आलूबुखारा (plum) है सेहत के लिए वरदान
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
प्लम, आलूबुखारा या अलूचा, वानस्पतिक नामः प्रूनस डोमेस्टिका या प्रूनस सालिसिना दोनों रोजेसी कुल के अन्तर्गत आते है। आलू बुखारा या प्लम की बागवानी उत्तराखण्ड में प्रमुख रूप से की जाती है। कुछ किस्में उप-पर्वतीय तथा उत्तरी पश्चिमी मैदानी भागों में भी पैदा की जाती है ये सहिष्णु किस्में हैं और ये किस्में इस जलवायु में आसानी से पैदा होती है। उत्तराखण्ड में प्लम के अर्न्तगत 8,843 हैक्टयर क्षेत्रफल आंका गया है। जिससे लगभग 12,748 मैट्रिक टन प्लम उत्पादित होता है। आलूबुखारा एक मौसमी फल है, लेकिन लाजवाब है। यह खट्टे-मीठे रस से भरा होता है। यही रस शरीर को कई रोगों से बचाता है। यह दिल की रक्षा करता है और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है। हजारों सालों से पूरी दुनिया इसका मजेदार स्वाद ले रही है। सूखा आलूबुखारा तो और शानदार होता है।
आलूबुखारे का पेड़ लगभग 4-5 मीटर ऊंचा होता है। इसके फल को आलूबुखारा कहते हैं। यह पर्शिया, ग्रीस और अरब के आस-पास के क्षेत्रों में बहुत होता है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से मुनक्का के जैसा और भीतर से पीला होता है। पत्तों के भेद के अनुसार आलूबुखारे की 4 जातियां होती हैं। आलू बुख़ारे लाल, काले, पीले और कभी-कभी हरे रंग के होते हैं इसके बीज बादाम के बीज की तरह ही परन्तु कुछ छोटे होते हैं। इसका फल आकार में दीर्घ वर्तुलाकार होकर एक ओर फूला हुआ होता है। अच्छी तरह पकने पर यह फल खट्टा, मीठा,रुचिकर और शरीर को फायदेमंद स्वभाव को कोमल करता है, आंतों में चिकनाहट पैदा करता है, पित्त बुखार और रक्त ज्वर में लाभकारी है, शरीर की खुजली को दूर करता है प्यास को रोकता है। खट्टा होने पर भी खांसी नहीं करता तथा प्रमेह, गुल्म और बवासीर का नाश करता है। यह ग्राही, फीका, गर्म प्रकृति, मलस्तंभक, कफपित्तनाशक, पाचक, खट्टा, मधुर, मुखप्रिय तथा मुख को स्वच्छ करने वाला होता है और गुल्म, मेह, बवासीर और रक्तवात का नाश करता है।
पकने पर यह मधुर, जड़, पित्तकर, उश्ण, रुचिकर, धातु को बढ़ाने वाला और प्रिय होता है। मेह, ज्वर तथा वायु का नाश करता है।अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाव आलूबुखारा सूरज की अल्ट्रा वायलेट किरणों आपकी रक्षा करता है, इसके अलावा इसमें विटामिन ए और बीटा-कैरोटीन भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए व अन्य अंगों के लिए फायदेमंद है। यह आंखों की रौशनी भी तेज करता है।उच्च
रक्तचाप: पोटेशियम की बहुतायत होने से शरीर के सेल्स स्ट्रांग बनते हैं और रक्तचाप भी कंट्रोल में रहता है। ओस्टियोपोरेसिसमहिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में आलूबुखारा बेहद सहायक है। रजोनिवृत्ति के उपरांत महिलाएं आलूबुखारे का सेवन करें तो वे स्वयं को ओस्टियोपोरेसिस से बचा सकती हैं।
आलूबुखारे का प्रतिदिन सेवन आपको कब्जियत से राहत दिलाने में मदद करता है साथ ही पेट साफ करने में भी मदद करता है। छिलके के साथ आलूबुखारे का सेवन, ब्रेस्ट कैंसर को रोकने में सहायक होता है। यह कैंसर और ट्यूमर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स आपकी त्वचा के साथ ही दिमाग को भी स्वस्थ रखने में सहायता करते हैं। यह आपके तनाव को कम करने में भी अहम भूमिका निभाता है।आलूबुखारा डायट्री फाइबर से भरपूर होता है, जिसमें सार्बिटॉल और आईसेटिन प्रमुख हैं। खासतौर पर यह फाइबर्स, शरीर के अंगों के क्रियान्वयन को सरल बनाते हैं, और पाचन क्रिया को भी दुरूस्त करते हैं। आलूबुखारे के100 ग्राम में लगभग 46 कैलोरी होती है। अत: इसमें अन्य फलों की तुलना में कैलोरी काफी कम पाई जाती है। इस कारण से यह वजन नियंत्रित करने में भी बेहद सहायक होता है। आलूबुखारे में सैच्युरेटेड फैट या संतृप्त वसा बिल्कुल भी नहीं होता,जिससे इसे खाने के बाद आपको पोषक तत्व भी मिलते हैं, और वजन भी नहीं बढ़ता।
आलुबुखारे में आयरन की मात्रा होती है जो ब्लड सेल्स के निर्माण में मदद करती है।इसमें उपस्थित विटामिन-सी आपकी आंखों और त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक है, और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। इसके इलावा इसमें विटामिन-के एवं बी 6 भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।आलूबुखारा आपके फेफड़ों को सुरक्षित रखने के साथ ही आपको मुंह के कैंसर से बचाने में अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह अस्थमा जैसे रोगों को रोकने में मददगार साबित होता है।प्रतिदिन आलूबुखारा खाने और इसका गूदा चेहरे पर लगाने से चेहरे पर प्राकृतिक चमक आती है, साथ ही त्वचा को सभी पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे वह स्वस्थ रहती है।यह रक्त का थक्का बनने से रोकता है,जिससे ब्लडप्रेशर और हृदय रोगों की संभावना कम होती है। इसके साथ ही अल्जाइमर के खतरे को कम करता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, और इम्यूनिटी को बढ़ाता है।
भारत में आलूबुखारे की खेती कम होती है और इसकी आवक पहाड़ी इलाकों से अधिक है, जिनमें हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर शामिल हैं. यह अफगानिस्तान में भी खूब उगता है और अमेरिकियों का पसंदीदा फल है। वहां इसका प्रयोग वाइन व शराब बनाने के लिए भी होता है। भारत में तो यह डार्क रेड कलर का पाया जाता है, जबकि कई देशों में इसका रंग काला, पीला और हरा भी होता है। यह फल चेब, चेरी, रसभरी, खुबानी परिवार से है। इसकी सबसे ज्यादा पैदावार चीन में होती है, उसके बाद यह सर्बिया व यूएसए में उगाया जाता है। पूरी दुनिया में इसकी करीब 200 किस्में हैं और इसका साइज आंवले से लेकर आड़ू तक हो सकता है। भारत में इसे आलूबुखारा क्यों और कब से कहा जा रहा है, इसे लेकर जो जानकारी है, उसके अनुसार, आलू शब्द पुर्तगाली है और उज्बेकिस्तान के एक प्राचीन शहर का नाम बुखारा है। दूसरी ओर, फारसी में इस फल को आलू कहा जाता है, लेकिन भारत में इस फल का नाम आलूबुखारा है यानी ‘कहीका ईंट-कहीं का रोड़ा’ मिलाकर भारत में इसका नाम कुछ अलग ही हो गया।
माना जाता है कि मुस्लिम शासकों के भारत में आने के बाद इस फल का नाम आलूबुखारा हो गया हो। वैसे संस्कृत भाषा में इसका नाम ‘आरूकम’ है और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इसे आज भी इस जैसे मिलते-जुलते नाम से पुकारा जाता है खास बात यह है कि आलू बुखारा गुणकारी तो है ही, सूखा आलूबुखारा भी गुणों के मामले में काफी आगे है. इस रंग-बिरंगे आलूबुखारे में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, विटामिन सी, ए, के भी रहता है, जिससे शरीर की हड्डियां स्वस्थ रहती हैं। अगर इसका नियमित सेवन किया जाए तो यह बैड कोलेस्ट्रॉल को भी रोकता है।हर कोई प्लम के खट्टे-मीठे स्वाद का कायल हो जाता है और साथ ही इसके पॉलीफेनॉल और एंटीऑक्सीडेंट तत्वों का भी फायदा उठाता है। मानसून के मौसम में, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से लेकर हरियाणा और पंजाब के मैदानी इलाकों तक, सभी जगह पर प्लम की खेती की जाती है।
बारिश के मौसम में जहां आप प्लम को फल के रूप में खा सकते हैं वहीं स्वादिष्ट प्लम केक, जैम और जेली का भी स्वाद बेहद अलग और हटकर होता है।एक तरफ जहां हृदय रोग दुनिया भर में तेजी से बढ़ते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अब यह सिर्फ बुजुर्गों को ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि इससे प्रभावित होने वाले कम उम्र के युवक भी हैं। ऐसे में आलूबुखारा आपके हृदय स्वास्थ्य को मजबूत कर सकता है। आलूबुखारा में मौजूद विटामिन सी आपकी इम्यूनिटी मजबूत करता है और इसके साथ-साथ आपकी आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी काफी ज्यादा फायदेमंद है। जो लोग कब्ज यानी कि कॉन्स्टिपेशन से जूझ रहे हैं वो भी अपनी कब्ज की समस्या का हल बेर से कर सकते हैं।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)