उत्तराखण्ड ‘कौथिग’ में गीतनृत्य नाटिका ‘नंदा की कथा’ (Nanda Ki Katha) का मंचन देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक - Mukhyadhara

उत्तराखण्ड ‘कौथिग’ में गीतनृत्य नाटिका ‘नंदा की कथा’ (Nanda Ki Katha) का मंचन देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

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उत्तराखण्ड ‘कौथिग’ में गीतनृत्य नाटिका ‘नंदा की कथा’ (Nanda Ki Katha) का मंचन

देहरादून/मुख्यधारा

20 नवम्बर की शाम को गढ़वाल सभा द्वारा आयोजित ‘कौथीग’, उत्तराखण्ड महोत्सव में डॉ. नंद किशोर हटवाल द्वारा लिखित एवं डॉ. राकेश भट्ट द्वारा निर्देशित ‘नंदा की कथा’ गीतनृत्य नाटिका का शानदार मंचन किया गया। गीतनृत्य नाटिका के माध्यम से नंदा का मिथक और नंदा का प्रचलित लोक विश्वास उत्तराखण्ड की लोक शैली में मंच पर जीवन्त हुआ।

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उत्तराखण्ड में नंदादेवी का मिथक बहुप्रचलित और लोकप्रिय है। यह लोकविश्वास यहां के लोकसाहित्य की अहम् विषयवस्तु है। लोककथाओं, गीतों, नृत्यगीतों, गाथाओं के साथ-साथ तीज-त्यौहारों, उत्सव-मेलों के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ हस्तान्तिरित होते हुए यह मिथक मौखिक रूप में यहां के ‘लोक’ में विद्यमान है।

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उत्तराखण्ड में इस मिथक के रोचक और लोकप्रिय प्रसंगों का वर्णन बहुविध किया जाता रहा है जिसमें सर्वाधिक प्रचलित विधा है नंदा देवी के जागर। ‘नंदा की कथा’ गीतनृत्य नाटिका नंदा के जागरों पर आधारित है।

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उत्तराखण्ड में जागर गायन की एक विशिष्ट शैली है। कई धुनो और तौर-तरीकों के साथ जागरों को प्रस्तुत किया जाता है। ‘नंदा की कथा’ नाटक में जागर गायन की इन्हीं परम्परागत शैलियों और नृत्य भंगिमाओं का उपयोग बखूबी किया गया है।

रविवार 20 नवंबर की शाम लोक संगीत और लोक वाद्ययंत्रों से सराबोर इस प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों में छाप छोड़ी। इस नाटिका के कला निर्देशन, मंच सज्जा, वेशभूषा, वस्त्र विन्यास के साथ लोक की ताकत, जागरों की मधुर धुने, कलाकारों का नाटक में रचाव-बसाव, नाटकीयता के साथ कथारस और कथासूत्रों को जोड़ते हुए इसके मंचन ने इस नाट्य प्रस्तुति को प्रभावशाली बना दिया। पूरी प्रस्तुति के दौरान दर्शक मंत्रमुग्ध बैठे तालियों की गड़गड़ाहट से प्रस्तुति को सराहते रहे।

इस गीतनृत्य नाटिका के लेखक डॉ. नंद किशोर हटवाल ने शानदार तरीके से नंदा के पूरे मिथक को इस नाटिका में समेटा है। इस गीतनृत्य नाटिका के माध्यम से दर्शक नंदा के मिथक को वास्तविक रूप में समझ पाते हैं।

नाटक के निर्देशक डॉ. राकेश भट्ट किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, वे लोकरंगमंच के मर्मज्ञ हैं और इस क्षेत्र का लम्बा अनुभव और समझ उनको विशिष्ट बनाती है। लोकगायकी हो या लोकनाट्य, अभिनय हो या निर्देशन उनके लोक की गहरी समझ की छाप उनके द्वारा निर्देशित प्रस्तुतियों पर स्पष्ट दिखती है।

डॉ. भट्ट लोक नाट्यों के क्षेत्र में लम्बे समय से सक्रिय है। उनके निर्देशन में इस ‘नंदा की कथा’ नाटक की 200 से अधिक बार प्रस्तुत किया जा चुका हैं। वर्तमान में डॉ. राकेश भट्ट दून यूनिवर्सिटी के उत्तराखण्ड भाषा लोककला एवं संस्कृति निष्पादन केन्द्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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50 से अधिक कलाकारों द्वारा अभिनीत इस नाटक में नंदा (प्रज्ञा नेगी, अक्षिता रावत, प्रियंका), नंदा का कालीरूप (रितिका चंदोला), शिव (रिपुल वर्मा), हेमंद ऋषि (राजेश नौगांईं), मैणावती (गायत्री टम्टा), नारद (मोहित घिल्डियाल), हीत-विंसर (सिद्धार्थ डंगवाल-श्रेय अग्रवाल), सात भाई ऋषि ( दीपक कुमार, अमरजीत, ईशान, आयुष रौथाण, श्रेय अग्रवाल, चन्द्रभान, सिद्धान्त डंगवाल) का अभिनय अच्छा रहा।

जागरिया (सूत्रधार) के रूप में शैलेन्द्र तिवारी प्रभावशाली तरीके से दर्शकों को नाटक के कथा सूत्रों को समझने में सफल रहे।

पार्श्व गायन डॉ. राकेश भट्ट का रहा एवं सहयोगी गायक के रूप में सोनिया गैरोला, भावना नेगी, सुषमा, विनीता मृत्युंजया, सुषमा नेगी, सरिता मैन्दोलिया, पूनम सकलानी ने अच्छा साथ दिया। नृत्यांगनाओं की भूमिका में प्रियांशी पोखरियाल, कोमल सोन, संजना जुयाल, अनुराधा रौथाण, प्राची नेगी, पायल रौतकी, स्नेहा मिश्रा, जागृति तोमर, साक्षी रावत, अंजली रतूड़ी, दिशा, मीना भास्खण्डी, सुषमा नेगी ने शारदार नृत्य किया।

ढोल-दमाऊं पर प्रेम हिंदवाल और जगमोहन, बांसुरी पर महेश कुमार, थाली-हुड़के पर आनंद लाल शाह और डौंर-हुड़के पर अभिषेक थपलियाल की उपस्थिति प्रस्तुति में लोकरंग घोलने में रही।

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