सरकार के लिए अवैध खनन (Illegal mining) सबसे बड़ा सिरदर्द - Mukhyadhara

सरकार के लिए अवैध खनन (Illegal mining) सबसे बड़ा सिरदर्द

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सरकार के लिए अवैध खनन (Illegal mining) सबसे बड़ा सिरदर्द

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

प्रदेश में अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए सरकार खनन क्षेत्रों पर ड्रोन से निगरानी की तैयारी कर रही है। प्रथम चरण में ५० स्थानों पर ड्रोन लगाए जाएंगे। साथ ही खनन क्षेत्रों के आसपास चेकपोस्ट स्थापित की जाएंगी। विभाग एक निगरानी तंत्र भी विकसित करने की तैयारी कर रहा है अवैध खनन पर लगाम कसने का काम वन विभाग, खान विभाग, वन निगम और पुलिस पर होता है। लेकिन अब अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए ‘कंपनी’ की एंट्री होगी। नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून जिले में चयनित कंपनी के पास एक तरह से इन सरकारी विभागों की तरह पावर होगी। बीच सड़क गाड़ी रोक रायल्टी और रवन्ना चेक किया जाएगा। अवैध खनन का मामला पकड़ने पर जुर्माना भी ठोका जाएगा। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या खनन के खेल को रोकने में सरकारी सिस्टम फेल हो चुका है? इसीलिए निजी कंपनी को लाया जा रहा है।

उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में खनन रोजगार राजस्व का बड़ा जरिया है, लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण हर साल खनन सत्र में देरी हो रही है। कभी टेंडरों से जुड़े विवाद तो कभी अन्य कारण। जिसका नुकसान वाहनस्वामियों से लेकर सरकार तक को होता है। इसके अलावा नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून में अवैध खनन का नेटवर्क लगातार मजबूत होने की वजह से प्राकृतिक संसाधनों की एक तरह से लूट भी हो रही है। खनन विभाग के उच्चधिकारियों के अनुसार खनिज की उपलब्धता के हिसाब से 350 करोड़ का राजस्व मिलना चाहिए। लेकिन रायल्टी चोरी व अवैध खनन के कारण लक्ष्य हासिल नहीं हो पाता। इसलिए निजी कंपनी को खनन कारोबार में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।

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चयनित कंपनी ही रायल्टी के तौर पर अलग-अलग किस्तों में 350 करोड़ रुपये जमा करेगी। यह न्यूनतम आधार मूल्य है। इससे ज्यादा रकम भी मिल सकती है। इसके बाद कंपनी वन निगम के माध्यम से संचालित नदियों के अलावा निजी पट्टों की रायल्टी ठेकेदार से वसूल खुद जमा करेगी। सबसे अहम काम अवैध खनन में लिप्त गाड़ियों को पकड़ने के अलावा जुर्माना वसूली का होगा। गौला, नंधौर, कोसी, दाबका, शारदा आदि नदियों से वन निगम खनन करवाता है। एडवांस में रायल्टी का पैसा खान विभाग के माध्यम से सरकार को जमा करता है। संचालन के एवज में अपना शुल्क अलग से जोड़ता है। अब रायल्टी का पैसा वन निगम खुद जमा करने की बजाय कंपनी को देगा। कंपनी शासन को देगी। निजी पट्टों पर भी यह नियम लागू होगा।

अपर निदेशक खनन के अनुसार टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद कंपनी बार्डर पर चेक पोस्ट बनाएगी। इन्हीं रास्तों से उपखनिज उत्तर प्रदेश जाता है। यहां अवैध खनन और रायल्टी से अधिक मात्रा के मामलों को पकड़ जुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा अन्य किन्हीं भी जगहों पर गाड़ियों को निजी कंपनी के लोग चेक कर सकेंगे। जिसके बाद पैसा वसूला जाएगा। फिलहाल कंपनी की आय का जरिया यही बताया जा रहा है। इस निर्णय से वन निगम का काम प्रभावित नहीं होगा। सिर्फ रायल्टी का पैसा कंपनी वसूलेगी, जिसे सरकार को जमा किया जाएगा। इसके अलावा अवैध खनन पर कार्रवाई और जुर्माने का अधिकार भी चयनित कंपनी को मिलेगा राज्य में नदियों पर अवैध खनन के प्रतिकूल प्रभाव पर साइट निरीक्षण करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए उत्तराखंड एचसी द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर आलोक मेहरा ने शुक्रवार को अदालत को बताया कि “बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं, जिससे गंभीर क्षति हो रही है।” कई नदियों की पारिस्थितिकी”, पंकुल शर्मा की रिपोर्ट। HC  ने सरकार को एक हलफनामा दायर करने और 6 दिसंबर तक नदियों में अवैध खनन को रोकने के लिए एक उचित योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसके बाद अदालत ड्रेजिंग पर प्रतिबंध लगाने के अपने पिछले आदेश को संशोधित करने पर विचार कर सकती है।

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क्या कभी आपने साइकिल से अवैध खनन होते देखा है यह सवाल अटपटा जरूर है क्योंकि खनन का खेल बड़े बड़े माफिया खेलते हैं और आज तक ट्रक, ट्राले और डंफरो से अवैध खनन का खेल खेला जाता रहा है।लेकिन इसे वन विभाग के अधिकारियों की कार्य क्षमता और ड्यूटी में लगे कर्मचारियों की इच्छा शक्ति ही कहेंगे कि बड़े-बड़े खनन माफिया इस इलाके से गायब हैं कभी ट्रकों से होने वाला अवैध खनन आज मोटरसाइकिल, स्कूटर और साइकिल पर सीमित हो गया है और उस पर भी वन विभाग सख्त कार्रवाई कर रहा है। और यह हालात किसी और क्षेत्र के नहीं बल्कि कुमाऊ में खनन से सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाली गौला नदी का है। किसी दौर में यहां खनन माफियाओं का बोलबाला होता था आज गौला नदी से खनन माफिया गायब हैं इसके पीछे रणनीतिकार कोई और नहीं आई एफ एस अधिकारी है जिन्होंने तराई पूर्वी वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी का चार्ज लेने के बाद गौला नदी से अवैध खनन को लगभग समाप्त कर दिया है।

उत्तराखण्ड में अवैध खनन का काला कारोबार कुछ दशकों में ही जबर्दस्त कमाई का जरिया बन गया है। यह कारोबार राजनेताओं, अफसरों और माफियाओं की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है और जमकर फल फूल रहा है। खनन माफियाओं को ना तो उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के निर्णयों की परवाह है और ना जीरो टोलरेंस वाली उत्तराखण्ड सरकार का कोई डर। सभी निर्णय और आदेश खनन माफियाओं के ठेंगे पर रखे हैं। वहीं सरकार के नुमाइंदे और शासन के तमाम बड़े अधिकारी इन खनन माफियाओं से मिलीभगत कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं।

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उत्तराखण्ड के  मा० उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड  के निर्णय एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के प्राविधानों का उल्लघंन उत्तराखण्ड में अब आम बात हो चुकी है। बिना अनुमति के उत्तराखण्ड की सभी नदियों में पोकलेण्ड व जेसीबी मशीन के प्रयोग पर मा० हाईकोर्ट उत्तराखण्ड में याचिकाकर्ता गगन पारसर द्वारा दाखिल याचिका संख्या 169/2022 पर दिनांक 19/12/2022 के निर्णयानुसार एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के नियमों का जमकर उल्लंघन हो रहा है। जिसके अन्तर्गत नदी में खनन कार्य करने वाली पोकलैंड मशीनों एवं जेसीबी मशीनों को खान अधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों द्वारा सीज़ करने के आदेश हैं तथा यदि ऐसा करता पाया गया तो मशीन मालिकों व खनन कारोबारियों पर लाखों रुपए का जुर्माना लगाया जाना  है। परंतु इसके बावजूद मालिकों द्वारा अपने रसूख और सांठगांठ का प्रयोग करके इन मशीनों से खनन बेरोक टोक के धड़ल्ले से कर रहे हैं तथा जब इन पोकलैंड व जेसीबी मशीनों को सीज़ किया जाता है तो खनन कारोबारी द्वारा आनन फानन में इनको छुड़ा लिया जाता है तथा जुर्माना वसूली कि कोई रसीद भी  सार्वजनिक नहीं की जाती है।

अवैध खनन में लिप्त इन खनन माफियाओं के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई भी कभी सार्वजनिक नहीं की जाती है। यह अवैध खनन माफिया अपने रसूख और धन बल का प्रयोग करते हुए अपने पोकलैंड मशीनों और जेसीबी को छुड़ाने में हमेशा कामयाब रहते हैं तथा दिन-रात उत्तराखंड की नदियों का सीना चीर कर अवैध खनन में करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। अगर विस्तार पूर्वक इस मामले में बात की जाये तो 2,000 करोड़  रुपये से अधिक के वार्षिक कारोबार के साथ पर्यटन के बाद उत्तराखण्ड में खनन (ज्यादातर अवैध) को दूसरा सबसे बड़ा पैसा कमाने का स्रोत कहा जाता है। यह बात सर्वविदित है सभी खनन माफिया चुनावी चंदा एकत्रित करते है कैग ने राज्य में खनन के दौरान राजस्व चोरी को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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कोर्ट ने खनन से संबंधित कई जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। पूर्व में कोर्ट ने अवैध खनन पर रोक लगाते हुए एंटी माइनिंग फोर्स गठित करने को कहा था। साथ ही ड्रेजिंग पर रोक लगाते हुए कहा था कि नदियों से ड्रेजिंग सरकारी एजेंसियों के द्वारा ही किया जाए। ड्रेजिंग के दौरान उनसे निकलने वाली माइनिंग सामग्री का परिवहन नहीं किया जाएगा। इस आदेश को संशोधन करने के लिए राज्य सरकार की ओर से संशोधन प्रार्थनापत्र कोर्ट में पेश किया गया। जिसमें कहा गया था कि इस आदेश को संशोधित किया जाए क्योंकि कोर्ट ने ड्रेजिंग के दौरान निकलने वाली माइनिंग सामग्री को बाहर ले जाने की अनुमति पर रोक लगाई हुई है। इस वजह से राज्य सरकार को प्रत्येक वर्ष 500करोड़ का नुकसान हो रहा है और विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए पूर्व के आदेश को संशोधित किया जाए। पूर्व में कोर्ट ने अवैध खनन की जांच कराने के लिए अधिवक्ता को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए दो सप्ताह में स्थलीय निरीक्षण कर जांच रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कराने को कहा था। आज उनकी रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश हुई।

रिपोर्ट में कहा गया कि अवैध खनन से रिवर बैड में बड़े बडे गड्ढे बने हुए हैं। दरअसल, प्रदेश में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। सरकार के लिए यही सबसे बड़ा सिरदर्द है। नदी तल उपखनिज पूरे प्रदेश में पाया जाता है। दूसरे स्थान पर प्रदेश में लाइम स्टोन व सोपस्टोन, यानी चूने के पत्थर व खडिय़ा का खनन होता है। अवैध खनन के पीछे मुख्य कारण इसके जरिये मिलने वाले खनिज का बाजार भाव से सस्ता होना है।दूसरा कारण खनन नीति में राजस्व लक्ष्य को बढ़ाने के लिए रायल्टी की दर को बढ़ाना है। अवैध खनन में न तो रायल्टी चुकानी पड़ती है और न ही माल वाहनों को ले जाने के लिए रवन्ना कटता है। इस कारण माफिया भवन निर्माण में उपयोग में लाई जाने वाली खनन सामग्री सस्ती दरों पर बेचते हैं। वहीं कई बार खनन पट्टा धारक आसपास के खाली अथवा प्रतिबंधित स्थानों पर भी चोरी छिपे अवैध खनन शुरू कर देते हैं। कई बार तो खनन रोकने पहुंची पुलिस व प्रशासन की टीमों और खनन माफिया के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आई हैं। इसे देखते हुए विभाग खनन क्षेत्रों में निगरानी तंत्र को सशक्त बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है।

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खनन क्षेत्रों व इसके पास बनी चेकपोस्ट पर जीपीएस समेत अन्य सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। निगरानी के लिए ड्रोन की तैनाती भी की जा रही है। कैग ने देहरादून जिले में ही तीन स्थानों पर अवैध खनन के साक्ष्य पाए. देहरादून में सरकार की निर्माण एजेंसियों ने 37.17 लाख मीट्रिक टन अवैध खनन का उपयोग किया. कैग ने कहा कि खनन विभाग, जिला कलेक्टर, पुलिस विभाग, वन विभाग, गढ़वाल मंडल विकास निगम जैसी संस्थाएं अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रही हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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