बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट की 1992 के दौर में रामजन्मभूमि आंदोलन में भूमिका और विभिन्न ऐतिहासिक पहलू - Mukhyadhara

बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट की 1992 के दौर में रामजन्मभूमि आंदोलन में भूमिका और विभिन्न ऐतिहासिक पहलू

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विशेष रामजन्मभूमि आंदोलन : विधायक महेंद्र भट्ट और लाखीराम सेमवाल 80 रुपए लेकर रवाना हुए थे अयोध्या के लिए और पहुंच गए जेल

1992 के दौर में जब राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए संघर्ष किया जा रहा था, वर्तमान उत्तराखंड के लोगों ने भी तब पूरे जोर-शोर से उस आंदोलन में भाग लिया था। वे दिन इतने संघर्षमयी थे कि विधायक बद्रीनाथ महेंद्र भट्ट तक अपने एक वरिष्ठ सहयोगी के साथ जेब में कुल 80 रुपए लेकर अध्योध्या के लिए घर से निकट पड़े, लेकिन जब ऋषिकेश पहुंचे तो वहां से वापस पौड़ी जेल में ठूंस दिए गए। आज श्रीराम जन्मभूमि पावन अयोध्या में श्रीराम मंदिर की आधारशिला रखी जा रही है तो विधायक महेंद्र भट्ट की स्मृति पर अनायास ही वे तमाम ऐतिहासिक पहलू जीवंत हो उठते हैं। उन्होंने कलम के माध्यम से उन तमाम पहलुओं को उकेरने का प्रयास किया है, ताकि आज की युवा पीढ़ी भी उन दिनों व स्थिति को करीब से समझ सकें। आइए उन्हीं के शब्दों में आपके समक्ष ज्यों के त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं:-

बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट की कलम से

देहरादून। आरक्षण आंदोलन से हमारे समाज को तोडऩे का ब्यापक षडयंत्र चल रहा था, विदेशी ताकतों के पैसे से अगड़ा पिछड़ों में समाज को बाँट दिया जाने लगा। जब देश के चिंतकों को लगा कि समाज को एक सूत्र में रखने के लिए क्या किया जाये, तब राष्ट्रवादी संघठनों के प्रयास से राम जन्मभूमि पर भब्य राममंदिर निर्माण के आंदोलन को गति दी गयी। इस आंदोलन का प्रभाव रहा कि सभी वर्गों ने जाति की बाधाएं तोड़ दी और आंदोलन ने जनांदोलन स्वरूप ले लिया। नवम्बर 1992 का समय था, पूरे देश से आह्वान था कि अयोध्या में मन्दिर निर्माण हेतु कार सेवा होनी है, देश से अनेकों कार सेवक पहुँचने लगे, मुलायम सिंह का कहना कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता, कार सेवकों की गिरफ्तारी होने लगी, देश के हर कोनों की जेल भर गई।
उत्तरांचली भी कहां पीछे रहते, सभी राष्ट्रवादी संघठनों ने उत्तरांचल में इस आंदोलन को चार चांद लगा दिए थे। चाहे शिला पूजन कार्यक्रम हो या राम ज्योति कार्यक्रम, यहाँ काफी प्रभावी रहे। विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ता होने के नाते हमारा भी ब्यापक उत्तरदायित्व था। उस समय जब राम ज्योति ऋषिकेश पहुँची तो टिहरी के भाजपा के नेता लाखीराम जोशी और ऋषिकेश के नेता लाला इन्द्रसेन पर पुलिस का जो जुर्म हुआ, उसे भुलाया नहीं जा सकता। अब बारी लग गयी थी कि अयोध्या जाना है और अगर पकड़े गए तो जेल। तय हो गया, तारीख याद नहीं है पर सूची बन गयी कि पहले दिन कौन-कौन जायेंगे। तय हुआ कि लाला इन्द्रसेन की दुकान के सामने एकत्र होना है। पहले दिन की सूची में संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता लाखीराम सेमवाल कलपुर्जे वाले आज स्व. हो गये, मेरा नाम सहित और नाम भी थे, परन्तु समय पर लाखीराम जी और मैं ही पहुँचे पाए थे।
पहला दिन था, शायद मानसिक रूप से और लोग तैयार नहीं हुए होंगे। हम निकल पड़़े नारे लगाते “ये दीवाने कहाँ चले -अयोध्या चले अयोध्या चले” और हम थाने से आगे बालिका इण्टर कॉलेज होते हुए तत्कालीन रोडवेज बस अड्डा (दीपक धमीजा के घर की सामने था) नकल रहे थे, परन्तु जैसे ही रेलवे रोड पहुंचे, पुलिस की एक गाड़ी आयी और हम दोनों को पकड़ कर थाने ले आयी। अब हमारी जेबे चैक होने लगी तो हम दोनों की जेबों में मिलाकर शायद 80 रुपये थे, जो अयोध्या के लिए पूरे टिकिट के भी नहीं थे। तो तत्कालीन थाना प्रभारी अब नाम याद नहीं है, ने कहा, चले थे बिना पैसों के अयोध्या, अब सड़ो जेल में। उस रात हम लॉकअप में रहे, रात को एक घटना हुई, पुलिस वाले एक कैदी को लाये और उसे थाने के सामने पेड़ पर बांधकर मारने लगे तो लॉकअप के अन्दर से लाखीराम सेमवाल ने जोर से चिल्लाकर कहा, अरे कंस के नौकरों इसे मार डालोगे क्या, इतना क्यों मार रहे हो, तब उस इंसपेक्टर ने बोला, इसके बाद तुम्हारी बारी है। अब मेरा डर भी बढऩे लगा था, लेकिन लाखीराम सेमवाल जी निर्भीक रूप में थे, मैं उनको समझा रहा था कि इनके मुंह नहीं लगना है, पर उनको बार-बार वो पुलिस वाला शायद जान बूझकर ऐसे शब्दों को बोल रहा था, जो कोई सज्जन सुन भी नहीं सकता था। एक बोल रहा था,–जब नहीं था गुथा तो क्यों लंका में कूदा–। उस रात खाना पुलिस वाले लाये पर सेमवाल जी ने बोला हम राक्षस के हाथ का नहीं खाएंगे और उस रात भूखे ही रहे।
अब अगले दिन सुबह लगभग 6 बज रहे होंगे हम उठ गए थे। एक पुलिस वाले ने बोला तैयार हो जाओ तुम्हें जेल जाना है। तब मुझे पता लगा कि ये तो केवल लॉकअप है जेल अलग होती है। हमारे हाथ की घड़ी और पैन और डिग्री कॉलेज का आईकार्ड पुलिस वालों ने ले लिया, (छूटने पर वापस मिल गया था) औऱ हमको सड़क पर लाये, वहाँ पर पुलिस की कैदियों वाली गाड़ी में बिठा दिया। अंदर पता चला कि ये गाड़ी देहरादून से आ रही है। उस गाड़ी में देहरादून के विधायक हरबंश कपूर जी सहित अनेको संघ के और वैचारिक संघठनों के लगभग 30 कार्यकर्ता भी थे। न जाने सुबह सुबह ऋषिकेश के भी कुछ लोगों को गिरफ्तार कर दिया था।मुझे उसमें हीरालाल जी कोयले की दुकान वाले, जो उस समय सभासद भी थे, दिखे, शायद कुछ और भी थे, उनके नाम याद नही हैं। हम सबको लेकर गाड़ी श्रीनगर से पौड़ी काँसखेत ले गयी। पूरा दिन सफर कर वहाँ पहुँचे तो जैल वहाँ के इण्टर कॉलेज में बनी थी।
हरबंश कपूर जी को काँसखेत में कोई सरकारी गेस्ट हाउस था, उसमे रखा गया और हमको स्कूल की कक्षों में दरी गद्दे बिछे थे, रात तो भोजन भी मिल गया। दो दिन से कुछ नहीं खाया था, भूख भी थी खाकर सो गये, हमसे पहले और लोग भी थे रात होने के कारण सब कमरों में थे परिचय नहीं हुआ।
अगले दिन समय सायद 6 बजे का होगा, लाखीराम सेमवाल जी ने सबको उठाया और शाखा लगाने लगे, तब देखा तो टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग से भी काफी लोग आए थे। हमारे आने के कई दिनों तक लोग आते रहे। वहाँ उस समय हरक सिंह रावत, जो तब भाजपा में ही थे, बाद में दूसरी पार्टियों में गये आज हमारे साथ ही हैं सरकार में वन मंत्री हैं।
इनके अलावा चमोली के आनन्द सिंह रावत, प्रेमबल्लभ भट्ट, अनेकों शिशु मंदिरों का आचार्य लोगों के अलावा कई लोग थे, सब नाम याद भी नहीं हैं। मैं अगले दिन से हरक सिंह रावत के साथ रहने लगा। ये पहली जेल थी, जो हमारे हिसाब से चलती थी। जेलर के चार्ज पर एक तहसीलदार साहब थे, उनका रात को जब मदिरापान होता था, तब वे आकर रोते हुए बोलते थे, भाई लोगों मेरी नौकरी मत खाना, कोई भागना नहीं, जो चाहिए मैं लाऊंगा और ऐसा उन्होंने किया भी। उस जेल में भोजन बनाने और उसका वितरण भी संघ वर्ग जैसा हमने चला दिया था। जो अण्डे खाता था उसको अण्डे भी मिलते थे, मैं अण्डे खाता था और साथ में रह रहे हरक सिंह भाई नहीं खाते थे, मैं उनके हिस्से के लाता था और खुद खा जाता था। अनेकों लोग काफी परेशानी में थे। अनेकों ब्यापारी थे। उस समय मोबाइल भी नहीं होते थे। ऋषिकेश के हीरालाल कोयले वाले काफी परेशानी में थे। उन्होंने एक दिन कहा कि अगर कोई ऋषिकेश जाने वाला हो तो उसके पास मैसेज देना है कि उनका एक नौकर यहाँ आ जाये और वो मेरी जगह पर संख्या पूरी कर दे। वहाँ रोज गिनती होती थी। पता नहीं उन्होंने ऐसा किया कि नहीं, पर वे कुछ दिन दिखाई नहीं दिए थे।
लगभग 15 दिन से ज्यादा हम वहाँ रहे। उस समय मेरी दाढ़ी बढ़ गयी थी। अब मुलायम सरकार गिर गयी थी। भाजपा सरकार बन गयी थी। अब हमको छोड़ दिया गया। जब मैं छूट कर घर आया तो मैं अपनी माँ के बगल से गुजरा तो मेरी माँ ने मुझसे बात नहीं की। मैं समझ नहीं पाया कि माँ ने मुझसे बात क्यों नही की। फिर मैंने पीछे से आवज दी तो तुरन्त माँ बोली कब आया। मैं कुछ देर सोच में पड़ गया। बाद में पता चला कि बाल और दाढ़ी इतनी बड़ी हो गयी थी कि माँ पहचान ही नहीं पायी।
अब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। देश में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार थी, पर आंदोलन चलता रहा। 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी ढांचा गिर गया। उस समय कोठारी बंधुओं की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता। ढांचा गिरने पर भाजपा की तीन सरकार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल की सरकारों को गिराकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और उसके बाद हुए चुनाव में भी भाजपा सरकार नहीं बना पाई।

तुरन्त माँ बोली कब आया। मैं कुछ देर सोच में पड़ गया। बाद में पता चला कि बाल और दाढ़ी इतनी बड़ी हो गयी थी कि माँ पहचान ही नहीं पायी।

अब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। देश में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार थी, पर आंदोलन चलता रहा। 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी ढांचा गिर गया। उस समय कोठारी बंधुओं की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता। ढांचा गिरने पर भाजपा की तीन सरकार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल की सरकारों को गिराकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और उसके बाद हुए चुनाव में भी भाजपा सरकार नहीं बना पाई।

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