मुख्यधारा/यमकेश्वर
यमकेश्वर विधानसभा से कांग्रेस की उपेक्षा से नाराज महेंद्र राणा ने निर्दलीय चुनाव लडऩे की हुंकार भर दी है। उनके समर्थकों के जबर्दस्त उत्साह को देखते हुए माना जा रहा है कि इस बार भाजपा को अपने सुरक्षित गढ़ को बचाने का जहां चुनौती होगी, वहीं कांग्रेस की नींव भी हिलती हुई दिखाई दे रही है।
बताते चलें कि यमकेश्वर विधानसभा को भारतीय जनता पार्टी के लिहाज से अनुकूल व सुरक्षित गढ़ माना जाता है। बीते चार बार के विधानसभा चुनावों में यहां अब तक कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया है और चारों बार भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली है। इस बार महेंद्र राणा के द्वारीखाल प्रमुख बनने के बाद से यमकेश्वर के समीकरण बदलते हुए दिखाई दे रहे थे, किंतु कांग्रेस ने राणा को इस सीट पर टिकट नहीं दिया और कांग्रेस ने यहां एक अच्छा अवसर गंवा दिया।
बताया जाता है कि पार्टी की इस उपेक्षा से महेंद्र राणा के समर्थक जबर्दस्त निराशा का सामना कर रहे थे। इस पर सभी ने राणा को निर्दलीय चुनाव लडऩे का सुझाव दिया और अंतत: महेंद्र राणा की स्वीकृति मिलते ही यमकेश्वर में फिर से रोमांचकारी बन गया है। अब यहां मामला त्रिकोणीय बनने के आसार हैं।
दरअसल, यमकेश्वर में भाजपा का टिकट पाने में सफल रही रेनू बिष्ट की राह इस बार आसान नहीं मानी जा रही है। कट्टर भाजपाई उन्हें कांग्रेसी मूल का बता रहे हैं। ऐसे में यदि उनके साथ भितरघात होता है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
वहीं कांग्रेस के शैलेंद्र रावत भले ही इस सीट पर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके हों, किंतु आज भी क्षेत्रवासी उन्हें स्थानीय प्रत्याशी मानने को अंतर्मन से तैयार नहीं हैं। ऐसे में उनके साथ भी पिछली बार की भांति भितरघात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सका।
बताया जाता है कि अब तीसरे प्रत्याशी के रूप में महेंद्र राणा ने निर्दलीय चुनाव लडऩे की हुंकार भर दी है तो भाजपा व कांग्रेस से उपेक्षित व खिन्न मतदाताओं को उनकी झोली में आने से भला कौन रोक सकता है। बाकी पूरी विधानसभा क्षेत्र में उनका जिस तरह से जनाधार है, वह कहीं न कहीं दोनों प्रमुख दलों की बेचैनी बढ़ाता जा रहा है।
बहरहाल, अब देखना होगा कि यमकेश्वर का रण इस बार कौन प्रत्याशी फतह कर पाता है!
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