नीरज उत्तराखंडी/उत्तरकाशी
उतराखण्ड राज्य के सर्वाधिक ऊन उत्पादन जिलों में शुमार होने के बावजूद उत्तरकाशी में यह करोबार दम तोड़ता नजर आ रहा है।दिलचस्प तो यह है कि ऊन उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन ऊन से सामान तैयार करने वाले परिवार सिमट रहे हैं। सुविधा के अभाव में महंगी लागत पड़ने के कारण ये उत्पादन बाजार की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं। यही वजह है कि ऊनी करोबार से जुड़े लोग इस संभावनाशील व्यवसाय से मुंह मोड़ रहे हैं। बाजार में ऊन से तैयार उत्पाद अब भी अपनी पैठ नहीं बना पा रहे हैं।
जिले के मोरी, डुण्डा, हर्षिल क्षेत्र में भेड़ पालन व्यवसाय के चलते ऊन उत्पादन कभी आजीविका के प्रमुख साधनों में शामिल था, लेकिन समय के साथ-साथ आधुनिक बाजार के मुताबिक न ढल पाने के कारण यह व्यवसाय सिमटता चला गया। हालांकि सरकारी और गैर सरकारी कोशिशों के चलते कुछ लोग इस व्यवसाय की ओर लौटे, लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण निराश होना पड़ा।
मोरी में ऊन कार्डिग प्लांट न होने के कारण ऊन उत्पादन करने वाले भेड़ पालकों को उन की धुलाई व पिनाई करने व पुरोला या उत्तरकाशी के चक्कर काटने पड़ते है। मोरी में प्रस्तावित ऊन कार्डिग प्लांट आज तक अधर में लटका है।
दूसरी ओर पशुपालकों की चारे की समस्या के कारण दूरस्थ इलाकों में रहना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण तैयार होने वाली ऊन की लागत काफी महंगी हो जाती है। इसके बाद कारीगरों का मेहनताना व आधुनिक मशीनों की कमी ऊन से तैयार उत्पादों की लागत को और अधिक बढ़ा देते हैं। जिसके चलते बाजार की प्रतिस्पर्धा में ये उत्पाद टिक नहीं पा रहे हैं, जबकि जनपद में गुणवत्ता के लिहाज से सर्वाधिक बेहतर ऊन का उत्पादन होता है।