गोपेश्वर/मुख्यधारा
गोपेश्वर रेंज केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के लगभग चार हजार आरक्षित वन क्षेत्र में से लगभग 50 प्रतिशत आग चीड़ बाहुल्य क्षेत्र है। यह क्षेत्र ढंगारी/चट्टानी क्षेत्र है। जिसमें प्राकृतिक रूप से चीड़ ही अधिक उगता है।
गत वर्षों में चीड़ के ज्वलनशील होने के कारण स्थानीय तथाकथित प्रबुद्ध लोगों में चीड़ के प्रति नकारात्मक भावना बलवती हो गई है, जबकि ग्रामीणों की हक-हकूक, छोटी-छोटी जरूरतों के लिए आज भी चीड़ का वृक्ष एक मुख्य साधन है। चीड़ की जगह पर चौड़ी पत्ती प्रजाति के वृक्ष लगाए जाने की वकालत जोर-शोर से की जा रही है, किंतु रेंज के अधिकतर ढंगारी क्षेत्रों में चीड़ के अलावा अन्य चौड़ी पत्ती प्रजाति के वृक्षों का उगना और स्थापित होना दुष्कर है। जहां तक अग्नि दुर्घटना का सवाल है, रेंज के अधिकांश क्षेत्र में आग लापरवाही से नहीं, बल्कि जानबूझकर ग्रामीणों द्वारा ही विभिन्न कारणों से लगाई जाती है। यदि शीतकाल में पर्याप्त वर्षा, बर्फबारी न होने से मृदा में प्राप्त नमी न हो तो आग सिर्फ चीड़ वन में ही नहीं, बल्कि चौड़ी पत्ती प्रजाति के वनों में भी लगाई जा रही है, जिससे जिसे बुझाना चीड़ वनों की अपेक्षा अधिक कठिन कार्य है।
प्रति वर्ष रेंज में वनाग्नि सुरक्षा सप्ताह के दौरान विशेष रूप से अग्नि सुरक्षा गोष्ठियां आयोजित कर ग्रामीणों को वनाग्नि के दुष्परिणाम आग न लगाने की अपील की जाती है, किंतु फिर भी ग्रामीणों द्वारा आग लगाई जाती रही है।
गोपेश्वर रेंज की रेंजर आरती मैठाणी बताती हैं कि इस वर्ष केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी अमित कंवर के मार्ग निर्देशन में एक अभिनव प्रयोग किया गया। ग्रामीणों को सिर्फ भाषण देने की बजाय कुछ नया कार्य सिखाया गया। गोपेश्वर रेंज के चीड़ अधिकांश क्षेत्र की संवदेनशील वन पंचायतों की महिलाओं को सूखी चीड़ की पत्तियों से गृह उपयोगी सजावटी क्राफ्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण हेतु अल्मोड़ा से विशेषज्ञ तथा राष्ट्रीय स्तर के उभरती कलाकार के पुरस्कार से सम्मानित मंजू रौतेला साह को मेघा साह गुप्ता को आमंत्रित किया गया।
रेंजर आरती मैठाणी ने बताया कि तीन दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षकों द्वारा महिलाओं को पैन स्टैंड, विभिन्न प्रकार टोकरियां, ट्रे, पायदान, फूलदान, आभूषण इत्यादि गृहोपयोगी सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। सजावटी क्राफ्ट को सिंथेटिक धागे तथा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पिरुल की गांठ से ही तैयार करना भी सिखाया गया। इन सभी सजावटी क्राफ्ट की कीमत बाजार में 150 से 200 से एक से डेढ़ हजार तक है।
इन क्राफ्ट की सबसे अच्छी बात यह है कि इन्हें तैयार करने में प्रयुक्त कच्चे माल को कहीं से खरीदना नहीं पड़ता, बल्कि यह प्रचुरता से गांवों के आस-पास अपने आप गिरा हुआ मिल जाता है। चीड़ की गिरी हुई सूखी पत्तियों को रातभर पानी में भिगोकर रखने से उनमें पर्याप्त लचीलापन सा आ जाता है। तथा रेगिन की उपस्थिति से चीड़ की पत्तियों से बने उत्पाद अधिक टिकाऊ भी होते हैं।
बछेर, किलौण्डी, टेडाखनसाल, कठूड़, मासों, सैकोट आदि गांवों की २५ महिलाओं को प्रथम चरण में प्रशिक्षित किया गया। इनके द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की आगामी यात्राकाल में केदारनाथ वन्य जीव अभयारण्य में आने वाले पर्यटकों के माध्यम से विपणन करवाए जाने की योजना है। यानी इसे गोपेश्वर स्थिति सेविनियर शॉप से खरीद सकते हैं।
उक्त गांवों की महिलाओं गोदाम्बरी देवी, देवेश्वरी देवी आदि का कहना है कि इस कार्य को वे बिना किसी लागत के घर बैठी कर रही हैं। अपने घर की देखभाल तथा अन्य दैनिक कार्यों के साथ इस स्वरोजगार से उनकी जीविका में वृद्धि होने से सभी महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है तथा वे आगामी वर्षों में और अधिक उत्साह से इस कार्य को करने की दिशा में प्रयासरत हैं।
कुल मिलाकर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत गोपेश्वर रेंज में ग्रामीण महिलाओं की आजीविका सुधारने के उद्देश्य से जो अभिनव प्रयोग किया गया, यह निश्चित रूप से आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा।
जाहिर है कि इस पहल का असर अन्य वन प्रभागों में जाएगा और वहां भी इस तरह के प्रयोग किए जाने से वन विभाग और ग्रामीणों की सामंजस्य में जहां और मजबूती आएगी, वहीं ग्रामीणों की आर्थिकी में भी इजाफा होगा। इस तरह के प्रयास से ग्रामीण भी वनों की सुरक्षा को लेकर और सजग और मजबूती से प्रयास करने को प्रेरित होंगे।
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