ब्रेकिंग: महाराष्ट्र में उद्धव-शिंदे के बीच सियासी संकट और दिल्ली में एलजी-सीएम केजरीवाल के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज सुनाएगी अहम फैसला
दोनों फैसलों पर लगी निगाहें
मुख्यधारा डेस्क
देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट आज दो बड़े फैसले सुनाने जा रही हैं। पहला महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लेकर है। दूसरा दिल्ली में उपरज्यपाल विनय सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच अधिकारों को लेकर है।
सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों फैसलों को लेकर सियासी सरगर्मी भी जारी है। महाराष्ट्र सियासी संकट मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसला पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राजनीतिक भविष्य का भी फैसला होगा।
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बता दें कि शिवसेना में हुई आपसी फूट के बाद यह मामला अदालत पहुंचा था। उद्धव ठाकरे ग्रुप और एकनाथ शिंदे ग्रुप की ओर से दलीलें पेश की गईं और फिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अर्जी में शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की गई है। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नारवेकर ने कहा कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत है, चाहे कोई भी फैसला आए।
नारवेकर ने कहा था कि विधायकों की अयोग्यता के संबंध में फैसला विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। इस मामले में फैसले के साथ ही एकनाथ शिंदे के भविष्य का भी फैसला होगा। इसलिए न सिर्फ उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट, बल्कि बीजेपी, कांग्रेस और एनसीपी समेत महाराष्ट्र की सभी राजनीतिक पार्टियां इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिंदे ने बुधवार रात को अपने घर पर नेताओं और विधायकों की बैठक बुलाई। वहीं सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ गुरुवार को दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के बंटवारे पर फैसला सुनाएगी। यह मामला राजधानी में सिविल सर्वेंट्स के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों से जुड़ा हुआ है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने 18 जनवरी को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की यह लड़ाई 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची थी। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में राज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। आप सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 5 सदस्यीय संविधान बेंच ने मामले में सुनवाई की और जुलाई 2016 में आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि सीएम ही दिल्ली के एक्जीक्यूटिव हेड हैं। उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते हैं। इसके बाद सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मामलों को सुनवाई के लिए दो सदस्यीय रेगुलर बेंच के सामने भेजा गया। फैसले में दोनों जजों की राय अलग थी। इसके बाद ये मामला 3 सदस्यीय बेंच के पास गया। उन्होंने पिछले साल जुलाई में केंद्र की मांग पर इसे संविधान पीठ के सामने भेज दिया।
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