अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष (International Millet Year) पर आई मोटे अनाज की याद
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष को देखते हुए सरकार को मोटे अनाज उत्पादन की याद आई है। वर्तमान समय में मोटा अनाज सिर्फ गरीबों की थाली तक सीमित रह गया है। पहले राज्य में मोटे अनाज का उत्पादन व्यापक स्तर पर होता था, लेकिन मोटे अनाज को मार्केट नहीं मिल पाई, जिस कारण काश्तकारों को इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाया और काश्तकारों ने इसका उत्पादन कम कर दिया। उत्तराखंड में लगभग 86 हजार हेक्टेयर में मंडुए की खेती की जाती है, इसमें 1.27 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। राज्य के गठन के बाद प्रदेश में मंडुए की खेती का रकबा कम हुआ है।
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वर्ष 2000 हजार में राज्य में मंडुए का क्षेत्र 1.32 लाख हेक्टेयर था जो अब वर्ष 2021-22 तक 86 हजार हेक्टेयर हो गया है। पहाड़ों में मंडुए की खेती एक जगह पर नहीं हो पाती है। इस वजह से किसान छोटे-छोटे खेतों में मंडुआ का उत्पादन करते हैं। मोटे अनाजों में बाजरा, ज्वार, रागी (मंडुआ), सांवा, कंगनी, कोदा, कुटकी और चेना शामिल हैं। मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। मोटे अनाजों में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, कैल्शियम, आयरन, मैंजीन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक जैसे अनेकों पोषक तत्वों के साथ मिलेटस एंटीआक्सिडेंट, फ्लेवोनोइडस, एंथोसायनिन, सैपोनिन और लिग्नन्स का पावरहाउस भी हैं।
अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष को देखते हुए इन सभी अनाजों के पौष्टिक गुणों और इससे होने वाले फायदे को लेकर सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार जागरूकता अभियान चला रहे हैं जिससे किसान इसकी खेती कर सकें और लोग अपने आहार में इन मोटे अनाजों को शामिल कर सकें। मोटे अनाज अभियान को सफल बनाने के लिए प्रदेशभर में आयोजनों की रूपरेखा तैयार की जा रही है। उत्तराखंड मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग ने मिलेट्स मिशन योजना तैयार की है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में किसान मंडुवा की खेती करते हैं। इन सभी किसानों से मंडुवा एकत्रित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रति किलो के हिसाब से प्रोत्साहन राशि देने की योजना बनाई गई है। मंडुवे का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को मंडुआ की उन्नत किस्मों का बीज दिया जाएगा और साथ ही प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। भारत के कई राज्यों में मंडुआ की खेती अच्छी मात्रा में की जाती है। इन राज्यों में उत्तराखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। मंडुआ का उपयोग रोटी, ब्रेड, इडली और डोसा बनाने में किया जाता है।
पौष्टिक आहार के प्रति जागरूक करने के लिए मिलेट्स मेलों का आयोजन किया जा रहा है। मिलेट्स मेले का मकसद आम जनमानस को मोटे अनाजों के प्रति जागरूक करना है, साथ ही लोगों की डाइट में मिलेट को वापस लाना है। सरकार की योजना मोटे अनाजों को आम जनता की थाली पहुंचाने की है। मोटे अनाजों के पौष्टिक गुणों को देखते हुए सरकार इन्हें सभी लोगों की डाइट में शामिल करने के लि मिलेटस थमी पर ईट राइट मेलों का आयोजन करने जा रही है आम तौर पर, खरीफ मौसम में चावल और कुछ महत्वपूर्ण दलहनों और तिलहनों के उत्पादन में यह गिरावट (गेहूं के उत्पादन में पहले की गिरावट के साथ) बढ़ गई होगी क्योंकि भारत,बड़े पैमाने पर खाद्यान्न भंडार का आदी हो गया है, और इसलिए भी क्योंकि दालों और खाना पकाने के तेल को किसी भी मामले में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में आयात किए जाता हैं।हालांकि, जैसा कि हम नीचे देखेंगे, कि कैसे सरकार इस संकट का अनुमान लगाने में असमर्थ रही, या शायद जोखिम से भरी नीतियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने संभावित संकट को जन्म दिया है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )