दुखद: पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी का निधन (Journalist Jagmohan Rautela's wife passed away), पढें ये भावुक पोस्ट - Mukhyadhara

दुखद: पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी का निधन (Journalist Jagmohan Rautela’s wife passed away), पढें ये भावुक पोस्ट

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दुखद: पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी का निधन (Journalist Jagmohan Rautela’s wife passed away), पढें ये भावुक पोस्ट

हल्द्वानी/मुख्यधारा

हल्द्वानी के वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी का निधन हो गया है। वह पिछले करीब 3 वर्षों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। वह 49 साल की थी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वरिष्ठ पत्रकार जगनमोहन रौतेला की धर्मपत्नी के निधन पर दुःख व्यक्त किया। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिवारजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से कामना की है।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी एवं वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी रीता खणका रौतेला बीमारी से लड़ते-लड़ते हार गई। वह बड़ी जिंदादिल इंसान थीं। उनकी जिंदादिली का प्रमाण यह है कि उन्होंने 20 मई 2023 को उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को अपना देह दान के संबंध में आवेदन कर दिया था। जिसमें लिखा था कि,- “मैं अपनी स्वेच्छा से मरणोपरान्त अपने शरीर को राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में शिक्षण कार्य हेतु दान देना चाहती हूँ, जिससे मेरे परिजनों को कोई आपत्ति नहीं है।”

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दो दिवस पूर्व वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला ने भी हताश होकर सोशल मीडिया पर एक भाव पोस्ट की थी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि,- “मौत का खेला भी अजब है। जब जिंदगी की चाह रखो तो बिना उम्र का लिहाज करे बाज की तरह झपट्टा मार कर उसे छीन लेती है। और जब उसे खुशी – खुशी आमन्त्रित करो तो नौ नखरे दिखाती है। मेडिकल चिकित्सा के अनुसार, जीवन जीने की सारी सम्भावनाएं खत्म हो चुकी हैं। तीन दिन से सिर्फ सांस चल रही है। पता नहीं क्यों इतने नखरे हैं मौत के भी?
अब तो रहम खा और इस बेबस जिंदगी पर पूर्ण विराम लगा !!”

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बताते चलें कि अपनी पत्नी की बीमारी का इलाज कराने के लिए श्री रौतेला ने हल्द्वानी से लेकर देहरादून और एम्स ऋषिकेश में काफी प्रयास किए, किंतु आखिर में उनकी पत्नी जिंदगी की जंग हार गई।

उपरोक्त पोस्ट को पढ़कर आप भी महसूस कर सकते हैं कि  इंसान की बेबसी क्या हो सकती है, जब तमाम प्रयासों के बाद भी उम्मीद की किरण मंद पड़ जाती है।

रीता खनका रौतेला की 6 दिन पुरानी ये पोस्ट नम कर देंगी आपकी आंखें

*** अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले ***
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पिछले लगभग ढाई साल से मेरे कैंसर से बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं. मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लड़ने के लिए हौसला बढ़ाया है. इस सब के लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा.
अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुँच गई है कि जहॉ से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है. लोग मौत से संघर्ष करते हैं, पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूँ. मुझे जीवन के सॉसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए, ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूँ. किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है. और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते हैं. ऐसे में मेरी यह देह सॉसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दुख तो होगा, पर वे इस दुख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे.
जब मैं मौत का आलिंगन चाह रही हूँ तो मैंने अपनी देह को निर्जीव होने के बाद सात कुन्तल लकड़ी को समर्पित करने की बजाय, यही मेडिकल कॉलेज को देने का निर्णय भी कल 20 मई 2023 को कर लिया है. यह निर्णय तो हम दोनों ने बहुत पहले कर लिया था, पर कागजी औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाए थे. कल 20 मई शनिवार को वह औपचारिकता भी पूरी कर ली है. मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी इस बारे में औपचारिकता संकल्प पत्र सौंप दिया है.
मेरे इस संकल्प को पूरा करने में मेडिकल कॉलेज में अध्यापक व मेरी ननद डॉ. दीपा चुफाल देउपा, देवर अंकुश रौतेला, बुलबुल के बौज्यू, देवर के मित्र ललित मोहन लोहनी और ननद के ही विभाग के दीप चन्द्र भट्ट का सहयोग रहा है. मैं इन सब के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ.
मैं अब अपनी देह से जल्दी मुक्ति इस वजह से भी चाहती हूँ कि ताकि उसके बाद मेरे बैड पर आईसीयू में वह मरीज आए, जिसे जीवन के सॉसों की बहुत आवश्यकता है. मेरे जीवन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. शादी के बाद मैंने अपनी भरपूर जिंदगी जी है. मेरे लिखना, पढ़ना और तर्क करना सीखा. सबसे बड़ी बात कि मैंने धारा प्रवाह कुमाउनी भी शादी के बाद ही सासू ईजा और बुलबुल के बौज्यू के प्रेरित करने पर ही सीखी. अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मैं इस बात को मानती हूँ. अपने कुमाउनी लोकजीवन के तीज-त्योहारों को मनाना और लोक की परम्परा का पालन करना भी मैंने शादी के बाद ही सीखा.
मैं आज आईसीयू के बैड में इस स्थिति में नहीं हूँ कि खुद कुछ लिख सकूँ. यह पोस्ट मैं बुलबुल के बौज्यू से लिखवा रही हूँ. इसमें हो सकता है कि इस पोस्ट के शब्द हूबहू मेरे न हों, भावनाओं के शब्द पूरी तरह मेरे हैं.
मैं अंत में एक बार फिर से आप सब से अपनी इस देह से जल्द से जल्द मुक्ति में सहयोग चाहती हूँ. आप सब से मेरी प्रार्थना है कि अपने-अपने देवी-देवताओं, ईष्ट देवों से कहें कि मुझे इस नश्वर देह से मुक्त करें. आप सब ने पिछले ढाई साल में मेरे जीवन के लिए कामना की, अब आखिरी वक्त में देह से मुक्ति की प्रार्थना में बिना झिझक सहयोग करें. आप सब का प्यार, सहयोग मेरी बिटिया बुलबुल और उसके बौज्यू को आत्मबल ही देगा.
आप सब लोगों का जीवन आयोग्यमयी, प्रेम, प्यार व सहयोग से भरपूर रहे, यही कामना मेरी ओर से है.***

मुख्यधारा की ओर से ऐसी जिंदादिल इंसान रीता खनका रौतेला को हार्दिक श्रद्धांजलि एवं शत-शत नमन!

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