बेहद चुनौती भरा रहा 'हरिवंश राय बच्चन' का जीवन फिर भी मिली कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां - Mukhyadhara

बेहद चुनौती भरा रहा ‘हरिवंश राय बच्चन’ का जीवन फिर भी मिली कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां

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बेहद चुनौती भरा रहा ‘हरिवंश राय बच्चन’ का जीवन फिर भी मिली कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हिंदी के प्रसिद्द कवि, हरिवंश राय “बच्चन” का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के छोटे से गाँव बाबूपट्टी में हुआ। 19 वर्ष की आयु में उनका विवाह श्यामा से हुआ जो उस समय 14 वर्ष की थी। दस वर्ष बाद ही 1936 में बीमारी के कारण श्यामा का निधन हो गया। उसके पांच साल बाद बच्चन ने तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थी। हरिवंश राय बच्चन ने दर्जनों कविताओं की रचना की जिसमें, मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), और चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962) शामिल हैं।

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हरिवंश राय बच्चन के लिखे कुल 26 काव्‍य संग्रह हैं। उन्होंने हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में पढ़ाई की और वो हिंदी के जाने माने कवि बने। उन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली। उन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली. उसके बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध करते हूए पीएचडी की उसके बाद उन्होंने अंग्रेजी अध्यापन के अलावा उन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी अनुवादक के रूप में भी काम किया। साहित्य में योगदान के लिए उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1976 में
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण दिया। इससे पहले उनको “2चट्टानों” के लिए 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था।

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साल 1971 में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था “कभी-कभी”। इस फिल्म का गाना ‘कभी-कभी मेरे दिल में, खयाल आता है’, एक पॉपुलर रोमांटिक सॉन्ग बन गया था। आज भी यह गाना काफी लोकप्रिय है। इसी फिल्म में अमिताभ बच्चन के माता-पिता तेजी बच्चन और हरिवंश राय बच्चन एक्ट्रेस राखी के माता-पिता की भूमिका में नजर आए थे।इसमें राखी और शशि कपूर के साथ शादी का एक सीन फिल्माया गया था। फिल्म “कभी-कभी” साल 1976 में रिलीज हुई थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, राखी, वहीदा रहमान, ऋषि कपूर, नीतू सिंह, सिमी ग्रेवाल आदि मुख्य रोल मेंथे। हरिवंश राय बच्चन का असली नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था।

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दरअसल, बचपन में गांव वाले उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ कहकर बुलाते थे। क्योंकि’बच्चन’ का मतलब ‘बच्चा’ होता है। फिर बाद में कवि हरिवंश राय श्रीवास्तव न रहकर हरिवंश राय बच्चन के नाम से ही मशहूर हुए। हरिवंश राय बच्चन ने अपने बेटे अमिताभ की कई फिल्मों के गाने लिखे थे। इनमें सबसे ज्यादा पॉपुलर रहा उनका होली गीत ‘रंग बरसे’। यह गाना अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘सिलसिला’ में फिल्माया गया था। अपने पिता के इस सुपरहिट गाने को अमिताभ ने गाया था। हरिवंश राय ने ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’ (लावारिस), ‘कोई गाता मैं सो जाता’ (अलाप), और ‘सांझ खिले भोर झड़े’ (फिर भी) जैसे गाने लिखे। इसके साथ ही हरिवंश द्वारा लिखी गई कविता ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’ बॉलीवुड फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ में ली गईथी।

प्रेरणादायक कविता
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर ।
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है ।।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा।
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है।
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है।।
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि!
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले ।।
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली।
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे ।।
सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला ।।
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब।
बचपन वाला च्इतवारज् अब नहीं आता ।।
शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं।
अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं ।।
जीवन की भाग-दौड़ में।
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है ।।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम,
और;
आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है ।
कितने दूर निकल गए,
रिश्तों को निभाते निभाते,
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते ।।
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहुत हैं।
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते ।।
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ।
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ ।
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगों से
रिश्ता रखता हूँ ।

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मधुशाला पढ़ने वालों को लगता था कि इसके रचयिता शराब के बहुत शौकीन होंगे। हकीकत तो यह थी कि हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन में कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया। बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता संग्रह से देश के युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है और वह शराब की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके चलते वो हरिवंश राय बच्चन से काफी नाराज भी हो गए थे। उस दौर में मधुशाला का और भी कई जगह विरोध हुआ था। लेकिन कवि बच्चन की यही सबसे बड़ी पहचान बनी। अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से लोगों के दिल में अमरत्व प्राप्त कर लेने वाले इस महान कवि नें 18 जनवरी, 2003 पर इस संसार को अलविदा कहा।उनकी मौत शरीर के महत्वपूर्ण अंग खराब हो जाने के कारण हुई थी। मृत्यु के वक्त उनकी आयु 95 वर्ष थी। हालावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंशराय बच्चन शुष्क एवं नीरस विषयों को भी सरस ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। वे छायावादोत्तर युग के प्रख्यात कवि हैं।

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हरिवंशराय बच्चन जैसे महान और उच्च कोटी की विचारधारा वाले कवि सदियों में जन्म लेते हैं। जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु ही होता है, पर कुछ लोग अपने सत्कर्म और सद्गुणों की ऐसी छाप छोड़ जाते हैं जिस कारण समाज उन्हे आने वाले लंबे समय तक याद करता है। स्वर्गीय रचनाकर हरिवंश राय बच्चन को हमारा शत-शत नमनहैं।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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