जटिलताओं के बारे में जनता, रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच जागरूकता बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक है। दवाओं के दुरुपयोग और दुरुपयोग को रोकने के लिए दवा वितरण नियमों का पालन करना और निर्धारित और नियंत्रित दवाओं का वितरण रोकना बहुत महत्वपूर्ण है। एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस ((DGHS)) ने भारत के सभी फार्मासिस्ट एसोसिएशन्स को लेटर लिखा है। इसमें फार्मासिस्ट्स से अपील की गई है कि वे एंटीबायोटिक की दवा डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन के बिना न दें। देश में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ गया है, जो इंसान के स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसान है।

एंटी माइक्रोबायल्स में एंटी सेप्टिक, एंटी बायोटिक,एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी पेरासाइटिक दवाएं शामिल हैं।अगर मरीज लो एंटीमाइक्रोबायल्स लेने की सलाह दे रहे हैं तो इसका कारण भी बताएं। रोगाणुरोधी प्रतिरोध दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है और इससे सालाना लाखों लोगों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2019 में विश्व में बैक्टीरियल एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध 12 लाख 70 हजार लोगों की मौत से जुड़ा था। इसी को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाले DGHS ने लेटर में डॉक्टर्स से अपील की गई है कि वे एंटीमाइक्रोबायल्स दवाओं को ज्यादा बढ़ावा न दें और आदेशों को प्रभावी रूप सुनिश्चित करें।

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यह लेखक के निजी विचार हैं।

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