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न्यूनतम मजदूरी तय: केंद्र सरकार का न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का फैसला 1 अक्टूबर से लागू, करोड़ों दैनिक मजदूर का जीवन यापन होगा बेहतर

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न्यूनतम मजदूरी तय: केंद्र सरकार का न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का फैसला 1 अक्टूबर से लागू, करोड़ों दैनिक मजदूर का जीवन यापन होगा बेहतर

मुख्यधारा डेस्क

किसी भी देश की तरक्की के लिए श्रमिक, मजदूर या लेबर वर्ग का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। कहा जाता है मजदूर खुश तो देश खुशहाल है। किसी भी संस्था, उद्योगों और देश के निर्माण में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों लोगों की बहुत ही अहम भूमिका होती है।

मजदूरों की शक्ति के बिना कोई भी औद्योगिक व अन्य प्रकार का ढांचा खड़ा नहीं रह सकता है। श्रमिक वर्ग हमारे सिस्टम का एक बेहद महत्वपूर्ण अभिन्न अंग हैं, आज उसके बिना किसी भी तरह के कार्य को सम्पन्न करने की उम्मीद करना एकदम बेमानी है। मजदूरी केवल कृषि के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि शहरों में विभिन्न क्षेत्रों जैसे-खनन, माचिस निर्माण की फैक्ट्रियां और ईंट भट्ठे आदि क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली है।

शहरों में छोटे स्तर की इकाइयों जैसे-पटाखे निर्माण की फैक्ट्रियां, टेक्सटाइल उद्योग, चमड़ा उद्योग, चाय की दुकानों, होटलों, ढाबों आदि में तमाम मजदूर कार्य करते हुए दिख जाते हैं। भारत में मजदूरों की आर्थिक स्थिति हमेशा चिंताजनक रही है। लेकिन अब मोदी सरकार ने दैनिक श्रमिकों के “चेहरों पर मुस्कान” ला दी है। लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए केंद्र ने अब देश भर में मजदूरों की न्यूनतम दैनिक मजदूरी तय कर दी है।

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केंद्र सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद देश भर में करोड़ों श्रमिकों का जीवन यापन बेहतर हो सकेगा। भारत में दैनिक मजदूरों के लिए बुधवार और गुरुवार का दिन खुशहाली लेकर आया। पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई फिर अगले दिन केंद्र ने देशभर के मजदूरों को सौगात दे दी।

केंद्र सरकार द्वारा डेली वेज में बढ़ोतरी के चलते बड़े स्तर पर देश के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को फायदा होगा। इसमें भवन निर्माण, लोडिंग और अनलोडिंग, वॉच एंड वार्ड, स्वीपिंग, हाउसकीपिंग, सफाई, खनन और कृषि समेत कई क्षेत्रों के मजदूर शामिल हैं। अगले महीने अक्टूबर की पहली तारीख से निर्माण, खनन और कृषि सहित अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए न्यूनतम दैनिक मजदूरी में बढ़ोतरी से रोजमर्रा के खर्चों की बढ़ती लागत से निपटने में श्रमिकों को राहत मिलेगी।

अकुशल (अनस्किल्ड) श्रमिकों के लिए नया दैनिक न्यूनतम मेहनताना 783 रुपये, अर्ध-कुशल (सेमी-स्किल्ड) श्रमिकों के लिए 868 रुपये और अत्यधिक कुशल (हाइली-स्किल्ड) श्रमिकों के लिए 1,035 रुपये होगा। आगे जानिए क्या है, इसका मकसद और क्या होगा इसका प्रभाव। इस बदलाव के बाद एरिया ‘ए’ में निर्माण, झाड़ू, सफाई, लोडिंग और अनलोडिंग में काम करने वाले अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर 783 रुपये प्रतिदिन (20,358 रुपये प्रतिमाह) हो जाएगी।

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अर्द्धकुशल श्रमिकों के लिए 868 रुपये प्रतिदिन (22,568 रुपये प्रतिमाह) और कुशल, क्लरिकल और बिना शस्त्र वाले चौकीदारों के लिए 954 रुपये प्रतिदिन (24,804 रुपये प्रतिमाह) और उच्च कुशल एवं शस्त्र वाले चौकीदारों के लिए 1,035 रुपये प्रतिदिन (26,910 रुपये प्रतिमाह) होगी। औद्योगिक श्रमिकों के लिए सीपीआई में छह महीने की औसत वृद्धि के आधार पर, मुद्रास्फीति के मुताबिक वेतन में साल में दो बार बदलाव किया जाता है।

श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी की दरों में इजाफा किए जाने के एलान के बाद श्रम मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने श्रमिकों, विशेषकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों को उनके जीवन यापन में मदद देने के मद्देनजर यह वीडीए में संशोधन किया है। श्रमिकों के लिए नई दरें अगले महीने की पहली तारीख 1 अक्टूबर 2024 से प्रभावी होंगी और इन्हें अप्रैल 2024 से लाभ दिया जाएगा।

यहां बता दें कि ये इस साल का दूसरा संशोधन है, इससे पहले अप्रैल महीने में बदलाव किया गया था।

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उल्लेखनीय है कि मिनिमम वेजेज एक्ट रिपोर्ट 2019 में कहा गया है, रोजगार मांगने का उद्देश्य वेतन हासिल करना है ताकि व्यक्ति एक सम्मानित जीवन जी सके। हर श्रमिक को उचित वेतन दिलाना सरकार का कर्तव्य है ताकि भूख और गरीबी न रहे, मानव संसाधनों का विकास हो और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो, जिसके बिना कानून-व्यवस्था को खतरा हो सकता है।

संविधान के अनुसार एक आर्थिक व्यवस्था बनाना राज्य (देश) की जिम्मेदारी है जिसमें हर नागरिक को रोजगार और उचित वेतन’ मिले। श्रम और रोजगार मंत्रालय की 2022-23 की सालाना रिपोर्ट में न्यूनतम वेतन कानून 1948 की जरूरत बताते हुए कहा गया है, कोई भी नियोक्ता किसी समझौते के तहत इससे कम वेतन नहीं दे सकता है। इस कानून के प्रावधान महिला-पुरुष में भेद नहीं करते। भारत में न्यूनतम वेतन तय करने का कानून 1948 में और फॉर्मूला 1957 में बना था। आज भी उसी छह दशक पुराने फॉर्मूले के आधार पर न्यूनतम वेतन तय किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन छह दशकों में लोगों का रहन-सहन समेत पूरी दुनिया बदल गई है। इसलिए वेतन तय करने का फॉर्मूला बदला जाना चाहिए ताकि वह आज की जरूरतों के मुताबिक हो। न्यूनतम मजदूरी वह न्यूनतम राशि है जो एक नियोक्ता को अपने किसी भी कर्मचारी को कानूनी रूप से भुगतान करनी होती है। यह एक तरह से मजदूरी की वह सीमा होती है, जिससे कम किसी भी कर्मचारी को भुगतान नहीं किया जा सकता है।

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भारत में राज्यों की सरकारों की तरफ से इसे समय-समय पर तय किया जाता है। इसका उद्देश्य है कि सभी कर्मचारियों को कम से कम एक निश्चित राशि मिले, चाहे वे किसी भी काम में लगे हों। भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाती है। इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारें विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करती हैं।केंद्रीय क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के भीतर भवन निर्माण, माल लादने और उतारने, चौकीदार या प्रहरी, सफाई, शोधन, घर की देख-भाल करने, खनन तथा कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में लगे श्रमिकों को संशोधित मजदूरी दरों से लाभ होगा।

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