ठंड में भी आग से धधक रहे हैं जंगल, लाचार दिख रहा वन विभाग (Forest department)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
इस वर्ष सर्दियों के मौसम में बारिश और कम बर्फबारी के कारण प्रदेश में जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ गई हैं। वन विभाग में भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की ओर से अब तक एक हजार से अधिक फायर अलर्ट मिले हैं, जो एक चिंताजनक विषय है। इससे पर्यावरण और ग्लेशियरों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है। उत्तराखंड में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। लगातार तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके बाद भी जंगलों में लग रही आग चिंता का विषय बन गई है। सुबह-शाम कड़ाके की ठंड हो रही है। बारिश न होने से दिन में धूप तेज हो रही है। जंगलों में आग सुलग गई है। वन विभाग भी लाचार बना हुआ है। कई बार बादल छाने के बाद भी बरसात नहीं हो रही है। यदि समय रहते दावाग्नि पर वन विभाग ने नियंत्रण नहीं किया, तो स्थिति ठंड में और भी भयावह हो सकती है। इससे कौसानी,बैजनाथ व ग्वालदम पहुंचने वाले पर्यटकों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
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बीते कुछ वर्षों में प्रदेश में सर्दियों के मौसम में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसका प्रमुख कारण बारिश और बर्फबारी का नहीं होना , खरपतवार को जलाना और मानव त्रुटि को बताया जा रहा है। हालांकि, बीते वर्ष इस समय तक वनाग्नि की करीब 500 ही घटनाएं सामने आईं थीं। इस बार यह आंकड़ा दोगुना पार कर गया है। वनाग्नि की घटनाओं में अब तक प्रदेशभर में करीब 150 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। इस वर्ष प्रदेश में पर्वतीय जिलों टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग चमोली सहित कुमाऊं के कुछ हिस्सों में जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। वन विभाग की ओर से वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए 28 बिंदुओं पर एडवाइजरी भी जारी की गई है। इसके साथ ही फायर लाइन काटने के भी निर्देश दिए गए हैं।
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मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि और आपदा प्रबंधन ने बताया कि प्रदेश में भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की ओर से वनाग्नि के अलर्ट मिले हैं। प्रभागों में डीएफओ और रेंज अधिकारियों की ओर से इनका भौतिक सत्यापन कराया जा रहा है। उन्होंने कहा, कई जगह कंट्रोल बर्निंग और फायर लाइन के लिए भी आग लगाई जाती है। एफएसआई के फायर अलर्ट में ऐसी आग भी दर्ज होती है। प्रमुख वन संरक्षक ने बताया, प्रभागों के अंतर्गत स्थापित क्रू स्टेशनों, मॉडल क्रू स्टेशनों, प्रभागीय कंट्रोल रूम को सक्रिय करते हुए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा, वनाग्नि प्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर भी जन सहयोग के लिए कहा गया है। इसके अलावा वनों को आग से बचाने के लिए समुदाय आधारित संगठनों, वन पंचायतों, महिला-युवा मंगल दलों के साथ अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ाने के निर्देश वन प्रभागों को दिए गए हैं। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला लगातार जारी है।
बात कुमाऊं मंडल की करें तो यहां के जंगलों में पिछले एक महीने से कई जगहों पर आग लग चुकी है।अभी भी पहाड़ों पर कई जगह पर आग लगी हुई है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी आग की घटनाओं को रोकने के बजाय अपना-अलग तर्क दे रहे हैं। मौसम सर्दी का है, लेकिन पहाड़ के जंगलों में आग लगने का सिलसिला जारी है. यही आलम रहा तो आने वाले गर्मी के दिन में वन विभाग के लिए आग लगने की घटनाएं चुनौती खड़ी कर सकते हैं। पहाड़ों पर आग लगने की घटनाओं से वन संपदा को भारी नुकसान पहुंच रहा है। वहीं वन्यजीवों को भी खतरा बना हुआ है। 15 फरवरी से वन विभाग का फायर सीजन शुरू होता है। लेकिन फायर सीजन से पहले ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी हैं। यही नहीं पिथौरागढ़ के जंगलों से आग लगने की कई घटनाएं सामने आ रही हैं।
मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं पीके पात्रों ने बताया कि वन विभाग का 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू होता है। लेकिन पहाड़ों पर बारिश नहीं होने के चलते जंगलों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों पर आग लगने की घटनाएं कुमाऊं के साथ-साथ पूरे प्रदेश में सामने आई हैं। बढ़ते तापमान के बीच नमी कम होने से वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि देखी गई। इसे देखते हुए वन विभाग ने 15जून को फायर सीजन समाप्त होने के बाद भी क्रू स्टेशनों को सक्रिय रखने के साथ वनाग्नि बुझाने के लिए नियुक्त अस्थायी कर्मचारियों को भी सेवा में बनाए रखा। इस बार अल्मोड़ा वन प्रभाग में आग लगने की सर्वाधिक 113 घटनाएं हुई। इसमें वन विभाग के अलावा सिवल सोयम, वन पंचायत क्षेत्र का 152.8 हेक्टेयर जंगल जला। इससे 4.77 लाख से अधिक का नुकसान हुआ। पिथौरागढ़ जिले में 104 घटनाओं से 111 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र जला और करीब 2.98 लाख की क्षति हुई। चंपावत जिले में25 घटनाओं में 15.52 हेक्टेयर जंगल जला, जबकि 34,160 रुपये की क्षति दर्शाई है। सबसे कम 27,730 रुपये का नुकसान हल्द्वानी वन प्रभाग को हुआ है।
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जंगलों में लगने वाली आग को समझने और उसे रोकने के लिए देश में जलवायु और जंगलों की विविधता को बहुत करीब से देखने की जरूरत है। उनके मुताबिक कम विवरण वाले व्यापक वैश्विक अध्ययन हमारी आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।देखा जाए तो वो हम इंसान ही हैं जो इन बदलावों के लिए जिम्मेवार हैं। आज इंसानी गतिविधियों के चलते पृथ्वी की जलवायु में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहें हैं जिसका खामियाजा सभी जीवों को भुगतना पड़ रहा है। अनुमान है कि जिस तरह से वैश्विक उत्सर्जन में होती वृद्धि जारी है। उसकी वजह से धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है और तापमान बढ़ने का यह सिलसिला भविष्य में भी जारी रहेगा।रिसर्च में सामने आया है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते तापमान, बारिश, हवा की गति और सापेक्ष आर्द्रता में बदलाव आने की आशंका है, इसके साथ ही भविष्य में जंगलों में लगती आग की घटनाओं में भी बदलाव आ जाएगा।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )