हरिद्वार/मुख्यधारा
हमेशा की तरह शारदीय नवरात्र के अष्टमी व नवमी के पावन अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड में कन्याओं को ढूंढ-ढूंढकर घरों में पूजा-अर्चना के लिए बुलाया गया और उन्हें प्रसाद व दक्षिणा देकर अपने परिजनों की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए देखा गया।
इस सबके बीच कुंभनगरी हरिद्वार से एक हृदय द्रवित करने वाला वाकया सामने आया, जहां कूड़े के ढेर पर एक नवाजात लक्ष्मी स्वरूपा कन्या को एक मां ने उसके हाल पर फेंक दिया। वह तो भला हो पुलिसकर्मियों का, जो वक्त रहते मौके पर पहुंच गए। पुलिसकर्मी नन्हीं बच्ची को थाने ले गए और इसी के साथ मातारानी का उस बच्ची को जीवन जीने का आशीर्वाद भी मिल गया।
नवरात्र के पावन अवसर पर जहां देवभूमि उत्तराखंड के विभिन्न शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं ने पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ मातारानी की पूजा-अर्चना की। यही नहीं निःसन्तान दंपत्तियों ने इस अवसर पर मातारानी से संतान प्राप्ति की कामना भी की, वहीं कुंभनगरी हरिद्वार में एक निर्दयी माता ने अपनी लक्ष्मीरूपी नवजात कन्या को कूड़े के ढेर में फेंक दिया। यह घटना किसी का हृदय झकझोरने के लिए पर्याप्त है।
बताते चलें कि नवरात्रि के महापर्व पर जहां पूरा देश मां को अपने द्वार बुलाने हेतु पूजा अर्चना में तल्लीन था, वहीं हरिद्वार के थाना कलियर क्षेत्रान्तर्गत गश्त कर रहे चेतक-31 के पुलिसकर्मी को किसी ने सूचना दी कि कलियर में दोनों नहरों के बीच कूड़े के पास कोई नवजात बच्ची रो रही है… प्लीज उसको बचा लीजिए। इस पर बिना देरी किए चेतक के कर्मचारी रविंद्र बालियान तुरंत मौके पर पहुंचे। इसी बीच एक अन्य साथी होमगार्ड अम्बरीष कुमार ने एसओ धर्मेंद्र राठी को इसी को लेकर फोन किया।
मौके की नजाकत समझते हुए धर्मेंद्र राठी द्वारा नाइट ऑफिसर एसआई शिवानी नेगी को मौके पर भेजा गया, जिन्होंने रो रही नवजात को रात के अंधेरे में सावधानीपूर्वक बीच कूड़े के ढेर से उठाकर चेक किया। स्नेहपूर्ण तरीके से बच्ची को चुप कराया और आजकल रात में होने लगी ठंड से न सिर्फ पूरी तरह से बच्ची को सुरक्षित किया, बल्कि संयुक्त चिकित्सालय रुड़की जाकर तुरंत ही पूरा चेकअप भी करवाया, जहां अस्पताल स्टाफ द्वारा बच्ची को एक या दो दिन का होना बताया।
इस बीच एसओ धर्मेंद्र राठी ने रात में ही प्रयास कर सीडब्ल्यूसी सदस्य गोपाल अग्रवाल के समक्ष नवजात को पेश किया, जहां से शिशु अनाथालय ट्रस्ट ऑफ इंडिया श्री राम आश्रम श्यामपुर हरिद्वार का आदेश होने पर वहां मौजूद वार्डन सीमा को सौंप दिया गया।
कुल मिलाकर कहते हैं कि जिन पर मातारानी का आशीर्वाद होता है, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। इसी प्रकार उस नन्हीं कन्या पर नवरात्र के पावन अवसर पर मां दुर्गा का आशीर्वाद ही था कि उसको एक बार फिर से जीवन जीने का अवसर मिल सका।
सवाल यह है कि एक ओर तो समाज में नवरात्र के अष्टमी व नवमी के दिन अड़ोस-पड़ोस से मनोकामना पूर्ण करने हेतु कन्याओं को ढूंढ-ढूंढकर बुलाकर उन्हें जिमाया जाता है और प्रसाद व दक्षिणा देकर कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद मांगते हुए उन्हें विदा किया जाता है तो वहीं इसी समाज का एक स्याह चेहरा यह भी है कि मां की ममता इतनी कठोर हो गई कि दुधमुंही बच्ची को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जाता है। यह पहला अवसर नहीं है, जब किसी दुधमुंही बच्ची को कूड़े के ढेर में फेंका गया हो। इससे पूर्व भी प्रदेभर के कई जगहों पर इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं।
सवाल यह भी है कि जब लक्ष्मीस्वरूपा नवजात को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया हो तो मातारानी की पूजा-अर्चना करने के बावजूद मां कैसे प्रसन्न हो सकती है! इतिहास गवाह है कि जब-जब मां का अपमान हुआ, मां ने काली रूप धारण किया और फिर मां के क्रोधरूपी तांडव से कोई नहीं बच सका।
बहरहाल, शारदीय नवरात्र के अवसर पर मां दुर्गे से यही आशीष मांगा जा सकता है कि देवभूमि जैसी पावन धरा के जनमानस के हृदय में मां के प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न करे, जिससे इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो और सभी का कल्याण हो सके।
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