व्यंग्य : योग से कंट्रोल हुई धड़कनों को पंचायत चुनाव की आचार संहिता ने किया बेकाबू !!!
मामचन्द शाह
अभी-अभी विश्व योग दिवस पर अनुलोम-विलोम करके घर पहुंचे ही थे कि तभी उत्तराखंड निर्वाचन आयोग का अलार्म कानों में गूंज गया। मतलब पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गई। इधर बरसात की आहट और आसमान की गड़गड़ाहट भी शुरू हो गई है।
घाघड़ योगियों की तो बात ही अलग ठहरी बल, किंतु पंचायत चुनाव में ताल ठोकने वाले असंख्य नव योगी और योगिनी भी आज तड़के से ही योग दिवस पर गहरी-गहरी सांसें खींचते हुए देखे गए। शायद खड़ी चढ़ाई वाले चुनावी क्षेत्रों में यह अभ्यास उनके लिए रामबाण की तरह होने वाला है। उन्होंने भी योग करते हुए भी अवश्य ये महसूस किया होगा।
अभी नव योगी-योगिनी घर पहुंचकर सुस्ताए भी नहीं थे कि आचार संहिता लागू हो गई। 10 एवं 15 जुलाई को दो चरणों में मतदान होगा, जबकि 19 जुलाई को चुनाव परिणाम आएगा। अचानक आई अधिसूचना ने योग से हृदय गति पर जो फील गुड महसूस हो रहा था वह अचानक उबाल मारने लगा। धड़कने तीव्र गति से धड़कने लगीं और लिस्ट में अपने-अपने ब्लॉक के मतदान की तारीख की खोजबीन होती रही।
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यहां तक तो ठीक था, घड़कनें ऊपरी सीमा पर तब पहुंची, जब आखिर में उनकी नजर 25 से 28 जून तक होने वाले नामांकन तिथि पर पड़ी। सभी की जुबां पर एक ही शब्द था, कि एक हफ्ते में कैसे होगा ये सब !!
हालांकि गत दिवस हाईकोर्ट में आरक्षण आपत्तियों पर सुनवाई के बाद अगली सुनवाई 24 जून को होनी है, यह समाचार मिलने के बाद राज्य सरकार पर सोशल मीडिया मंच परं खूब चुटकियां ली जा रही थीं कि यह सब चुनाव आगे खिसकान का बहाना है, किंतु सोशल मीडिया पर की गई ये चुटकियां चुटकी भर भी नहीं टिक सकी।
बहरहाल, पंचायत चुनावी समर में कूदने वाले योग करके लौटे योगी-योगिनी अब इस असमंजस में हैं कि वे अपने सोशल मीडिया पर योग की फोटो शेयर करें या फिर अपने लिए वोट देने की अपील !!
पंचायत चुनाव लागू होते ही उत्तराखंड में सैकड़ों कर्मठ, जुझारू, युवा, मेहनती, ईमानदार व समाजसेवी उत्पन्न हो गए हैं। बल्कि यूं कहें कि आज के बाद तो वे योगी व योगिनी भी हो गए हैं। व्यंग्यकार का मानना है कि जनता को अपने-अपने क्षेत्रों में इन्हें अवश्य जिताना चाहिए, ताकि उनका जुझारूपन अगले पांच साल में जनता व क्षेत्र का काम आ सके। हालांकि जनता चाहे तो उनके समक्ष वोट देने से पूर्व यह शर्त भी रख सकती है कि वे चुनाव जीतने के बाद देरादूण, ऋषिकेश, कोटद्वार, हल्द्वानी व रामनगर वाले न बनें। हालांकि जनता से वादा करने के बाद भी इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती कि वे अपने वादे पर खरा ही उतरे !
इस चुनाव में प्रत्याशियों को न सिर्फ अपने पक्ष में माहौल बनाने की चुनौती है, बल्कि उफनते गाड़-गदेरों को पार कर खड़ी चढ़ाई और टूटी हुई सड़कों व रास्तों को पैदल नापने का भी बड़ा चैलेंज होगा।
बहरहाल, योग से कंट्रोल हुई धड़कनों को पंचायत चुनाव की आचार संहिता ने बेकाबू तो कर ही दिया है। ऊपर से बरसाती मौसम शुरू हो चुका है। हालाकि अब यह तो 19 जुलाई 2025 के दिन ही पता चल सकेगा कि किन भाग्यशाली लोगों की धड़कनें फील गुड का एहसास कराती हैं। फिलहाल चैतू अभी अपना थैला और छतरी लेकर अपने चमचों के साथ चुनावी मंडाण में कूद गया है!!
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