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पीएम मोदी की लहर रही फीकी, यूपी ने नहीं दिया साथ, राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने भाजपा को बहुमत के आंकड़े पर लगाया ब्रेक

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पीएम मोदी की लहर रही फीकी, यूपी ने नहीं दिया साथ, राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने भाजपा को बहुमत के आंकड़े पर लगाया ब्रेक

 शंभू नाथ गौतम

इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजों ने 20 साल पहले की झलक दिखा दी। 2004 में हुए आम चुनावों के परिणाम आश्चर्य जनक और हैरान करने वाले थे। जब किसी ने सोचा भी नहीं था कि केंद्र की सत्ता में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार नहीं आएगी। लेकिन देश की जनता ने भाजपा को विपक्ष का दर्जा दे दिया। इन चुनावों ने साल 2004 की यादें ताजा कर दी। 3 जून तक भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 350 से लेकर 400 तक सीटों का दावा कर रहे थे। पीएम मोदी की आयु (करीब 74साल) के हिसाब से देखें तो उनके लिए यह चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण थे। अगर आसान शब्दों में कहें तो नरेंद्र मोदी इस बार भाजपा की प्रचंड जीत के साथ केंद्र की सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज होने की तैयारी कर रहे थे।

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लेकिन 4 जून को पीएम मोदी के सारे समीकरण गड़बड़ा गए। इन चुनाव नतीजों ने एग्जिट पोल के सभी दावों को ध्वस्त कर दिया। भाजपा को 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत के आंकड़े से 32 सीट कम हैं। एनडीए को 292 सीटें मिली हैं। शनिवार, 4 जून साल 2024 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पिछले 20 साल के सियासी करियर में बुरा दिन साबित हुआ। साल 2014 2019 और 2024 यह तीनों लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े गए। इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी वोटरों पर अपनी छाप नहीं छोड़ सके  इसके साथ प्रधानमंत्री की “गारंटी” भी वोटरों पर अपना असर नहीं डाल सकी। जिसका नतीजा हुआ कि भाजपा अपने ही मैदान में एक बड़ा मोर्चा हार गई। उत्तर भारत में पसरे 10 हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी ने 55 सीटें गवां दीं।

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सबसे खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से बहुत कम अंतर (करीब डेढ़ लाख) से चुनाव जीते। डेढ़ लाख वोटों से जीतना इसलिए कम है कि प्रधानमंत्री कई वर्षों से बनारस को हाइटेक सिटी बनाने में लगे रहे। पिछले 10 वर्षों से काशी में खूब विकास कार्य हुए। इसके बावजूद वाराणसी की जनता ने पीएम मोदी पर खुलकर प्यार नहीं बरसाया। लोकसभा सीटों के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छी तरह से आकलन नहीं कर पाए । यूपी में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए प्रधानमंत्री के अरमानों पर पानी फेर दिया। प्रदेश में अखिलेश यादव की सपा सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा को यूपी में सबसे ज्यादा 29 सीटों का नुकसान हुआ है। 2019 में उसे 62 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार पार्टी 33 पर सिमट गई। दूसरा सबसे बड़ा राज्य राजस्थान है, जहां उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ।

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2019 की 24 के मुकाबले इस बार उसे 14 सीटों पर ही जीत मिल सकी है। बिहार में भाजपा 2019 के मुकाबले 5 सीटों के नुकसान में रही। यहां उसकी सीटें 17 से घटकर 12 रह गईं। इसी तरह झारखंड में पिछली बार की 12 के मुकाबले उसे 8 सीटें ही मिलीं। यानी कुल 4 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं हरियाणा में पार्टी 10 से घटकर 5 सीटों पर सिमट गई। वहीं महाराष्ट्र में भी भाजपा को जबरदस्त झटका लगा। 2019 की 23 के मुकाबले इस बार 9 सीटें ही मिली हैं। यानी वहां भाजपा को पूरी 14 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। नतीजा यह हुआ इस लोकसभा चुनाव में अपने बूते बहुमत हासिल नहीं कर सकी। हालांकि केंद्र में भाजपा तीसरी बार अपनी सरकार बनाने जा रही है लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी अपने सहयोगी दल जेडीयू और टीडीपी को विश्वास में लेना होगा और उनकी हर डिमांड पूरी भी करनी होगी। जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू का अब केंद्र सरकार में अच्छा दखल होगा।

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सही मायने में इस बार कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव फायदे का सौदा रहा। राहुल गांधी ने दोनों सीटों वायनाड और रायबरेली से साढ़े तीन-तीन लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। ‌यह बड़ी जीत राहुल गांधी में आत्मविश्वास पैदा कर गई है।

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