- रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट और धाद संगठन द्वारा आयोजित एक राज्य स्तरीय संगोष्ठी
देहरादून/मुख्यधारा
बालिका शिक्षा के संदर्भ में महिला नेतृत्व के अनुत्तरित प्रश्नों पर चर्चा करने के लिए रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट और धाद संगठन द्वारा एक राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन रविवार 5/12/21 को होटल जेएसआर कॉन्टिनेंटल, देहरादून में किया गया।
मुख्य फोकस महिला रोल मॉडल की भूमिका पर चर्चा करना था और किस तरह महिला नेतृत्व ने लड़कियों को बड़ा सोचने के लिए प्रेरित किया- उन्हें शिक्षामें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया, अपने लिए करियर की आकांक्षाएं निर्धारित कीं, और कुल मिलाकर, नेता बनने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
बालिका शिक्षा कार्यक्रम की वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक निनी मेहरोत्रा ने व्यक्ति को सक्रिय करने वाली एजेंसी में जीवन कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बात की। उन्होंने जेंडर ट्रांसफॉर्मेटिव लाइफ स्किल्स पर भी जोर दिया जो लड़कियों को आज की जेंडर विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को तैयार करने में मदद करती हैं।
धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानि ने धाद की यात्रा का संस्मरण करते हुए अपनी समृतिया सांझा की ।
उन्होंने कहा कि ये दुनियां और ये प्रकृति आधी महिलाओं की भी है। इसपर उनका भी हक़ है।
उन्होंने कहा कि अगर हम सुंदर दुनिया की कल्पना करते हैं तो वो दुनियां केवल स्त्रियाँ ही बना सकती है। हमे जरूरत हैं बालिकाओं की शिक्षा पर ध्यान देने की और एक बेहतर समाज की रचना करने की। नवानी ने कहा समाज ने महिलाओं को हमेशा से परिवार व दुसरो का ध्यान रखना ही सिखाया है पर अब समय है कि महिलाओं को अपने बारे मे भी सोचना चाहिए।
रूम टू रीड की स्टेट मैनेजर पुष्पलता रावत ने उत्तराखंड में संगठन के सफर का जिक्र किया। बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमने प्राथमिक विद्यालय तक कम उम्र में साक्षरता की आवश्यकता को समझते हुए मूलभूत साक्षरता के साथ शुरुआत की और बालिका शिक्षा के महत्व को महसूस करते हुए, हमने अपने बालिका शिक्षा कार्यक्रम के साथ शुरुआत की और हाल ही में इसमें जीवन कौशल को भी जोड़ा। उन्होंने बच्चों के साहित्य की भूमिका के बारे में भी बात करते हुए राज्य में विश्वविद्यालयों के साथ हो रही चर्चा के बारे में भी बात की|
डॉ. सविता मोहन, पूर्व निदेशक भाषा संस्था ने मुद्दों को सामने लाने और प्रतिबिंब विकसित करने के लिए साहित्य की भूमिका पर अपने विचार रखे। बात करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य ने महिला नेतृत्व को चित्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। और उत्तराखंड के संदर्भ में तिनचारी मेल, गौरा देवी, देविका चौहान और बछेंद्री पाल को साहित्य के माध्यम से चित्रित किया गया है उसकी महत्वता की बात करी |
अस्तित्व से आई दीपा कौशलम ने सेमिनार का अंतिम सैशन जैंडर और नेतृत्वक्षमता के संबध और द्वंद पर आधारित था । सैशन का उद्देश्य जैंडर गैरबराबरी व महिला नेतृत्व के पक्षों पर प्रकाश डालना था।
नेतृत्वक्षमता एक गुण है जिसका जैंडर से कोई सरोकार नही, नेतृत्व के गुण स्त्री अथवा पुरुष दोनों में समाहित हो सकते हैं मगर जैंडर गैरबराबरी व सत्ता समीकरणों से इनमें अंतर स्पष्ट दिखाई देता है । वैसे तो प्रत्येक समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नही है मगर कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि सब ठीक है । मगर बारीकी से देखने व समझने पर समाज में महिलाओं की दशा व दोषों को समझा जा सकता है ।
उत्तराखंड राज्य का गठन ही महिलाओं के संघर्षों का परिणाम रहा है मगर कई आंदोलनों में महिलाओं को आगे रखकर लाभ व सत्ता पुरुषों द्वारा हासिल की गई और महिलाओं के संघर्षों को दरकिनार कर दिया गया। सामान्य रुप में देश की सभी महिलाएं जीवन में आगे बढ़ने के लिए कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करती हैं मगर पहाड़ की महिलाओं के हिस्से में कुछ विशेष चुनौतियां भी रही हैं।
विषम भौगोलिक परिस्थितियां, स्कूलों और कॉलेजों का दूर होना, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, क्षैत्रीय मान्यताएं, शिक्षा व कैरियर में सीमित अवसरों के चलते बहुत सी किशोरियां व महिलाएं आगे नही बढ़ पातीं ।
संगोष्ठी में साहित्यकार मुकेश नौटियाल, डॉक्टर विद्या सिंह, सविता जोशी, नीना रावत राजीव पंत्री, वीरेंदर खंडूरी, तन्मय ममगाई नीलम प्रभा वर्मा आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित 50 प्रतिभागियों ने भाग लिया।