प्रदेश को सौर ऊर्जा (solar energy) से रोशन करने का सपना अधूरा - Mukhyadhara

प्रदेश को सौर ऊर्जा (solar energy) से रोशन करने का सपना अधूरा

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प्रदेश को सौर ऊर्जा (solar energy) से रोशन करने का सपना अधूरा

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

प्रदेश में अपार संभावनाओं और कवायदों के बावजूद सौर ऊर्जा आज तक महंगी बिजली के दर्द की दवा नहीं बन पाई हैं। आज तक की सभी कवायदें इस ख्वाब को धरातल तक नहीं पहुंचा पाई। नतीजतन सस्ती बिजली की हसरत अधूरी है।अब तक की कवायदों के बावजूद इतनी बिजली नहीं मिल पा रही, जिससे बाजार की खरीद से मुक्ति मिल सके। दरअसल, प्रदेश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक ओर जहां यूपीसीएल के माध्यम से सोलर रूफ टॉप योजना चल रही है, जिसमें अपने घर की बिजली खपत के बराबर उत्पादन घर पर किया जा सकता है। 2019 में ये योजना बंद होने के बाद इस साल दोबारा शुरू हुई है।

त्रिवेंद्र सरकार में सौर ऊर्जा उत्पादन को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना शुरू की गई थी। इसमें करीब 900 प्रोजेक्ट के सापेक्ष महज 150 से 200 छोटे सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट ही लग पाए। वहीं, बड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं का भी हाल कमोबेश ऐसा ही है। पांच करोड़ तक की परियोजनाओं ने भी बीते दशक में कुछ खास उत्साह नजर नहीं आया। जो प्रोजेक्ट लगे भी, उनमें या तो समय से ग्रिड से न जुड़ने का मामला सामने आया तो कहीं उत्पादित बिजली का इस्तेमाल न करने का।

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राज्य की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 20 हजार मेगावाट आंकी जा चुकी है लेकिन 23 साल में यह 350 मेगावाट से ऊपर नहीं जा पाई। ऐसे में हाइड्रो, गैस या कोयला से बिजली उत्पादन का विकल्प बनने की बात बेमानी ही नजर आ रही है।सरकार ने पिछले दिनों नई सौर ऊर्जा नीति लागू की है, जिसमें सौर प्रोजेक्ट के लिए काफी सहूलियतें प्रदान की गईं हैं। माना जा रहा है कि आने वाले पांच साल में इसका कुछ असर नजर आएगा।सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विफल होने का एक कारण सरकारी सुस्ती भी है। जिन लोगों ने छोटे सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाए हैं, वे या तो समय से ग्रिड से नहीं जोड़े जाते या फिर उनकी मीटरिंग समय से नहीं होती। इस वजह से लोग हतोत्साहित होते हैं।

राज्य स्थापना के वक्त उत्तराखंड की नदियों से जल विद्युत उत्पादन का सपना दिखाकर नीति नियामकों ने ऊर्जा प्रदेश बनाने का जो सपना दिखाया था, वह आज भी अधूरा है। आज भी दूसरे राज्यों से खरीदी गई महंगी बिजली से उत्तराखंड के घर रोशन हो रहे हैं। बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से उत्तराखंड को अपने हिस्से की बिजली की दरकार है तो बाकी परियोजनाओं में पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने की मुश्किलें। बहरहाल, ऊर्जा प्रदेश आज भी एक सपना ही है। प्रदेश में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा के लिए सरकारों ने बड़े दावे किए हैं लेकिन अभी इसका बिजली उत्पादन दूर की कौड़ी है।

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हालात यह हैं कि मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के लक्ष्य के सापेक्ष महज 30 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट आवंटित हो पाए हैं। यूपीसीएल की सौर ऊर्जा परियोजना से भी ऊर्जा बचत का लक्ष्य काफी पीछे है। टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का टिहरी में केंद्र की 75 और यूपी की 25 फीसदी हिस्सेदारी वाला संयुक्त उपक्रम है। प्रदेश सरकार का तर्क है कि उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 47(3) के अनुसार, जिस राज्य में जो परिसंपत्ति होगी, उस पर उस राज्य का भी हक होगा।

उत्तरप्रदेश से विभाजन की तिथि तक कंपनी में किए गए पूंजीगत निवेश के आधार पर इसे उत्तराखंड को हस्तांतरित होना चाहिए, क्योंकि इसका मुख्यालय उत्तराखंड में है, लेकिन परियोजना से राज्य को एक पाई भी नहीं मिली है। हालाँकि सौर ऊर्जा ने निर्विवाद रूप से कई दूरदराज के समुदायों को सशक्त बनाया है, फिर भी चुनौतियों पर काबू पाना बाकी है। सीमित वित्तीय संसाधन, जागरूकता की कमी और नियामक बाधाएँ कुछ ऐसी बाधाएँ हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और व्यवसायों को सहयोग करने की आवश्यकता है। दूरदराज के समुदायों पर सौर ऊर्जा का प्रभाव पर्याप्त है, जो प्रगति और विकास का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

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सौर ऊर्जा को अपनाने से, इन भूले हुए स्थानों को अब अंधेरे में नहीं छोड़ा जाता है, बल्कि, एक उज्जवल और टिकाऊ भविष्य बनाने के लिए सूर्य की ऊर्जा से सशक्त बनाया जाता है। सौर समाधान दूरदराज के क्षेत्रों में ऊर्जा तक पहुंच और उपयोग के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं। वे व्यक्तियों को सशक्त बनाते हैं, जीवन को रोशन करते हैं और महत्वपूर्ण वैश्विक प्रभाव डालते हैं। सूर्य की शक्ति का उपयोग करके, ये समाधान पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के लिए टिकाऊ, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प प्रदान करते हैं। सौर समाधानों को अपनाने में वृद्धि के साथ, हम उन क्षेत्रों में रोशनी और आशा ला सकते हैं जो लंबे समय से अंधेरे में बचे हुए हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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