सुषमा (Sushma)भारतीय मूल्यों और शालीनता की प्रतिमूर्ति रही है
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सुषमा स्वराज का व्यक्तित्व हिमालय के सामान विराट था। भारत देश सहित सम्पूर्ण विश्व ने एक अत्यंत जो सार्वजनिक जीवन में गरिमा, सौम्यता, साहस और निष्ठा का प्रतीक था। सुषमा जी हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थीं। भारत की जनता की सेवा के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। सुषमा एक कुशल राजनीतिज्ञ, एक प्रखर ओजस्वी वक्ता और एक सादगीपूर्ण व्यक्तित्व की धनी थीं। सुषमा का स्थान भारतीय राजनीती में कोई नहीं ले सकता है। उन्होंने भारतीय राजनीती में अपने किये गए कार्यो और अपने व्यवहार से जो छाप छोड़ी है वह अमिट एवं अनुकरणीय है। सुषमा में भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर भरी थी कहा जाए तो वह भारतीय नारी का गौरव थीं। सुषमा एक महान नेता थीं, जिनके जाने से भारतीय राजनीति को बहुत क्षति हुई है जिसकी भरपाई मुश्किल है।
सुषमा स्वराज ने एक प्रखर ओजस्वी वक्ता, एक आदर्श कार्यकर्ता, लोकप्रिय जनप्रतिनिधि व कर्मठ मंत्री जैसे विभिन्न रूपों में भारतीय राजनीति में अपनी एक अद्वितीय पहचान बनायी। सुषमा का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही सादगीपूर्ण और साहसिक था। सुषमा दीदी एक प्रखर वक्ता के साथ-साथ एक सख्त प्रशासक, साहसिक और लोकप्रिय नेता थी। सुषमा की भाषण देने की कला हर किसी को बहुत प्रभावित करती थी, सुषमा जब भाषण देती थी तो ऐसा लगता था कि उनकी जुबान पर मान सरस्वती विराजमान हो। सुषमा हमेशा तथ्यों के साथ अपने भाषण देती थी। वो बहुत अच्छी तरह से धारा प्रवाह भाषण भी देती थी। आज भी उनके संसद में दिए गए भाषण लोकप्रिय हैं। जब वो बोलती थीं तो ऐसा लगता थी कि उन्हें देखते ही रहो और उनकी ओजस्वी वाणी को सुनते रहो।
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सुषमा हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और कन्नड़ भाषा सहित और कई भाषाओँ में धारा प्रवाह भाषण देती थीं। अच्छे-अच्छे विद्वानों में संस्कृत में भाषण देने की हिम्मत नहीं होती है लेकिन सुषमा द्वारा संस्कृत में दिए गए भाषण भी बहुत लोकप्रिय हैं। सुषमा का सामाजिक और राजनैतिक जीवन बहुत लम्बा रहा है। इतने बड़े सार्वजनिक जीवन में सुषमा का किसी विवाद से नाता नहीं रहा यही बात उनके व्यक्तिगत जीवन को विशेष बनाती है। सुषमा स्वराज ने अपने जीवन में कई रिकॉर्ड बनाये। सुषमा भारत की प्रमुख महिला राजनेताओं में से एक थी जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में कई आयाम स्थापित किये।
सुषमा शर्मा का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला छावनी में हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी के यहां हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने अंबाला के सनातन धर्म कॉलेजद से संस्कृत और राजनीति विज्ञानस से स्नातक किया था। कॉलेज में ही उन्होंने अपने वाक कौशल के झंडे गाड़ दिए थे। इसके बाद चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की जहां उन्हें यूनिवर्सिटी का सर्वोच्च वक्ता का सम्मान मिला था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के तौर पर काम किया। वैसे तो सुषमा स्वराज का एक बेहतरीन राजनैतिक करियर रहा, लेकन उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा पहलू उनकी शानदार वाकपटुता थी। वे केवल हिंदी को बहुत ही शुद्ध और
उत्कृष्ठ अंदाज में बोला करती थीं। सितंबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र मे दिया गया उनका हिंदी में भाषण सबसे चर्चित रहा था। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए उन्होंने विशेष प्रयास किए थे। हमेशा संस्कृत में शपथ लेने वाली सुषमा स्वराज कई अवसरों पर धारा प्रवाह संस्कृत में भाषण दिया करती थीं। संस्कृत के अलावा अंग्रेजी में भी बहुत धाराप्रवाह बोला करती थीं। संसद में अगर कोई सांसद उनसे अंग्रेजी में सवाल कर देता था तो वे अंग्रेजी में ही अपने तार्किक उत्तर दिया करती थीं।जब उन्होंने कर्नाटक से चुनाव लड़ा तो उन्हें कन्नड़ भी सीख कर कन्नड़ में भाषण दिए थे।
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सुषमा स्वराज केवल वक्ता ही नहीं थीं। वे एक प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक भी थीं और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद देश के बाद सबसे लोकप्रिय वक्ता मानी जाती थीं। 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषत से जुडडने के बाद आपातकाल में विरोधी आंदोलन में शामिल रहीं और उसके बाद जनता पार्टी की सदस्य बनने के बन गईं। 1977 में अंबाला से हरियाणा की विधायक बनीं और 25 साल की उम्र में ही चौधरी देवी लाल की सरकार में मंत्री बन सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया। भारत की पहली महिला विदेश मंत्री, भाजब का पहली महिला राष्ट्रीय मंत्री, भाजपा की पहली महिला प्रवक्ता, भाजपा की पहली महिला कैबिनेट मंत्री, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री, देश की किसी भी राजनैतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता जैसे कई रिकॉर्ड उनके नाम हैं। सात बार संसद सदस्य के रूप में और तीन बार विधानसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं।
स्वराज के पास केंद्रीय मंत्रिमंडल में दूरसंचार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और संसदीय कार्य विभागों जैसी जिम्मेदारियां भी रहीं उनका विवाह उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल से हुआ था जो 1990 से 1993 तक मिजोरम के राज्यपाल रहे। कौशल भी 1998 से 2004 तक संसद सदस्य रहे। स्वराज को उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार भी मिला था। विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत-पाक और भारत-चीन संबंधों सहित रणनीतिक रूप से संवेदनशील कई मुद्दों को देखा और बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाईं। भारत और
चीन के बीच डोकलाम गतिरोध को दूर करने में उनकी भूमिका को हमेशा याद रख जाएगा। स्वराज की तारीफ हर राजनीतिक दल के लोग करते थे। लोग उनकी भाषण कला को पसंद करते थे। वह जब संसद में बोलती थीं तो सदस्य उन्हें गंभीरता के साथ सुनते थे। विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में, स्वराज को शायद आम लोगों के लिए सबसे सुलभ मंत्री के रूप में जाना जाता था। आम लोगों ने परेशानी में सक्रिय रूप में जाना जाता था।
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उत्तराखंड से उनका अटूट रिश्ता रहा है। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने जो काम किए,उन्हें उत्तराखंड हमेशा याद रखेगा। सुषमा स्वराज के प्रयासों से ही उत्तराखंड के ऋषिकेश में एम्स की स्थापना हो सकी। आज पहाड़ के हजारों लोग एम्स अस्पताल की सेवाओं का फायदा उठा रहे हैं। पहले इन लोगों को इलाज के लिए दिल्ली जैसे शहरों में भागना पड़ता था। जिससे पैसे की बर्बादी तो होती ही थी, समय पर इलाज भी नहीं मिल पाता था। सुषमा स्वराज की बदौलत ही ऋषिकेश एम्स की सौगात मिल सकी।आगे जानिए सुषमा स्वराज का उत्तराखंड से क्या रिश्ता था। वह उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य भी रह चुकी थीं। प्रदेश की जनता के बीच वो बेहद लोकप्रिय थीं। वो सादगी से रहती थीं, यही सादगी उन्हें खास बनाती थी। लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, स्टार प्रचारकों में सुषमा स्वराज की हमेशा डिमांड रही। लोग उन्हें सुनना चाहते थे।
उत्तराखंड राज्य गठन के वक्त जब उत्तराखंड में राज्यसभा की तीन सीटें बनीं, तो इनमें से एक सीट का प्रतिनिधित्व सुषमा स्वराज ने किया था। उस वक्त स्व. अटल बिहारी वायपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी। उत्तराखंड से वायपेयी सरकार में तीन मंत्री थे। जिनमें सुषमा स्वराज के अलावा लोकसभा सदस्य रावत और खंडूड़ी शामिल थे। जब वो केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बनीं तो उन्होंने उत्तराखंड का खास ख्याल रखा और यहां एम्स की स्थापना कराई। भारत और विदेशों में लोकप्रिय, सुषमा स्वराज का उनके राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चार राज्यों – दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश उत्तराखंड से गहरा संबंध था। सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री रहते हुए बहुत अच्छे कार्य किये, उनके विदेश मंत्री रहते हुए भारत देश ने बहुत देशों के साथ अच्छे राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। अगर कोई पीड़ित व्यक्ति सुषमा जी को अपनी परेशानी को लेकर कोई ट्वीट करता था तो उसके एक ट्वीट पर मदद पहुँच जाती थी।
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अपने विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा ने कई बिछड़ों को अपनों से मिलाया इसलिए लोग उन्हें मदर इंडिया भी कहने लगे थे। इसके साथ ही सुषमा ने विदेशों में बसे हर भारतीय को परेशानी में मदद पहुंचाई। विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने ‘यमन संकट’ के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन राहत’ में बहुत ही शानदार काम किया था। इस दौरान 4,741 भारतीय नागरिकों और 48 देशों के 1,947 लोगों को बचाया गया था। सुषमा स्वराज ने विदेशमंत्री रहते हुए युद्धग्रस्त इराक में फंसे 168 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला था। सुषमा स्वराज ने विदेशमंत्री रहते हुए मानवीयता के आधार पर भी कई शानदार फैंसले लिए, इसके लिए पूरे विश्व समुदाय में उनकी काफी तारीफ़ हुई। सुषमा स्वराज विदेश मंत्री रहते हुए खराब स्वास्थ्य के बावजूद भी लगातार काम करती थीं। उनका विदेशमंत्री का कार्यकाल अत्यंत सफल रहा। सुषमा स्वराज ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और न ही मोदी सरकार में कोई मंत्री पद स्वीकार किया।
सुषमा अपने अंतिम समय तक सक्रिय रहीं उन्होंने अपने निधन से 3 घंटे पहले ट्वीट के माध्यम से कश्मीर से धारा 370 हटाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी जिसमे उन्होंने कहा था “प्रधानमंत्री जी- आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।” सुषमा जम्मू कश्मीर से सरकार द्वारा धारा 370 हटाने से अत्यंत प्रसन्न थीं वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद भाजपा की दिवंगत नेत्री सुषमा स्वराज ने उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बन रहे सभी बांधों को निरस्त करने की जोरदार मांग की थी। सोशल मीडिया पर पिछले दिनों वायरल हुए उनके एक वीडियो में लोकसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिए अपने संबोधन में स्वराज ने कहा था कि गंगा मैया को सुरंग में डाले जाने के कारण उत्तराखंड को आपदाएं झेलनी पड़ रही हैं। जितना चाहे पैसा उन पर खर्च हो चुका हो, लोगों के राहत और पुनर्वास पर होने वाले खर्च से कहीं कम होगा। इस वीडियो को पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेत्री ने भी अपने टिवटर हैंडल पर साझा किया था।
स्वराज ने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि यह केवल एक संयोग नहीं है, मैं सदन को बताना चाहती हूं कि 16 जून 2013 को धारी देवी का मंदिर जलमग्न हुआ, उसी दिन केदारनाथ में जलप्रलय आया और सब कुछ तबाह हो गयाथा। 28 मई 2015 को सुषमा स्वराज आखिरी बार देहरादून आईं थीं। उस वक्त उन्होंने जनता को संबोधित भी किया था सौम्यता और सादगी की प्रतिमूर्ति, मृदुभाषी, ओजस्वी वक्ता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पद्म विभूषण सुषमा स्वराज की जयंती पर सादर नमन।” लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )