मुख्यधारा/यमकेश्वर
यमकेश्वर विधानसभा में कांग्रेस के प्रबल दावेदार माने जा रहे महेंद्र सिंह राणा का टिकट काटे जाने के बाद उनके समर्थकों में उबाल आ गया है। अब समर्थक अपने प्रत्याशी को निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति बना रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो इस बार भी कांग्रेस की झोली में यमकेश्वर सीट नहीं आ पाएगी।
बताते चलें कि जिस तरह से यमकेश्वर विधानसभा सीट पर द्वारीखाल प्रमुख महेंद्र सिंह राणा का जनाधार बना हुआ था, इसको देखते हुए लग रहा था कि कांग्रेस यमकेश्वर में इस बार राणा को मैदान उतारकर पिछले चार बार का सूखा खत्म करना चाहेगी। इसका कारण यह भी था कि जिस प्रकार से विपक्षी दल भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक ऋतु खंडूड़ी का टिकट काटकर रेनू बिष्ट को मैदान में उतारा है, उसकी काट के रूप में राणा को यमकेश्वर में भारतीय जनता पार्टी का किला ढहाने वाले प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा था, किंतु जिस तरह से कांग्रेस की पहली सूची में यमकेश्वर सीट पर महेंद्र राणा की अनदेखी करते हुए शैलेंद्र रावत को मैदान में उतारा गया है, ऐसे में कट्टर कांग्रेसी भी सोशल मीडिया पर भाजपा की रेनू बिष्ट को शुभकामनाएं दे रहे हैं। कट्टर कांग्रेसी कह रहे हैं कि कांग्रेस ने यह सीट भाजपा को उपहार में दे दी है। यह कांग्रेस के लिए शुभ संकेत के रूप में नहीं देखा जा रहा है।
प्रधान संगठन के अध्यक्ष अर्जुन सिंह नेगी बताते हैं कि कांग्रेस ने इस बार यमकेश्वर में एक बेहतरीन मौका खो दिया है। इस बार यदि महेंद्र राणा को टिकट दिया जाता तो कांग्रेस की जीत निश्चित थी।
क्षेत्र पंचायत सदस्य मस्तान सिंह बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने इस बार भाजपा से भी सबक नहीं लिया। भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक का टिकट काटकर जिताऊ प्रत्याशी पर दांव लगा दिया और कांग्रेस है कि पुराने फार्मूले पर ही चुनाव मैदान में उतर रही है।
पूर्व सैनिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता संजीव जुयाल का कहना है कि महेंद्र राणा की अनदेखी कर कांग्रेस की एक सीट गंवा दी है। अब हम लोग नई संभावना पर काम कर रहे हैं।
यूथ कांग्रेस गहली से सोम डबराल कहते हैं कि यमकेश्वर में चार बार से भाजपा के विधायक बनते आ रहे हैं। इस बार महेंद्र राणा को टिकट दिया जाता तो कांग्रेस की जीत निश्चित थी। अब राणा को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारने की तैयारी है।
डल ग्वाड़ी से विद्यालाल कहते हैं कि अब आगे की रणनीति बनाई जा रही है। जैसे ही आदेश मिलेगा, हम सभी क्षेत्रवासी निर्दलीय के रूप में महेंद्र राणा का पूरा समर्थन करेंगे।
किनसुर ग्रामसभा से दीपचन्द शाह कहते हैं कि पार्टी ने जिताऊ प्रत्याशी की अनदेखी की। अब निर्दलीय के रूप में पूरी टीम महेंद्र राणा के लिए काम करेगी।
जिया दमराड़ा से हरशू बडोला व आलोक उनियाल बताते हैं कि राणा को टिकट न मिलने से हम सभी क्षेत्रवासी बड़े निराश हैं। इस बार पार्टी यहां से फॉर्म में लग रही थी, किंतु अब महेंद्र राणा को हमारी पूरी टीम निर्दलीय चुनाव लड़ाने जा रही है और पूरे जोर-शोर से इसके लिए प्रयास करेंगें।
दिउली से संदीप कपरुवाण, पुलिंदा से सत्येंद्र सिंह, बनचुरी से किशोर लखेड़ा का कहना है कि महेंद्र राणा की निर्दलीय के रूप में भी जीत अवश्य है। पूरे समर्थक पूरी ताकत के साथ उनके लिए काम करेंगे।
ग्राम कांडी से धीरेंद्र नेगी का कहना है कि जिस प्रकार से महेंद्र राणा का पूरी विधानसभा सीट पर जनाधार है, इसको देखते हुए उन्हें निर्दलीय के रूप में मैदान में उतारा जा रहा है।
यमकेश्वर राकेश असवाल कहते हैं कि पहली बार क्षेत्र में कांग्रेस का ऐसा जनाधार देखा गया, किंतु टिकट काटे जाने से राणा के समर्थक खासे निराश हैं। अब हम निर्दलीय के रूप में ताल ठोंकेंगे और जीत दर्ज करेंगे।
नालीबड़ी से अशोक बिष्ट बताते हैं कि टिकट काटने से क्या होता है, जिसने क्षेत्र में काम किया होगा, जीत तो उसी को मिलेगी न! महेंद्र राणा निर्दलीय के रूप में भी दोनों मुख्य दलों को कड़ी टक्कर देकर सीट निकाल सकते हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव पर एक नजर
यमकेश्वर में कुल 83498 मतदाता थे, जिनमें से 46155 वोट पड़े। उस चुनाव में आठ प्रत्याशी मैदान में थे। जिनमें भाजपा की ऋतु खंडूड़ी को 19671 व निर्दलीय रेनू बिष्ट को 10689 वोट मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र सिंह रावत को 10283 मतों के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
दरअसल कांग्रेस प्रत्याशी को कम मत मिलने के पीछे माना जाता है कि यमकेश्वर से 2017 के विधानसभा चुनाव लडऩे के बावजूद शैलेंद्र रावत को आज भी क्षेत्र में बाहरी प्रत्याशी के तौर पर देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर रेनू बिष्ट, जो अब भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में है, 2017 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भी दूसरे नंबर रही। ऐसे में स्थानीय प्रत्याशी का मत प्रतिशत में वृद्धि होना स्वाभाविक है। इस लिहाज से यदि इस सीट पर महेंद्र राणा को मैदान में उतारा जाता तो उन्हें स्थानीय होने का भी लाभ मिल सकता था।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि किसी सीट पर लगातार एक ही पार्टी का जनप्रतिनिधि जीतकर आ रहा हो तो वहां विकास कार्यों की रफ्तार अक्सर धीमी रहती है और ऐसे में क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार हो जाते हैं। यमकेश्वर पर यह बात इसलिए भी सटीक बैठती है कि यहां चार बार से भाजपा विधायक रहने के बावजूद सिंगटाली पुल का निर्माण आज भी अधर में लटका हुआ है।
बहरहाल, अब देखना यह होगा कि महेंद्र राणा के निर्दलीय हुंकार भरने से यमकेश्वर में क्या नए समीकरण बनेंगे और ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस यहां पिछले चार बार से चल रहे सूखे को खत्म कर पाएगी या नहीं!