युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) - Mukhyadhara

युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)

admin
y

युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)

y 2

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, &प्त३९;बॉम्बे प्रेसिडेन्सी&प्त३९;) में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम राधाबाई तथा पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला।

दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद
बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।

यह भी पढें : Breaking : धामी कैबिनेट बैठक (Dhami cabinet meeting) में इन बिंदुओं पर लगी मुहर

सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी।

भारतभूमि पर ऐसे कई वीर हुए हैं, जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया है और ऐसे ही एक वीर थे वीर विनायक दामोदर सावरकर युग नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था।

इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।

सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। पुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर एक हिन्‍दुत्‍ववादी, राजनीतिक चिंतक और स्‍वतंत्रता सेनानी रहे हैं। अपने इन विचारों को अभिव्‍यक्‍त करने में उन्‍होंने कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया विनायक दामोदर सावरकर को वीर सावरकर के नाम से जाना जाता था, हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सावरकर सन् 1906 से ही प्रयत्नशील थे।

यह भी पढें : गुड न्यूज: भूतपूर्व सैनिकों (ex servicemen) के पुत्रों के लिए सेना/नौ सेना/वायुसेना व पुलिस भर्ती को 19 जून से 56 दिनों का निशुल्क भर्ती पूर्व प्रशिक्षण

लन्दन स्थित भारत भवन (इंडिया हाउस) में संस्था &प्त३९; अभिनव भारत&प्त३९; के कार्यकर्ता रात्रि को सोने के पहले स्वतंत्रता के चार सूत्रीय संकल्पों को दोहराते थे। उसमें चौथा सूत्र होता था हिन्दी को राष्ट्रभाषा व देवनागरी को राष्ट्रलिपि घोषित करना&प्त३९;। अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बन्दियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया।

1911 में कारावास में राजबंदियों को कुछ रियायतें देना शुरू हुई, तो सावरकर जी ने उसका लाभ राजबन्दियों को राष्ट्रभाषा पढ़ाने में लिया। वे सभी राजबंदियों को हिंदी का शिक्षण लेने के लिए आग्रह करने लगे। हालांकि दक्षिण भारत के बंदियों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे उर्दू और हिंदी को एक ही समझते थे। इसी तरह बंगाली और मराठी भाषी भी हिंदी के बारे में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कहते थे कि इसमें व्याकरण और साहित्य नहीं के बराबर है। तब सावरकर ने इन सभी आक्षेपों के जवाब देते हुए हिन्दी साहित्य, व्याकरण, प्रौढ़ता, भविष्य और क्षमता को निर्देशित करते हुए हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा के सर्वथा योग्य सिद्ध कर दिया। उन्होंने हिन्दी की कई पुस्तकें जेल में मंगवा ली और राजबंदियों की कक्षाएं शुरू कर दीं। उनका यह भी आग्रह था कि हिन्दी के साथ बांग्ला, मराठी और गुरुमुखी भी सीखी जाए। इस प्रयास के चलते अण्डमान की भयावह कारावास में ज्ञान का दीप जला और वहां हिंदी पुस्तकों का ग्रंथालय बन गया।

यह भी पढें : ब्रेकिंग: ड्रेनेज सिस्टम (Drainage system) और सड़कों की राईडिंग क्वालिटी पर मुख्य सचिव ने जताई नाराजगी, अधिकारियों को दिए ये निर्देश

कारावास में तब भाषा सीखने की होड़-सी लग गई थी। कुछ माह बाद राजबंदियों का पत्र-व्यवहार हिन्दी भाषा में ही होने लगा। तब अंग्रेजों को पत्रों की जांच के लिए हिंदीभाषी मुंशी रखना पड़ा। उनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था। वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्होंने 1887 की क्रांति को स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध कहा था।उन्होंने पुणे में अभिनव भारत सोसाइटी नामक संगठन की थी लन्दन में उन्होंने फ्री इंडिया सोसाइटी का गठन किया।विनायक दामोदर सावरकर ने च्च्जोसफ मैजिनी – जीवन कथा व राजनीतीज्ज् नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने १८५७ की क्रान्ति पर च्च्द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंसज्ज् नामक पुस्तक का प्रकाशन किया था। इसके अलावा उन्होंने रत्नागिरी में कैद के दौरान च्च्हिंदुत्व – हु इस हिन्दूज्ज् नामक पुस्तक भी लिखी।हालांकि वे हिन्दू महासभा के संस्थापक नही थे, परन्तु वे 1937 से 1943 के बीच हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे।

वीर सावरकर ने भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में एक निर्मित किये जाने का समर्थन किया, उन्होंने राष्ट्रवादी राजनीतिक विचारधारा च्च्हिंदुत्वज्ज् के विकास किया। उनके सम्मान में अंडमान व निकोबार के पोर्ट ब्लेयर के हवाईअड्डे का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा रखा गया हैवीर सावरकर न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए जाने जाते हैं, बल्कि वह एक लेखक और अधिवक्ता भी थे। वीर सावरकर का नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैजो व्यक्ति काला पानी की सजा तक से नहीं डरा, वो काले झंडों से क्या डरेगा। सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारत और ब्रिटेन में अध्ययन के दौरान शुरू हुईं. वे इंडिया हाउस से जुड़े थे. उन्होंने अभिनव भारत सोसायटी समेत अनेक छात्र संगठनों की स्थापना की थी। 1940 ई. में वीर सावरकर ने पूना में च्अभिनव भारतीज् नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था। आज़ादी के वास्ते काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो च्मित्र मेलाज् के नाम से जानी गई।

यह भी पढें : N E P यू.जी. प्रवेश समर्थ पोर्टल (Samarth Portal) पर कल से प्रारंभ

वीर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद , बुद्धिवादी , कवि , लेखक और ओजस्वी वक़्ता थे। सावरकर ने ही सर्वप्रथम विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई थी। सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्यकी सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं. सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरूद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था। उन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में च्स्वदेशीज् का नारा दे विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वे भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी। वे पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले पहले भारतीय थे। वे भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का च्स्वाधीनता संग्रामज् बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा। सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे, जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था। वीर सावरकर ने जेल में बंद सभी बंदियों को हिन्दी सीखने की प्रेरणा दी। वे उन्हें पुस्तकालय की हिन्दी पुस्तकें और उनके सरल अनुवाद भी देने लगे।

यह भी पढें : एक नजर: आज से हुए पांच अहम बदलाव (five important changes), कमर्शियल सिलेंडर हुआ सस्ता और इलेक्ट्रिक वाहन महंगे

इस प्रकार बन्दियों के साथ-साथ जेल कर्मचारी, स्थानीय व्यापारी तथा उनके परिजन हिन्दी सीख गये। अतः सब ओर हिन्दी का व्यापक प्रचलन हो गया। सावरकर जी के छूटने के बाद भी यह क्रम चलता रहा। यही कारण है कि आज भी केन्द्र शासित अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह में हिन्दी बोलने वाले सर्वाधिक हैं और वहां की अधिकृत राजभाषा भी हिन्दी ही है. जेल में वे कोल्हू पेरना, नारियल की रस्सी बँटना जैसे सभी कठोर कार्य करते थे। इसके बाद भी उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं।

सावरकर जी की मृत्यु 26 फ़रवरी, 1966 में मुम्बई में हुई थी। आज वीर सावकर के जीवन से प्रेरित होकर उनपर कई फिल्में बन चुकी हैं। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता।

( लेखक उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं व वर्तमान में दून विश्वविद्यालय देहरादून उत्तराखंड में कार्यरत हैं।)

Next Post

जी 20 समिट (G20 Summit) में सांध्य आरती के मिले कार्यक्रम पर मेयर ने जताया मुख्यमंत्री का आभार

जी 20 समिट (G20 Summit) में सांध्य आरती के मिले कार्यक्रम पर मेयर ने जताया मुख्यमंत्री का आभार ऋषिकेश/मुख्यधारा जी 20 समिट में गंगा आरती के लिए ऋषिकेश को मिले कार्यक्रम पर नगर निगम महापौर अनिता ममगाई ने मुख्यमंत्री पुष्कर […]
a 1

यह भी पढ़े