अनाथ अवंतिका को सहयोग की आस
नीरज उत्तराखंडी/उत्तरकाशी
उत्तरकाशी जिले के डुंडा विकासखंड के ग्राम अठाली की 18 वर्षीय दिव्यांग अनाथ अवंतिका को सहयोग और सहानुभूति की आस है।
अनाथ बेटी अवंतिका जीवन के सपने साकार करने के लिए संघर्षरत थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था पहले सिर से माता पिता का साया उठ गया और फिर शरीर ने धोखा दे दिया वह पैरों से पूरी तरह दिव्यांग हों गई है, ना उठ सकती है ना बैठ सकती है यहां तक की शौचालय जाने के लिए भी उसे सहायक की जरूरत पड़ती हैl
3 वर्ष पहले तक अवंतिका अपने पैरों पर चलकर जीवन के सपनों को साकार करने के लिए संघर्षरत थी, लेकिन अचानक आई गंभीर बीमारी ने उसकी पूरी दुनिया ही बदल दी। बीमारी ने न केवल अवंतिका को कमर से नीचे तक अचल बना दिया, बल्कि उसी बीमारी ने उसके पिता गोपाल शाह का भी जीवन छीन लिया। माँ अनीता देवी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थीं।
बड़ी उम्मीद लेकर अवंतिका किसी तरह किसी की गाड़ी में परमार्थ दृष्टि दिव्यांग पब्लिक स्कूल की संचालिका विजय जोशी से मिलने गई इस उम्मीद के साथ की उसे यहां आश्रय मिलेगा लेकिन विजया की मजबूरी भी बहुत बड़ी है उसके पास में इसके लिए ना विशेष शौचालय है और ना ही कोई सहायक है जो दिव्यांग अवंतिका की देखरेख कर सके विजया जोशी ने अपनी मजबूरी बता कर इसे लौटा तो दिया लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि वह चाहते हुए भी उचित व्यवस्था के अभाव में उसकी सहायता करने में असमर्थ है।
विजया जोशी कहती है कि न जाने कितनी अवंतिकाएं पहाड़ के दूर दराज के गांवों में पड़ी होगी।
सरकार व जन प्रतिनिधियों का दायित्व है कि उनके लिए कोई व्यवस्था करें हमारे जनप्रतिनिधि और प्रशासन दिव्यांगों के बारे में कम ही सोचते हैं।
वे बताती हैं कि डुंडा में सरकार की ओर से एक वृद्ध आश्रम बना है जो खाली पड़ा है उसमें विस्तर है कुर्सी मेज हैं, कर्मचारी हैं लेकिन वृद्ध जन नहीं है अगर उसको इन दिव्यांगों के लिए एक हॉस्टल के रूप में चलाया जाए तो यहां अवंतिका जैसे दिव्यांगों को आश्रय मिल सकता हैl समाज के हर तबके का यह दायित्व है कि कम से कम अवंतिका के लिए मिलकर कुछ करें और इसको अनाथ न छोड़ें।
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम पंचोली ने बताया कि जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का भी दायित्व है की कम से कम ऐसे लोगों के लिए एक छात्रावास की व्यवस्था जिले में हो जहां अवंतिका जैसे अनाथ और दिव्यांग लोगों को आश्रय मिल सके।


