देहरादून/मुख्यधारा
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डीआईजी कुमाऊं डॉ. नीलेश आनन्द भरणे को निर्देश दिये कि चम्पावत जनपद के राजकीय इण्टर कॉलेज सूखीढ़ांग में भोजन माता प्रकरण की जाँच करवाकर दोषियों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले में दुष्प्रचार करने वालों पर भी निगरानी रखी जाए। डीआईजी कुमायूं द्वारा मौके पर जाकर पूरे मामले की जांच की जाएगी।
बताते चलें कि चंपावत जनपद के राजकीय इण्टर कॉलेज सूखीढ़ांग में दलित भोजनमाता द्वारा बनाए गए भोजन को सवर्ण बच्चों द्वारा न खाए जाने के बाद यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा तो बीते मंगलवार को एसएमसी व पीटीए की बैठक में इस मामले को रखा गया। इस पर एडी बेसिक अजय नौटियाल, मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित व बीईओ अंशुल बिष्ट ने जांच कर भोजनमाता की नियुक्ति को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया। उनका कहना था कि इस पद के लिए अब नई विज्ञप्ति जारी की जाएगी।
बताया गया कि पूर्व में एक परित्यक्ता महिला पुष्पा भट्ट की यहां भोजनमाता के रूप में नियुक्ति की गई। हालांकि इसी बीच प्रशासन द्वारा अनुसूचित जाति की महिला सुनीता देवी को भोजनमाता के रूप में नियुक्त कर दिया। जब दलित भोजनमाता ने स्कूल में भोजन बनाया तो सवर्ण जाति के बच्चों द्वारा उसके हाथ से बनाए गए भोजन को नहीं खाया गया। इससे मामला सुर्खियों में आया। अब इसी मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डीआईजी कुमाऊं को निर्देश दिए हैं कि वे इसकी जांच कराकर दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करेंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की इस कार्यवाही के बाद जितनी सराहना की जाए, उतनी कम है।
इस प्रकरण पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा ने सवाल उठाते हुए कहा है कि मैं पूछता हूँ कि यह कैसा न्याय है, जहां उल्टा पीड़ित को ही दंड मिलता है? क्या कसूर था, उस भोजन माता का, जिसे पहले तो नियुक्ति मिली और फिर बिना कारण के निलंबन। क्या यह हमारे सपनों का उत्तराखण्ड है, जिसके लिए कितने ही लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई।
प्रदीप टम्टा ने कहा कि चंपावत में हुए भोजनमाता के निलंबन के बाद दो बड़े प्रश्न उठते हैं। पहला यह कि जब सब नियमों को देखते हुए स्कूल प्रशासन ने भोजनमाता को नियुक्ति दी थी तो किस आधार पर भोजन माता का निलंबन हुआ? और अगर नियुक्ति में कोई कमी थी तो वह गलती किसकी है? उसकी सज़ा किसे मिलेगी? क्या एक महिला को नियुक्त करके उसे जाति के आधार पर अपमानित और निलंबित करना सरासर अमानवीय नहीं है?
प्रदीप टम्टा ने कहा कि दूसरी बात यह है कि जब सभी बच्चे भोजन माता के भोजन को सप्रेम ग्रहण कर रहे थे तो वे कौन हैं, जिन्होंने बच्चों के कोमल मन में जातिगत भेदभाव का ज़हर घोला? क्या उन लोगों की पड़ताल कर उन्हें जातिगत भेदभाव बढ़ाने के लिए सजा नहीं मिलनी चाहिए? वे कौन लोग हैं, जो 21वीं सदी में रहते हुए भी उल्टे पांव चलने को न सिर्फ मजबूर हैं, बल्कि बच्चों के कच्चे मन में भी छुआछूत जैसी कुप्रथा का विष घोल रहे हैं?
प्रदीप टम्टा ने सबका साथ सबका विकास की बात करने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार से सवाल पूछा है कि ये कैसा साथ है और कैसा विकास है? क्या इस संबंध में दोषियों की जांच नहीं होनी चाहिए, उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए? और उस महिला का सम्मान उसे नहीं लौटाना चाहिए, जिसे जाति के आधार पर अपमानित कर हाशिये में धकेल दिया गया।
प्रदीप टम्टा ने कहा कि यह मेरे लिए राजनीति से बढ़कर मानवता का विषय है, इसलिए इस अमानवीय घटना की उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए और उस भोजन माता को उसका सम्मान और उसकी नौकरी वापस मिलनी चाहिए और हमें खुद सोचना होगा कि हम प्रदेश को और अपने बच्चों को किस ओर धकेल रहे हैं?
कुल मिलाकर पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा के सवाल अपने जगह वाजिब हैं और आज के सभ्य समाज मेें छुआछूतरूपी विष को न सिर्फ खत्म करने की जरूरत हैं, बल्कि देश के भविष्य नन्हें विद्यार्थियों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि इस तरह की कुरीतियों से देश पिछड़ता है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के डीआईजी कुमाऊं को इस प्रकरण की जांच के आदेश दिए जाने के बाद उम्मीद की जा रही है कि जल्द इस मामले की हकीकत सार्वजनिक हो जाएगी!
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