देहरादून। कोरोना काल में Uttarakhand Police दोहरी भूमिका निभा रही है। एक कोरोना योद्धा के रूप में दूसरा समाजसेवक के रूप में। इस बार उत्तराखण्ड पुलिस ने नशे की लत के शिकार एक ऐसे युवक, जिससे उसके परिजनों एवं रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया था, उसका हाथ थामकर उसे समाज की मुख्य धारा से जोड़कर उसमें जीवन जीने की ललक पैदा की। नतीजा यह रहा कि कोरोना काल में उसने पुलिस का सहयोग कर जरूरतमंदों की मदद की और खुद नशा छोड़कर युवाओं को नशे के प्रति जागरूक भी किया।
देहरादून के रायपुर निवासी अर्चित को वर्ष 2012 में पिता की मौत के बाद नशे की लत लग गई। 2017-18 में नशे के लिए पैसे मांगने लगा। जिस पर परिजनों ने रुपये देने से मना कर दिया। परिजनों ने अर्चित को उसके मामा के पास बेंगलुरु भेज दिया। एक साल बेंगलुरु रहने के बाद वह देहरादून वापस आ गया, किन्तु उसकी नशे की आदत फिर भी नहीं छूटी। अर्चित ने अपनी नशे की लत पूरी करने के लिए मई 2019 में अपने रिश्तेदारों के घर से गहने चोरी कर दिये। जिस पर परिजनों ने उसके खिलाफ रायपुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें अर्चित को एक साल की सजा हो गई।
एक अप्रैल 2020 को कोरोना के मद्देनजर वह जेल से पेरोल पर छूट गया। अर्चित पेरोल पर तो छूट गया लेकिन उसके परिजनों ने उसे घर में घुसने तक नहीं दिया, क्योंकि अर्चित चोरी करने की वजह से जेल गया था। अब अर्चित के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था, न खाने का कोई जरिया। ऐसे में परेशान अर्चित देहरादून के रायपुर थाने पहुंचा और मदद की गुहार लगाई। उसकी कहानी सुनकर थानाध्यक्ष अमरजीत सिंह रावत ने थाना परिसर में ही उसके रहने की व्यवस्था कराई। साथ ही उसकी पढ़ाई कराने की जिम्मेदारी भी ली है। अर्चित की इंटर की पढ़ाई छूट गई थी जिसे वह अब पूरा कराने के लिए मदद कर रहे हैं। अर्चित शर्मा सभी नशे के आदी युवकों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया है। आज भी वह थाना रायपुर में रहकर गरीब असहाय लोगों की मदद कर रहा है एवं नशे के आदी नवयुवकों को आत्मशक्ति से नशा छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।
अर्चित की इस कार्यप्रणाली एवं अच्छे व्यवहार के कारण 27 जुलाई को राज्यपाल उत्तराखण्ड ने अर्चित की 3 माह 8 दिन की सजा माफ कर समय पूर्व रिहाई के आदेश पारित किए। अर्चित इसका श्रेय पुलिसकर्मियों को देता है और अब वकालत करना चाहता है, जिसमें पुलिसकर्मी उसकी पूरी मदद कर रहे हैं।