जोशीमठ हेलंग मारवाड़ी बाईपास (Helang Marwari Bypass) का विवादों से पुराना नाता रहा है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जोशीमठ का पहाड़ पुराने और प्राकृतिक भूस्खलन के मलबे पर स्थित है जो सैकड़ों वर्षों में स्थिर हो गयाहै। इसका मतलब यह है कि यह कई सौ से एक हजार मीटर गहरी विशाल, मोटी परत है जो कुछ चट्टानोंपर टिकी हुई है। यह मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) के क्षेत्र में स्थित है। इसलिए इस परत को सहारा देने वाली अंदर की चट्टानें कमजोर हो गई हैं क्योंकि उन्हें ऊपर धकेल दिया गया है।ये टूट चुकी हैं और टूट चुकी सामग्री बहुत मजबूत नहीं हैं। यह ऐसे क्षेत्र में हैं जिसे संवेदनशील ढलान के रूप में जाना जाता है।1976 में सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए, विशेष रूप से इसकी संवेदनशीलता के कारण पहाड़ी के ढलाव पर निर्माण नहीं होना चाहिए। बावजूद इसके सरकार ने विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिसमें पहाड़ों से गुजरने वाली एक सुरंग और एक नया बाईपास हेलंग-मारवाड़ी बाईपास रोड शामिल है।
बदरीनाथ हाइवे पर जोशीमठ विकाखंड में हेलंग मारवाड़ी बाईपास का विवादों से पुराना नाता रहा है। वर्ष 1980 के दशक में विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना के निर्माण के दौरान मशीनों को ले जाने के लिए स्वीकृत हुई इस सड़क का तब भी विरोध हुआ था। विवाद कोर्ट में चले जाने के बाद इसका आधा अधूरा निर्माण रुक गया था। हालांकि तब इस सड़क की हिल कटिंग का कार्य पूरा हो चुका था। सवा छह किमी लंबे इस बाइपास का निर्माण वर्ष 2022 में सेना की जरुरतों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया। यह आल वेदर परियोजना के तहत ही निर्माणाधीन था लेकिन जनवरी में जोशीमठ में हुए भूधंवास के दौरान इस सड़क के निर्माण को भी जिम्मेदार बताते हुए स्थानीय लोगों ने जन आंदोलन किया तो प्रशासन ने आपदा एक्ट में पांच जनवरी को इस बाईपास का निर्माण बंद कर दिया। पांच माह बाद सरकार ने निर्माण कार्यो को फिर से हरी झंडी दी तो बीआरओ ने निर्माण फिर से शुरू कर दिया।बाईपास निर्माण को लेकर सीमा सड़क संगठन के अधीन कार्य कर रही केसीसी बिल्डकोन कंपनी ने दो मशीनें व 40 से अधिक मजदूरों को कार्य पर लगाया गया है। बीते दिन इंटरनेट मीडिया पर एक विस्फोट से हो रहे निर्माण का वीडियो वायरल हो रहा है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का दावा है कि यह वीडियो हेलंग मारवाड़ी बाईपास के निर्माण का है तथा बीआरओ अवैध रूप से विस्फोट कर जोशीमठ की नीव हिला रही है।जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक ने अपने फेसबुक के माध्यम से जोशीमठ की जड़ में विस्फोट शुरू होने का दावा किया गया है। हेलंग मारवाड़ी बाईपास के निर्माण को वर्ष2024 में पूरा होना था लेकिन पांच महीनों से कार्य बंद होने के चलते अब इस प्रोजेक्ट में एक साल की देरी होगी। बाईपास निर्माण के लिए 185 करोड़ की धनराशि स्वीकृत है। अगर यह बाईपास सुचारू हुआ तो बदरीनाथ की दूरी तो कम होगी ही साथ ही नगर में लगने वाले जाम से भी निजात मिलेगी तथा समय की बचत भी होगी। पांच माह तक इस बाइपास का निर्माण कार्य बंद होने से बीआरओ को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा है। सरकार ने आईआईटी रुड़की सहित अन्य भूगर्भीय वैज्ञानिकों की तकनीकी रिपोर्ट आने के बाद इस मोटर मार्ग के निर्माण को हरी झंडी दी है। जोशीमठ में हेलंग मारवाड़ी बाईपास निर्माण का विरोध, जानिए इससे क्या है फायदा और क्या नुकसान जोशीमठ में हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण कार्य शुरू होने के साथ ही एक बार फिर से स्थानीय लोगों के द्वारा विरोध शुरू हो गया है। इन दिनों जोशीमठ बद्रिकाश्रम की यात्रा पर पहुंचे ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य और अयोध्या राम मंदिर के सदस्य वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ने भी हेलंग मारवाड़ी बाईपास का विरोध किया है।
गौरतलब है कि हमेशा से ही जोशीमठ के लोगों का इस बाईपास के प्रति विरोध रहा है। जोशीमठ के लोगों का कहना है कि हर जगह बाईपास एक से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में होता है तो जोशीमठ में 13 किलोमीटर पहले यह बाईपास बनाया जाना कहीं से भी औचित्य नहीं है,जिसके विरोध में जोशीमठ पूरा बंद रहा। दरअसल, जोशीमठ से 13 किलोमीटर पहले 5 किलोमीटर के रास्ते में 40 किलोमीटर का यात्रा कम करने वाला हेलंग मारवाड़ी बाईपास बनने से जोशीमठ आने वाले तीर्थयात्री सीधा बाईपास के रास्ते बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचेंगे। लेकिन जोशीमठ में इसका विरोध प्रारम्भ हो गया है।
बताते चले जोशीमठ में नरसिंह मंदिर, जहां की बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद आज जगद्गुरु शंकराचार्य की गद्दी आती है, वहां अब श्रद्धालुओं को नहीं आना होगा। इसके विरोध में जोशीमठ की जनता सड़कों पर उतर कर अब विरोध कर रही है। बदरीनाथ यात्रा और सेना की जरूरतों को देखते हुए प्रदेश सरकार बाईपास निर्माण को शीघ्र शुरू कराना चाहती है। इसके तहत आईआईटी रुड़की को इस संबंध में सर्वे कर रिपोर्ट देने को कहा गया था। जिसमें संस्थान को यह बताना था कि बाईपास निर्माण का काम शुरू करने पर ऊपर जोशीमठ में भूधंसाव प्रभावित क्षेत्र में कोई असर तो नहीं पड़ेगा जबकि संस्थान ने इसके विपरीत अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसमें कहा गया है कि जोशीमठ में भूधंसाव का बाईपास निर्माण पर कोई असर नहीं पड़ेगा।सचिव आपदा प्रबंधन ने आईआईटी की ओर से रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की पुष्टि की।
उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के आधार पर बाईपास निर्माण शुरू किए जाने का फैसला नहीं लिया जा सकता है। संस्थान से जो रिपोर्ट मांगी गई थी, यह उसके बिल्कुल विपरीत है। इसके लिए आईआईटी रुड़की से पुनः रिपोर्ट देने को कहा गया है। इस संबंध में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भी सूचित किया गया है। हेलंग से जोशीमठ और जोशीमठ से मारवाड़ी मुख्य मार्ग के चौड़ीकरण का कार्य शुरू हो चुका है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने इसे जनता के आंदोलन की जीत बताया। संघर्ष समिति ने वक्तव्य जारी करते हुए इसके लिए जोशीमठ की जनता को बधाई दी और इसे जोशीमठ की जनता के संघर्षों के इतिहास में एक और बड़ा कदम बताया।
गौरतलब है कि जनता इस मार्ग के सुधारीकरण और चौड़ीकरणकी मांग पिछले 30 साल से कर रही थी। सरकारें इस मार्ग के सुधारीकरण चौड़ीकरण के बजाय बाईपास को प्राथमिकता दे रही थी। जिससे न सिर्फ जोशीमठ के पर्यटन तीर्थाटन व्यवसाय पर, रोजगार पर असर पड़ता बल्कि बाईपास जोशीमठ के अस्तित्व के लिए ही खतरनाक साबित होता। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का स्पष्ट मानना है कि हेलंग जोशीमठ और जोशीमठ मारवाड़ी सड़क के चौड़ीकरण के बाद वे जोशीमठ में मौजूद दो तीन वैकल्पिक सड़कों के व्यवस्थित उपयोग के बाद बाईपास जैसी योजना की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने सरकार से मांग की है कि हेलंग जोशीमठ सड़क के साथ ही साथ जोशीमठ मारवाड़ी सड़क पर भी जल्द कार्य शुरू करवाया जाए जिससे यात्रा काल में लग रहे रोज रोज के जाम से यात्रियों पर्यटकों को निजात मिले। साथ ही औली सड़क के चौड़ीकरण और नरसिंह मंदिर बाईपास सड़क के चौड़ीकरण सुधारीकरण को भी प्राथमिकता दी जाए।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने अपने आंदोलन में सहयोग देने वाली मात्र शक्ति युवा शक्ति और व्यापारी बंधुओं का,सम्पूर्ण जनतापत्रकारों विभिन्न राजनीतिक दलों के साथियों अन्य सभी सहयोग करने वाले लोगों किया। विकास कार्यों को रोकने की जरूरत नहीं हैं। बस उन्हें सोच-समझकर और सावधानी से करने की जरूरत है जिससे वे टिकाऊ हो सकें। लेकिन अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाओं में तेजी आएगी, जिससे ढलानों की अस्थिरता, जंगल की आग और वन्यजीवों की हानि होगी और इसके परिणामस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। विकास कार्यों को रोकने की जरूरत नहीं हैं। बस उन्हें सोच-समझकर और सावधानी से करने की जरूरत है जिससे वे टिकाऊ हो सकें। लेकिन अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाओं में तेजी आएगी, जिससे ढलानों की अस्थिरता, जंगल की आग और वन्यजीवों की हानि होगी और इसके परिणामस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)