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आखिर हिमवंत कवि स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म व कर्मस्थली की सुध कब लेगी सरकार?

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101वीं जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित

सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग

उत्तराखंड में प्राय: देखा जाता है कि पुराने किसी नाम से चल रहे संस्थानों/प्रतिष्ठानों/सड़कों या फिर पुलों के नाम को बदलकर अपने मन इच्छित पॉलिटिकल प्रतिफल का अनुमान लगाकर उसे रातोंरात नया नामकरण कर दिया जाता है। कई बार किसी पुल या सड़क पर सुबह-सुबह लोगों को नया नाम पट्टिका लिखी दिखती है और लोग भौचक हो जाते हैं कि इस सड़क का कल तक तो फलां नाम था, आज अमुक नाम कैसे हो गया! लेकिन वाकई जिन ऐतिहासिक महापुरुषों एवं धरोहरों को सम्मान या फिर उन्हें संरक्षित किए जाने की अति जरूरत है, उस ओर सरकार ध्यान ही नहीं देती। अब यदि आप कहें कि ऐसा कहना सही नहीं है तो फिर जिस उपेक्षा का दंश प्रख्यात हिमवंत कवि स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल झेल रहे हैं, उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा? ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में अब तक एक ही दल की सरकार रही हो। यहां तो बारी-बारी से दोनों प्रमुख दलों की सरकार आती रही है, लेकिन कोई भी सरकार चितेरे कवि को सम्मान देने का साहस नहीं जुटा पाई।

आज हिमवंत कवि स्व. चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की 101वीं जयंती है। इस मौके पर उन्हें याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई और उनकी महान रचनाओं एवं कविताओं को आदर सहित स्मरण किया गया। साथ ही इस बात पर भी खेद व्यक्त किया गया कि आखिर एक महान कवि की कब तक उपेक्षा होती रहेगी?


बताते चलें कि हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म 20 अगस्त 1919 को मालकोटी गांव जनपद रुद्रप्रयाग में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उड़ामाडा पोखरी चमोली में, मिडिल 8वीं तक की पढ़ाई नागनाथ पोखरी और 10वीं की शिक्षा पौड़ी मैसमोर स्कूल से हुई। इसके बाद 12वीं की पढ़ाई देहरादून डीएवी से हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे प्रयाग विश्वविद्यालय चले गए और फिर लखनऊ से इतिहास से एमए किया।
हिमवंत कवि छोटी सी उम्र में ही पूरे भारत मे अपनी रचनाओं व कविताओं के लिए पहचाने जाते हैं। 28 साल की उम्र में (14 सितंबर 1947) को अकाल मृत्यु के सागर में सदा के लिए समा गए।
उनकी कर्मस्थली, जहां से उन्होंने बड़ी-बड़ी कविताएं लिखी, ‘पंवालिया’ भीरी रही। यहीं पर उन्होंने अंतिम सांस भी ली।
हिमवंत कवि बर्त्वाल की अपनी लिखी एक कविता ‘खण्डहर’, आज भी उनकी कर्मस्थली पंवालिया खण्डर बंजर बनकर हमारी सरकारों की उनके प्रति उदासीनता का जीता जागता प्रमाण दिखा रही है।
हर साल कवि बर्त्वाल के नाम पर संगोष्ठियां, कवि सम्मेलन, श्रद्धांजलि कार्यक्रम तो होते हैं, मगर कवि को जो स्थान व सम्मान मिलना चाहिए, उसका अभी भी इंतजार किया जा रहा है।
उनकी जन्मस्थली/कर्मस्थली पंवालिया में उनके नाम का संग्राहलय बनाने की, जिसे हमारे जनप्रतिनिधियों व सरकारों ने कभी महत्व ही नहीं दिया।

वर्षों से सामाजिक चिंतक व उनके चाहने वाले, पढऩे वाले पाठकों की मांग उठती रही है कि स्व. चन्द्र कुंवर बत्र्वाल के नाम का यहां पर संग्राहलय बने, जिसमें उनके प्रसिद्ध लेखों, रचनाओं व कविताओं को रखा जाए और अपनी युवा पीढ़ी की उनके विचारों का ज्ञान समझाया जाए, किंतु किसी भी नेता, सरकार व समाज सेवियों का इस ओर गंभीरता से ध्यान ही नहीं जा रहा।
हालांकि कुछ कवि, सांस्कृतिक संस्थाएं उनके नाम से अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जरूर लगी हैं, पर उन्होंने कवि के खण्डहर घर की यादों को संजोने में एक भी रुपये का योगदान नहीं दिया?
आज उनके 101वें जन्मदिवस पर लोगों ने उन्हें याद करते हुए सरकार से अपील की है कि उनकी जन्मस्थली एवं कर्मस्थली को पुरानी उत्तराखण्डी शैली में भव्य संग्रहालय बनाया जाए। आज सबसे पहले जरूरत है उनके खण्डहर बने घर को पुनर्जीवित कर उसे संरक्षित करने व संवारने की। जिससे आज की युवा पीढ़ी भी उनकी रचनाओं को समझ सके, पढ़ सके और एक शताब्दी पूर्व के उनके विचारों और कल्पना को आज के परिपेक्ष्य में महसूस कर सके कि उन्होंने जो बातें तब कहीं थी, वह आज भी उतनी ही सार्थक हैं, जितनी कि तब थी।
बहरहाल, अब देखना यह है कि उत्तराखंड सरकार महान हिमवंत कवि स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल की सुध कब तक ले पाती है?
हिमवंत कवि स्व. चंद्रकुंवर बर्त्वाल की जयंती पर #मुख्यधारा टीम की ओर से उन्हें शत् शत् नमन!

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