पीएम मोदी व सीएम धामी के स्वर्णमयी सपने को पलीता लगाने का प्रयास
मामचन्द शाह
सुना है आजकल देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जनपद में कुछ लोगों ने दूल्हे (groom) की एक घोड़ी खरीदी है। घोड़ी क्या, इसे बपौती समझिए जी! वहां घटी एक ज्वलंत घटना तो यही बयां कर रही है। हां, इस घोड़ी की अपनी कोई विशेष खासियत तो नहीं है, किंतु इसके मालिकों ने इसके लिए विशेष नियम-कायदे बनाए हैं। कायदे ऐसे कि संविधान से भी ऊपर गूंथे गए हैं और नियमों की तो बात ही छोडि़ए, खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
देवभूमि उत्तराखंड की छवि पर पलीता लगाने जैसा कुप्रयास
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम की यात्रा पर आए थे। आपको भी जरूर स्मृति में होगा कि उन्होंने धाम से ही घोषणा की थी कि आने वाला दशक यानि कि वर्तमान जो दशक चल रहा है, वह उत्तराखंड का होगा। तभी से यहां के युवा व ऊर्जावान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने सभी कार्यक्रमों में पीएम मोदी के उस संकल्प को जरूर दोहराते हैं, लेकिन यहां पीएम मोदी व सीएम धामी के उस स्वर्णमयी सपने को पलीता लगाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रयास नहीं, बल्कि देवभूमि उत्तराखंड की छवि पर पलीता लगाने जैसा कुप्रयास कहा जाए तो शायद ज्यादा उचित होगा।
घास-दाना-पानी देने के लिए नौकर-चाकर
अब दूल्हे (groom) की घोड़ी खरीदी है तो उसके लिए घास-पानी की जरूरत भी तो पड़ेगी ही, किंतु इन मालिकों को इससे कोई लेना-देना नहीं, बल्कि घास-दाना-पानी देने के लिए नौकर-चाकर तो हैं ही! वह नौकर संयोग से कहें या फिर कुछ और… करीब 95 फीसदी अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं। घोड़ी की ऐसी सेवा करते हैं कि जब भी वह किसी दूल्हें को ले जाती हैं तो खड़ंजेदार सीढीनुमार चढ़ाई वाले रास्तों को खट-खट-खट-खट एक ही सांस में पार कर लंबी सांसें लेती हैं। तब दूल्हे की धड़कन भी कुछ सामान्य होती हैं। हांलांकि यह अलग बात है कि अनु.जाति के जो लोग दूल्हे की इस घोड़ी की देख-रेख करते हैं, उन्हें दूल्हा बनकर इनमें बैठने की इजाजत घोड़ी मालिकों को नागवार गुजरती है।
देवभूमि उत्तराखंड की छिछालेदर
यहां 1950 से पूर्व की बात तो नहीं की जा सकती, किंतु संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी जब-तब देश के विभिन्न हिस्सों सहित उत्तराखंड में भी ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं, जिनसे देवभूमि उत्तराखंड की खूब छिछालेदर होती है।
ताजा प्रकरण अल्मोड़ा जनपद के सल्ट तहसील से
ताजा प्रकरण लंबे अरसे बाद उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा जनपद से ताल्लुक रखता है। यहां सल्ट तहसील क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम थला तडिय़ाल (मौडाली) में कुछ सवर्ण लोगों पर बारात ले जाते समय अनुसूचित जाति के दूल्हे (groom) को जबरन घोड़ी से उतारने व बारात रोकने का आरोप है। ग्राम थला तडिय़ा के दर्शन लाल ने एसएसडी से इसकी शिकायत की थी कि उनके पुत्र की बीते सोमवार को बारात जा रही थी, इसी दौरान मजाबाखली में गांव के सवर्ण लोगों ने रोक ली। दूल्हे (groom) को उतारने को कोशिश की, किंतु जब वह अड़ गया तो बारातियों को मारने की धमकी भी दी गई।
सभ्य नागरिक व सभ्य समाज कहने वालों के मुंह में करारा तमाचा
यह सही है कि अच्छी सांस्कृतिक विरासतों को संजोये रखना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है, किंतु 21वीं सदी के इस अत्याधुनिक युग में अनुसूचित जाति के दूल्हे को घोड़ी से उतारकर भगवान नारायण के अवतार में देखे जाने वाले दूल्हे का घोर अपमान किया जाना स्वयं को सभ्य नागरिक व सभ्य समाज कहने वालों के मुंह में करारा तमाचा नहीं तो और क्या है? सवाल यह भी है कि दूल्हे (groom) को घोड़ी में बैठाने का अधिकार सिर्फ आपको ही कहां से मिला!
छह लोगों पर मुकदमा दर्ज
खैर, सोशल मीडिया के इस युग में यह ज्वलंत प्रकरण वायरल हो गया। जिला प्रशासन समेत देहरादून में सरकारी तंत्र भी सक्रिय हो गया। फलस्वरूप राजस्व पुलिस ने पांच महिलाओं सहित छह लोगों पर मुकदमा दर्ज कर लिया है। तारा देवी पत्नी कुबेर सिंह, जिबुली देवी पत्नी रमेश सिंह, रूपा देवी पत्नी शिव सिंह, भगा देवी पत्नी आनंद सिंह, मना देवी पत्नी रतन सिंह और कुबेर सिंह पुत्र मुकुंद सिंह सहित अन्य लोगों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 504, 506 एवं एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दज किया गया है।
अनुसूचित जाति आयोग ने भी प्रकरण का संज्ञान लिया
वहीं अनुसूचित जाति आयोग ने भी इस प्रकरण का संज्ञान लिया है। आयोग के अध्यक्ष मुकेेश कुमर ने डीएम व एसपी से वार्ता की और प्रकरण पर हुई कार्रवाई का डाटा मांगा है। जैसे ही आयोग को रिपोर्ट आएगी, आयोग अपने स्तर से भी इसमें कार्रवाई करेगा।
चारधाम यात्रा आने वाले श्रद्धालु क्या संदेश लेकर जाएंगे
उत्तराखंड के एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इसी तरह देवभूमि उत्तराखंड में इस तरह का एक भी घिनौना प्रकरण सामने आने पर प्रदेश की छवि देश-दुनिया में धूमिल हो सकती है। यही नहीं पीएम मोदी के ‘आने वाला दशक उत्तराखंड का होगा’, जैसे ड्रीम प्रोजेक्ट ऐसी घटनाओं के सामने आने के बाद कैसे साकार हो सकेगा! इसके अलावा चारधाम यात्रा में आने वाले लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की नजर जब अखबारों के पहले पन्नों पर छपी ऐसे प्रकरणों पर पड़ेगी तो वे अपने साथ यहां से क्या संदेश लेकर जाएंगे!
कुल मिलाकर हालिया प्रकरण की जितनी निंदा की जाए, उतनी कम है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सभ्य समाज के जिम्मेदार नागरिकों की तरह ऐसी मानसिकता रखने वाले लोग भी अपने चश्मे पर लगी धूल की मोटी परत को जितनी जल्द हटा लेंगे, तभी सही मायनों में हो पाएगा आने वाला दशक उत्तराखंड का…!