पर्यावरणीय परिवर्तन (environmental change) से खतरे में जलस्रोत बदले हालात? - Mukhyadhara

पर्यावरणीय परिवर्तन (environmental change) से खतरे में जलस्रोत बदले हालात?

admin
d 6

पर्यावरणीय परिवर्तन (environmental change) से खतरे में जलस्रोत बदले हालात?

harish

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र प्राकृतिक जलस्रोतों से परिपूर्ण हैं, मगर वर्तमान में इनकी जगह घर-घर में लगे नल, हैंडपंपों ने ले ली है।जिस कारण लोगों ने प्राकृतिक जलस्रोतों की ओर रु ख करना कम कर दिया है। इससे यह प्राकृतिक स्रोत लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। शासन-प्रशासन स्तर पर इन प्राकृतिक जलस्रोतों को बचाने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। कवि रहीम ने कहा है, रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। रहीम कहते हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है। इसे बनाए रखो। यदि पानी समाप्त हो गया तो न तो मोती का कोई महत्त्व है, न मनुष्य का और न आटे का। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है।

यह भी पढ़ें : Loksabha Chunav : उत्तराखंड लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने स्टार प्रचारकों की जारी की लिस्ट, देवभूमि में इन नेताओं का रहेगा प्रचार का जिम्मा

पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है और जल के बिना रोटी नहीं बन सकती, इसलिए आटा बेकार है लेकिन गर्मी ने अभी ठीक से दस्तक भी नहीं दी है कि इस साल कई शहरों में जल संकट मंडराने लगा है। होली के रंगों से नहाए बिना ही, फागुन में रंगों की फुहारों से सराबोर हुए बिना ही सूखे के हालात का सामना पड़ गया। जल संकट की जो स्थिति मई-जून के महीनों में होती थी, वह मार्च में ही दिखने लगी है और अभी से ही कई शहरों में लोग पानी की किल्लत से जूझने लगे हैं।भारत का आईटी हब कहा जाना वाला बंगलूरू शहर इन दिनों हर रोज बीस करोड़ लीटर पानी की कमी झेल रहा है। बंगलूरू के अलावा देश में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, भोपाल, कोलकाता, जयपुर, इंदौर जैसे अनेक शहर आज जल संकट की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। तेलंगाना उच्च न्यायालय ने चेतावनी दी है कि अगर हैदराबाद ने जल्दी ही जल संरक्षण के लिए उचित कदम नहीं उठाए, तो पानी के मामले में उसका भी हाल सिलिकॉन वैली’ बंगलूरू जैसा ही होगा।

यह भी पढ़ें : सचिवालय मीडिया सेंटर में पत्रकार होली मिलन समारोह (Journalist Holi Meet Ceremony) आयोजित

चेन्नई में वह समय अब भी सबको याद होगा, जब नल सूख गए थे, और पानी की कमी के चलते स्कूलों को बंद करना पड़ा था। जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात करनी पड़ी थी। हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में भी यह बात स्वीकार की गई है कि भारत के कई शहरों में जल संकट गहराता जा रहा है, और आने वाले वक्त में उसके और विकराल रूप लेने के आसार हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जहां वर्ष2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा, वहीं 2020 तक देश में 10 करोड़ से भी अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना करने के लिए मजबूर थे। नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स) रिपोर्ट के अनुसार, देश के 21 प्रमुख शहरों में लगभग 10 करोड़ लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। वास्तविकता यह भी है कि दुनिया की लगभग 17 फीसदी आबादी वाले देश भारत के पास दुनिया के ताजा जल संसाधनों का मात्र चार फीसदी ही है।

यह भी पढ़ें : पानी के लिए तरस रहा गंगा-यमुना का मायका उत्तराखंड

भारत में लगभग 70 फीसदी सतही और ताजा जल के संसाधन सीवेज वेस्ट और कारखानों के अपशिष्ट से प्रदूषित हैं। वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में से 120वें स्थान पर है। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (32.8 करोड़ हेक्टेयर) में से 69 फीसदी (22.8 करोड़ हेक्टेयर) क्षेत्र सूखाग्रस्त है। ये आंकड़े हमारे देश में जल संकट की गंभीरता को साफ-साफ बयान करते हैं। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहे बदलावों के कारण यदि पानी की मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ता है, तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।दरअसल, जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की
पदचाप गहराती जा रही है, वैसे-वैसे वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ता जा रहा है। इसका असर मौसम के बदलते मिजाज के रूप में नजर आ रहा है। इसके चलते कहीं बारिश कम हो रही है, तो कहीं सर्दियों का मौसम अपेक्षाकृत गर्म हो रहा है।

यह भी पढ़ें : द्वारीखाल प्रमुख महेन्द्र राणा ने चुनाव प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यकर्ताओं में भरा जोश, अनिल बलूनी को विजयी बनाने का दिलाया संकल्प

वर्ष 1975 से वर्ष 2000 के बीच जिस मात्रा और रफ्तार से हिमालय ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है, साल 2000 के बाद से वह मात्रा और रफ्तार दोगुनी हो गई है। वहीं दूसरी तरफ मौसम के इस बदलाव के कारण पहाड़ सर्दियों में बर्फ की चादर में लिपटने से वंचित हो रहे हैं।वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि वर्ष 2100 आने तक हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल कर खत्म हो जाएंगे। इससे हिमालय के नीचे वाले भू- भाग में रहने वाले आठ देशों के करीब 200 करोड़ लोगों को पानी की किल्लत और बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ सकता है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान, चीन, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं। इन पर्वत शृंखलाओं के ग्लेशियर पिघलने से दिल्ली, ढाका, कराची, कोलकाता और लाहौर जैसे पांच महानगरों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना होगा।

यह भी पढ़ें :हरित क्रांति के बाद पहाड़ का लाल चावल (red rice) विलुप्ति की कगार पर

इन नगरों की आबादी 9 करोड़ 40 लाख से ज्यादा है और इसी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी 26,432 मेगावॉट क्षमता वाली पनबिजली परियोजना है। जाहिर है, जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की समस्या से निपटने के लिए हमें जल संरक्षण के उपायों पर गंभीरता से विचार करना होगा और पर्यावरण सुरक्षा के उपाय करने होंगे। प्रकृति, पानी और परंपरा हमेशा साथ रहे हैं। मनुष्य की इसे नियंत्रित करने की स्वार्थ लोलुपता से इन पर ग्रहण लग गया है। पानी के परंपरागत स्रोतों को निजी स्वार्थ में ध्वस्त करना मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। पानी की परंपरागत स्रोतों में तालाब का महत्वपूर्ण स्थान है। जिसके विज्ञान व व्यवस्था को समझने में भारी चूक हुई है। पहले घर, गांवों में पानी की व्यवस्था तालाबों से ही पनपती थी।

मैदानी इलाकों में ये तालाब ही थे जो सबके लिए पानी को जुटा कर रखते थे। लेकिन ग्रामीणों को पानी के संकट से मुक्त रखने वाले तालाबों का अस्तित्व तेजी से मिटता जा रहा है। तालाबों के खात्मे के पीछे समाज और सरकार समान रूप से जिम्मेदार है। तालाब कही कब्जे से तो कहीं गंदगी से सूख रहे हैं। तकनीकी ज्ञान का अभाव भी तालाबों के दुर्दशा का बड़ा कारण है। सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि तालाबों के रख रखाव का दायित्व किसी एक महकमे के पास नहीं है। जिससे इन पर कब्जा करना आसान हो गया है।

यह भी पढ़ें :चुनाव ड्यटी और आवश्यक सेवाओं से जुड़े कार्मिकों को मतदान के लिए बनेंगे सुविधा केन्द्र

वहीं, बीबीसी की न्यूज़ के अनुसार दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन शहर जल्द ही आधुनिक दुनिया का पहला ऐसा बड़ा शहर बनने जा रहा है, जहाँ पीने के पानी की भारी कमी होने वाली है। आने वाले कुछ समय में यहाँ रहने वाले लोगों को पीने का पानी नहीं मिलेगा। यहाँ तक कि अधिकारियों ने लोगों से कहा है कि वे टॉयलेट में फ्लश करने के लिए टंकी का इस्तेमाल न करें और कम से कम पानी बहाएँ।यह स्थिति कितनी भयावह है जरा सोचिए।विश्व के दूसरे देशों में जल संरक्षण को लेकर काफी काम हुआ है। अब भारत के लोगों को भी इसके लिए जागरुक होना होगा। अन्यथा यहाँ कब अकाल की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँ, कहा नहीं जा सकता। इसके लिए पहले खुद संकल्पित हों, ताकि दूसरों को भी इसका महत्व समझा पाएँ।  जिसके विज्ञान व व्यवस्था को समझने में भारी चूक हुई है।

पहले घर, गांवों में पानी की व्यवस्था तालाबों से ही पनपती थी। मैदानी इलाकों में ये तालाब ही थे जो सबके लिए पानी को जुटा कर रखते थे। लेकिन ग्रामीणों को पानी के संकट से मुक्त रखने वाले तालाबों का अस्तित्व तेजी से मिटता जा रहा है। तालाबों के खात्मे के पीछे समाज और सरकार समान रूप से जिम्मेदार है। तालाब कही कब्जे से तो कहीं गंदगी से सूख रहे हैं। तकनीकी ज्ञान का अभाव भी तालाबों के दुर्दशा का बड़ा कारण है। सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि तालाबों के रख रखाव का दायित्व किसी एक महकमे के पास नहीं है। जिससे इन पर कब्जा करना आसान हो गया है। पर्वतीय जिलों में नौले-धारे गांव की शान हुआ करते थे, लेकिन अब कई गांवों में नौले (पानी के स्रोत) सूख चुके हैं।

यह भी पढ़ें :होली का उल्लास : कान्हा नगरी (Kanha city) में होली की मची धूम, देश विदेश से मथुरा पहुंचे लाखों भक्त रंग-गुलाल में सराबोर

दिलचस्प बात यह है कि जहां स्थानीय ग्रामीणों की शिकायत है कि तालाब तेजी से गायब हो रहे हैं, वहीं सरकारी आंकड़े कुछ और ही दिखाते हैं।2013-14 में आयोजित पांचवीं लघु सिंचाई जनगणना के निष्कर्षों और 2017 में प्रकाशित इसकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 241,715 तालाबों का उपयोग लघु सिंचाई गतिविधियों के लिए किया जाता है। एक दशक पहले, 2006 में प्रकाशित चौथी जनगणना रिपोर्ट ने देश में कुल 103,878 तालाबों की सूचना दी थी। राज्यवार आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात ने इन तालाबों की संख्या में सबसे तेज गिरावट दर्ज की है – 2006-07 में 326 से 2013-14 में 13 तक। इसके बाद पश्चिम बंगाल है एक जमाने में पहाड़ के गांवों में परंपरागत धारे व नौलों का खास प्रचलन था। ग्रामीण पानी के लिए इन्हीं पर निर्भर रहते थे, लेकिन आज पानी सूख जाने से अनेक धारे व नौले खंडहर में तब्दील हो गए हैं।कई देखरेख के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। कहीं-कहीं ऐसे नौले भी हैं जो गांवों में पेयजल योजनाएं बन जाने से प्रचलन में नहीं हैं। सूखी पानी की धार, नौले हुए खंडहर है।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

Next Post

अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक भारतीय मोटे अनाज (Indian coarse grains) को खिलाने की तैयारी

अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक भारतीय मोटे अनाज (Indian coarse grains) को खिलाने की तैयारी डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला भारत अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तो जापान से लेकर जर्मनी तक मोटे अनाज के स्वाद को लोकप्रिय बनाने जा रहा है। […]
ana

यह भी पढ़े