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धधकते रहेंगे जंगल (Forests) इस साल आग बुझाने नहीं आएंगे हेलिकॉप्टर 

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धधकते रहेंगे जंगल (Forests) इस साल आग बुझाने नहीं आएंगे हेलिकॉप्टर 

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड की बहुमूल्य वन संपदा को हर साल जंगलों में लगने वाली आग से काफी नुकसान होता है। तमाम पेड़-पौधे और जीव-जंतु इस आग में झुलस कर विलुप्त होने के कगार पर भी पहुंच गए हैं। गर्मी जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे ही पिथौरागढ़ के आसपास के जंगलो में आग लगने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है। जंगलों की आग से निपटना वन विभाग के सामने एक मुश्किल चुनौती है। समय रहते आग पर काबू न पाने की स्थिति में तस्वीरें काफी भयावह होती जा रही हैं और चारो तरफ दिखती है तो सिर्फ तबाही। उत्तराखंड में जंगलो की आग एक गंभीर समस्या है। गर्मियां बढ़ने के साथ ही जंगलो में आग लगने का खतरा भी बढ़ते जा रहा है, जिससे बेशकीमती वन संपदा जलकर खाक होते जा रही है। बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें तो साल की शुरुआत से ही अभी तक 30 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं।जिससे लाखों की संपति का नुकसान हो चुका है और आग लगने का सिलसिला जारी है।

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उत्तराखंड में पिछले तीन दिन में 56 स्थानों पर जंगल में आग लगने के मामले सामने आए हैं। जिससे 73 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसे मिलाकर अब तक वनाग्नि की 131 घटनाओं में 188 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्रभावित हो चुका है। बृहस्पतिवार को नैनीताल वन प्रभाग के आरक्षित क्षेत्र में दो, तराई पूर्वी वन प्रभाग में पांच, लैंसडाउन वन प्रभाग में एक और राजाजी टाइगर रिजर्व आरक्षित क्षेत्र में वनाग्नि का एक मामला सामने आया है। प्रदेश के जंगलों में आग के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गर्मी तेज होते ही जगह-जगह से आग के प्रकरण सामने आ रहे हैं। गढ़वाल और कुमाऊं में 31 जगह जंगलों में आग लगी। हालांकि बृहस्पतिवार को वनाग्नि के प्रकरणों में राहत है। गढ़वाल, कुमाऊं और वन्य जीव क्षेत्र में पिछले 24 घंटे में वनाग्नि के 9 प्रकरण सामने आए हैं, जिससे 10 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है।मुख्य वन संरक्षक बताते हैं कि जंगल में आग लगने की सूचना मिलते ही क्रू टीम मौके पर जाकर आग बुझा रही है।

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विभाग के पास फायर वाचर हैं, कुछ नए कर्मचारी भी मिले हैं। राज्य वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन कक्ष को जहां कहीं से भी जंगल में आग लगने की सूचना मिलती है, प्रयास किया जाता है कि जल्द से जल्द टीम मौके पर पहुंचे। कुछ जगह जंगलों के नजदीक खेतों में खरपतवार जलाने से जंगलों में आग फैलने की शिकायत मिली है, इसके लिए ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है। दुनियाभर में जंगलों में आग लगने पर
हेलीकॉप्टरों की मदद ली जाती है। इसमें लचीली बाल्टी या बेली टैंक होता है। हर बार आग पर उड़ान भरने पर ये हेलीकॉप्टर चार हजार लीटर तक पानी गिराते हैं। देश में जंगलों की आग बुझाने में वायुसेना के एमआई 17-वी 5 हेलीकॉप्टर काफी उपयोगी रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि उत्तराखंड में वर्ष 2020-21 में हेलीकॉप्टर से जंगलों की आग बुझाने के प्रयास किए गए थे, लेकिन पहाड़ में इस तरह के प्रयास सफल नहीं रहे। उत्तराखंड में जंगल इस साल पूरी गर्मी धधकते रहेंगे, लेकिन आग बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर नहीं आएंगे।

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मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन बताते हैं कि जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए हेलिकॉप्टरों से मदद लिए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है, विभाग को इसकी जरूरत नहीं है। हर साल लाखों पेड़ लगाए जाने के दावे वन विभाग द्वारा किए जाते हैं मगर वन क्षेत्र हर साल घटता जाता है। यह बताता है कि वन विभाग में भ्रष्टाचार बढ़ चढ़ कर हो रहा है। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव ने कहा कि कॉर्बेट नेशनल पार्क से सौ पेड़ों के कटान की अनुमति के नाम पर छह हजार पेड़ काटे जा सकते हैं तो, सामान्य वन क्षेत्रों में पेड़ों के अवैध कटान की स्थिति समझी जा सकती है। उत्तराखंड के जंगलों में आग का खतरा मंडराने लगा है। और कई जगह जंगल आग धधकने भी लगे हैं। बात करें अगर उत्तराखंड के जंगलों में भी आजकल आग लग रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि अभी गर्मियों का समय शुरू ही हुआ है तो अभी से जंगलों में आग लग रही है तो आने वाले समय में क्या हालात होंगे। नैनीताल के पास स्थित खुर्पाताल, भीमताल, भवाली और नैनीताल शहर में चिड़ियाघर से लगे जंगलों में बीते दिनों आग लगने की घटनाएं देखी गई हैं। ऐसे में वन विभाग और फायर ब्रिगेड की टीम द्वारा जंगलों में लगी आग को बुझाने और आग पर काबू पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

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वन विभाग के डीएफओ ने लोकल 18 से खास बातचीत के दौरान बताया कि पिछले साल बारिश बेहद कम होने के कारण जंगल सूखे हैं। जिस वजह से जंगलों में आग लग रही है। उत्तराखंड सहित कुछ राज्यों में हालात अभी भी सुधरे नहीं हैं। तमाम तकनीकी मदद के बावजूद जंगलों में हर साल बड़े स्तर पर लगती भयानक आग जब सब कुछ निगलने पर आमादा दिखाई पड़ती है और वन विभाग बेबस नजर आता है, तो चिंता बढ़नी लाजिमी है। ज्यादा चिंता की बात यह है कि जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर सरकारों और प्रशासन के भीतर आज भी संजीदगी का अभाव दिखता है। अगर प्राकृतिक तरीके से आग लगने वाली घटनाओं की बात करें तो मौसम में बदलाव, सूखा, जमीन का कटाव इसके प्रमुख कारण हैं। विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में तो चीड़ के वृक्ष बहुतायत में होते हैं।

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पर्यावरण विशेषज्ञ इसे वनों का कुप्रबंधन ही मानते हैं कि देश का करीब 17 फीसदी वन क्षेत्र चीड़ वृक्षों से ही भरा पड़ा है। दरअसल, कमजोर होते वन क्षेत्र में इस प्रकार के पेड़ आसानी से पनपते हैं।चीड़ के वृक्षों का सबसे बड़ा नुकसान यही है कि एक तो ये बहुत जल्दी आग पकड़ लेते हैं और दूसरा यह कि ये अपने क्षेत्र में चौड़ी पत्तियों वाले अन्य वृक्षों को पनपने नहीं देते। चूंकि चीड़ के वनों में नमी नहीं होती, इसलिए जरा-सी चिंगारी भी ऐसे वनों को राख कर देती है। अकेले उत्तराखंड के जंगलों की बात करें, तो प्रतिवर्ष वहां औसतन करीब 23.66 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां गिरती हैं, जो आग के फैलाव का बड़ा कारण बनती हैं। जंगलों में इन पत्तियों की परत के कारण जमीन में बारिश का पानी नहीं जा पाता। जलवायु प्रकार का जोखिम मूल्यांकन के माध्यम से आप जंगल की आग को बेहतर ढंग से प्रबंधित नहीं कर सकते हैं।

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आप प्रबंधन के मामले में अरबों डॉलर खर्च कर सकते हैं लेकिन दिन के अंत में यह केवल इस स्पष्ट बेमेल के कारण बढ़ जाएगा।” ओडिशा में निवारक उपाय पूरी तरह से स्थानीय आधारित हैं।” इनमें से 99 प्रतिशत स्थानीय समुदाय पर आधारित हैं। हमने ओडिशा में देखा है, जहां भी स्थानीय लोग सक्रिय हैं, उन्होंने सुनिश्चित किया है कि आग नहीं लगेगी।भारत में जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं पर आसानी से काबू पाने में विफलता का एक बड़ा कारण यह भी है कि वन क्षेत्रों में नवासी अब वन संरक्षण के प्रति उदासीन हो चले हैं। इसकी वजह काफी हद तक नई वन नीतियां भी हैं। इसके लिए सरकार और राजनेताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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