उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में पिछले तीन महीने से कार्मिकों को नहीं मिला वेतन (salary), आंदोलन की सुगबुगाहट
देहरादून/मुख्यधारा
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं, अराजकता और मनमानी का खामियाजा कर्मचारियों और शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन माह से कार्मिकों को वेतन (salary) का भुगतान नहीं किया है। जिसके चलते कार्मिकों के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यह स्थिति तब है, जब आयुष शिक्षा विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कार्मिकों को गत वित्तीय वर्ष के मार्च माह से अप्रैल माह 2024 का वेतन भी नहीं मिला था। अब मई का महीना भी बीत गया है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन बेपरवाह है।इस बीच प्लान मद में तो भुगतान होते रहे, लेकिन वेतन भुगतान की चिन्ता नहीं रही।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में स्कूल-कालेजों में प्रवेश सत्र चल रहा है और तीन माह से वेतन नहीं मिलने से कर्मचारियों को बच्चों के प्रवेश और फीस जमा करने को भी धनराशि नहीं है। उधार लेने की सीमाएं भी पार हो चुकी हैं। इसलिए अब कार्मिकों का धैर्य भी जवाब देने लगा है और बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट भी तेज होने लगी है।
आज ही राज्य विश्वविद्यालयों के संयुक्त कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी भी विश्वविद्यालय प्रशासन को घेरने के लिए दून पहुंच चुके हैं। यह स्थिति तब है, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव दोनों ही उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के शिक्षक संवर्ग से हैं।
विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं को देखते हुए कुलसचिव पद पर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की तैनाती की गई, लेकिन उनमें से कुछ ने अनियमितताओं को देखते हुए ज्वाइनिंग करने में ही रुचि नहीं दिखाई। पूर्व में पीसीएस अधिकारी रामजी शर्मा ने कुछ माह प्रशासनिक मोर्चे पर अच्छा काम किया, लेकिन उन्हें भी टिकने नहीं दिया गया। शर्मा सभी संवर्ग के कार्मिकों के हितों का ध्यान रखते हुए काम कर रहे थे। इसके विपरीत विश्वविद्यालय के शिक्षक संवर्ग के कुलसचिव अपने संवर्ग का तो पूरा ध्यान रखते हैं, लेकिन अन्य संवर्गों के सेवा संबंधी मामलों में कम रुचि लेते हैं। जिससे प्रायः असंतोष की स्थिति बनी रहती है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय में कैरियर एडवांसवेंट स्कीम लागू नहीं होने के बावजूद एक दर्जन से अधिक शिक्षकों को इस योजना के तहत लाखों रुपए का अनियमित भुगतान कर दिया गया। महालेखा परीक्षक ने भी इसे अनियमित भुगतान मानते हुए संबंधित शिक्षकों से वसूली के लिए कहा। जिस पर शासन ने भी विश्वविद्यालय प्रशासन को वसूली के कई बार आदेश दिए, लेकिन वसूली नहीं की गई। जिन लोगों से वसूली होनी है, उनमें कुछ विश्वविद्यालय के उच्च प्रशासनिक पदों पर रह चुके हैं। शायद इसलिए उस पर अमल नहीं हो पाया। आज ऐसे ही कारण वेतन भुगतान में अड़ंगा बन गए हैं। दूसरी ओर उत्तराखंड विश्वविद्यालय कर्मचारी महासंघ ने शासन से राज्य विश्वविद्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों की समस्याओं के निदान की मांग की है।
संगठन के अध्यक्ष भूपाल सिंह करायत के नेतृत्व में संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने सचिव उच्च शिक्षा शैलेश बगौली, अपर सचिव आशीष श्रीवास्तव से मुलाकात की। संगठन ने संघ के मांग पत्र एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के लंबित प्रकरणों पर चर्चा की गई। संगठन ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को तीन माह से वेतन आहरण न होने के संबंध में भी संबंधित वा भाग में वार्ता की गई। भरसार विश्वविद्यालय तथा पंतनगर विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला सहायकों की वेतन विसंगति के प्रकरण पर संगठन की सकारात्मक वार्ता हुई।
इसके अतिरिक्त महासंघ ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की समस्याओं के निस्तारण हेतु कुलसचिव से वार्ता की।
प्रतिनिधिमंडल में महासंघ के अध्यक्ष भूपाल सिंह करायत, महामंत्री प्रशांत मेहता, संरक्षक कुलदीप सिंह, लक्ष्मण सिंह रौतेला, प्रांतीय प्रवक्ता चंद्रमोहन पैन्यूली शामिल हुए।