दुनिया में नेपाल अकेला ऐसा देश, जो विक्रम संवत से चलता है - Mukhyadhara

दुनिया में नेपाल अकेला ऐसा देश, जो विक्रम संवत से चलता है

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दुनिया में नेपाल अकेला ऐसा देश, जो विक्रम संवत से चलता है
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि के साथ ही हिंदू नववर्ष यानी विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो गई है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी देखा जाए तो ग्रेगोरियन कैलेंडर से विक्रम संवत करीब 57 वर्ष आगे चलता है। आज दुनिया के अधिकांश देशों में भले ही ग्रेगोरियन कैलेंडर चलन में आ गया है लेकिन दुनिया में नेपाल ही ऐसा एकमात्र देश में हैं, दो विक्रम संवत के हिसाब से देश को चलाता है। नेपाल की सरकार के साथ-साथ आम
जनता ही हिंदू नववर्ष गुड़ी पड़वा को ही साल का पहला दिन मानती है और इसी के हिसाब के पूरे कार्यक्रम निर्धारित करती है। नेपाल में आधिकारिक तौर पर विक्रम संवत कैलेंडर का उपयोग 1901 ईस्वी में शुरू किया गया। नेपाल में राणा वंश के राजाओं ने विक्रम संवत को आधिकारिक हिंदू कैलेंडर घोषित किया था। नेपाल में नया साल वैशाख महीने के पहले दिन से शुरू होता है। नेपाल में नए साल के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित होता है।

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गौरतलब है कि राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत कैलेंडर की शुरुआत की गई थी।संस्कृत में संवत शब्द का अर्थ वर्ष होता है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व में हुआ था और उनका निधन 15 ईस्वी में हुआ था। भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य को यशस्वी राजा के रूप में याद किया जाता है और उन्होंने कई परोपकारी कार्य किए थे। न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। विक्रम संवत से पहले भारतवर्ष में सप्तर्षि संवत चलन में था। करीब 5000 साल पहले द्वापर युग भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। इसके बाद श्रीकृष्ण के नाम से संवत प्रचलित हुआ। धार्मिक मान्यता भी है कि द्वापर युग में राजा परीक्षित के निधन के बाद कलयुग की शुरुआत हो गई है। श्रीकृष्ण संवत या सप्तर्षि संवत के करीब 3000 साल बाद विक्रम संवत की शुरुआत हुई, जो आज तक प्रचलित है। सप्तर्षि संवत भारत का प्राचीन संवत माना जाता है, जो करीब 3076 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। महाभारत काल तक सप्तर्षि संवत का ही प्रयोग हुआ था।

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पुराण, महाभारत, राजतरंगिणी, श्रीलंका का प्रसिद्ध ग्रंथ महावंश आदि में सप्तर्षि संवत का जिक्र मिलता है। हालांकि वर्ष 1954 से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने हिंदू कैलेंडर यानि विक्रम संवत को ग्रेगोरियन फारमेट के साथ अपना लिया था लेकिन देश का सारा कामकाज ग्रेगोरियन कैलेंडर फारमेट से ही होता है. नेपाल ने हमेशा हिंदू कैलेंडर को ही माना है. इसे विक्रमी कैलेंडर भी कहते हैं. ये ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है. इसे विक्रम संवत कैलेंडर भी कहते हैं.करीब 57 ईसा पूर्व से ही भारतीय उपमहाद्वीप में तिथियों एवं समय का आंकलन करने के लिए विक्रम संवत, बिक्रम संवत अथवा विक्रमी कैलेंडर का प्रयोग किया जा रहा है. ये यह हिन्दू कैलेंडर नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर है.

वैसे भारत के कई राज्यों विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है. चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि के साथ ही हिंदू नववर्ष यानी विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो गई है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी देखा जाए तो ग्रेगोरियन कैलेंडर से विक्रम संवत करीब 57 वर्ष आगे चलता है। आज दुनिया के अधिकांश देशों में भले ही ग्रेगोरियन कैलेंडर चलन में आ गया है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में नेपाल ही ऐसा एकमात्र देश में हैं, दो विक्रम संवत के हिसाब से देश को चलाता है। नेपाल की सरकार के साथ-साथ आम जनता ही हिंदू नववर्ष गुड़ी पड़वा को ही साल का पहला दिन मानती है और इसी के हिसाब के पूरे कार्यक्रम निर्धारित करती है। नेपाल ने विक्रम कैलेंडर को अपनाए रखा और आज भी देश में इसी के अनुरूप कामकाज निर्धारित होते हैं। नेपाल में आधिकारिक तौर पर विक्रम संवत कैलेंडर का उपयोग 1901  ईस्वी में शुरू किया गया। नेपाल में राणा वंश के राजाओं ने विक्रम संवत को आधिकारिक हिंदू कैलेंडर घोषित किया था। नेपाल में नया साल वैशाख महीने के पहले दिन से शुरू होता है। नेपाल में नए साल के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित होता है।

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राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत कैलेंडर की शुरुआत की गई थी। संस्कृत में संवत शब्द का अर्थ वर्ष होता है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व में हुआथा और उनका निधन 15 ईस्वी में हुआ था। भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य को यशस्वी राजा के रूप में याद किया जाता है और उन्होंने कई परोपकारी कार्य किए थे। न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। जो सभ्यता अपने इतिहास पर गर्व करती है, अपनी संस्कृति को सहेज कर रखती है और अपनी परंपराओं का श्रद्धा से पालन करके पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाती है वो गुज़रते वक्त के साथ बिखरती नहीं बल्कि और ज्यादा निखरती जाती है। तारीखें देखने के लिए भले ही अंग्रेजी कैलेंडर लाते हों लेकिन तिथियांं तो पंचांग में ही देखते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु ,गृह प्रवेश से लेकर भूमिपूजन, मुंडन से लेकर विवाह तक शुभ मुहूर्त तो विक्रम संवत से ही निकालतें हैं। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ईसाई युग से
57 साल पहले विक्रम संवत शुरू किया गया था जिसकी वैज्ञानिकता के आगे आज भी आधुनिक विज्ञान बहुत बौना साबित होता है।

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दरअसल जब पश्चिमी सभ्यता में गैलेलियो को उनकी खोजों के लिए सजा दी जा रही थी तब भारत ब्रह्मांड के रहस्य दुनिया के सामने खोलते जा रहा था। जब पश्चिमी सभ्यता में एक हज़ार से ऊपर की गणना का ज्ञान नहीं था, तब भारत को गणित की विराटतम संख्या “तल्लाक्षण”का भी ज्ञान था।तल्लाक्षण अर्थात एक के आगे त्रेपन शून्य से निर्मित संख्या। “ललित विस्तार” नामक ग्रंथ में तल्लाक्षण की व्याख्या करते हुए कहा गया है, “सौ करोड़ यानी एक अयुत,सौ अयुत यानी एक नियुत, सौ नियुतयानी एक कंकर,सौ कंकर यानी एक सर्वज्ञ,सौ सर्वज्ञ यानी एक विभूतंगमा और सौ विभूतंगमा का मान एक तल्लाक्षण के बराबर होता है। शून्य की खोज हो चाहे नक्षत्रों की खोज, गणित का क्षेत्र हो या खगोल का, आध्यात्म का ज्ञान हो या ज्योतिष, भारतीय दर्शनशास्त्र हो या अर्थशास्त्र इसकी वैज्ञानिकता आज भी अचंभित करने वाली है।

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इस बात का प्रमाण भारतीय कालगणना है जिसे आज अकाट्यमानकर नासा में इस पर खोज हो रही है। इसकी वैज्ञानिकता का प्रमाण इससे अधिक क्या हो सकता है कि केवल मानव मात्र इसे एक उत्सव के रूप में नहीं मनाता अपितुप्रकृति भी इस खगोलीय घटना के स्वागत को आतुर दिखाई देती है।महीनों से खामोश कोयल कूकने लगती है, पक्षी चेहचहाने लगते हैं, पेड़ नए पत्तों से सजजाते हैं, बगीचे रंग बिरंगे फूलों से खिलखिला उठते हैं, पूरी धरती लाल, पीली, हरी चुनरी ओढ़कर इठला रही होती है, और सर्द मौसम वसंत की अंगड़ाई ले रहा होता है। क्या पौधे क्या जानवर सभी एक नई ऊर्जा एक नई शक्ति का अनुभव कर रहे होते हैं। ऐसे में शक्ति की उपासना के साथ नवसंवत्सर के स्वागत से बेहतर और क्या हो सकता है। यही सनातन संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान हैं।महात्मा गांधी ने भी कहा है कि “स्वराज का अर्थ है, स्वसंस्कृति, स्वधर्म एवं स्वपरम्पराओं का हृदय से निर्वाह करना।”

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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