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पोखरण (pokhran) परमाणु परीक्षण के 24 साल: भारत के धमाके की गूंज दुनिया में सुनाई दी, अटलजी के लिए आसान नहीं था यह मिशन

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शंभू नाथ गौतम

आज एक ऐसी तारीख जो भारत को विश्व मंच पर महाशक्तिशाली बनने की दिशा में याद की जाती है। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सियासत में सरल छवि से हटकर एक ताकतवर नेता के रूप में सामने आई थी।

आज 11 मई है । आज हमें न्यूक्लियर टेस्ट की याद आ जाती है। यह भारत द्वारा किया गया एक ऐसा धमाका था जिसकी गूंज दुनिया भर में सुनाई दी थी । हम बात कर रहे हैं वर्ष 1998 की । इसी दिन राजस्थान के पोखरण (pokhran) में एक के बाद कई परमाणु परीक्षण करके भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया था कि अब हम भी महाशक्ति बनने की कतार में आ खड़े हुए हैं। उस ऐतिहासिक घटना को आज पूरे 24 वर्ष हो गए हैं ।

इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस दिन को याद करते हुए ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘आज राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर, हम अपने प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों और उनके प्रयासों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिसके कारण 1998 में पोखरण का सफल परीक्षण हुआ। हम अटल जी के अनुकरणीय नेतृत्व को गर्व के साथ याद करते हैं, जिन्होंने उत्कृष्ट राजनीतिक साहस और राज्य कौशल दिखाया’।

इस मौके पर प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर परमाणु परीक्षणों की एक वीडियो क्लिप भी साझा की। उस समय केंद्र में भाजपा की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे । अटल जी का जैसा व्यक्तित्व था उससे अनुमान लगाना बहुत मुश्किल था कि उनके दौर में भारत क्या न्यूक्लियर टेस्ट भारत कर पाएगा? लेकिन अटल जी ने देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए ऐसे निर्णय लेने में देर नहीं लगाई थी । उस दौरान तत्कालीन रक्षामत्री जार्ज फर्नाडीज और मिसाइल मैन वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत को इस न्यूक्लियर टेस्ट करने में बड़ा योगदान था।

इस परमाणु परीक्षण के बाद भारत विश्व में पावरफुल देश बन गया लेकिन उसके इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। अमेरिका, जापान समेत कई देशों ने भारत पर प्रतिबंध भी लगा दिया था, इसके बावजूद वाजपेयी जी ने कोई परवाह नहीं की।

आपको बता दें कि भारत को एक देश के तौर पर पहली बार परमाणु बम की जरूरत का एहसास चीन के साथ हुए वर्ष 1962 के युद्ध के बाद हुआ। इस युद्ध में देश को मुंह की खानी पड़ी थी। दरअसल चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट 1964 में ही कर लिया था जिसके बाद संसद में पू्र्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने एक बयान में कहा था कि बम का जवाब बम ही होना चाहिए।

परमाणु परीक्षण की किसी भी देश को भनक नहीं लग पाई थी

केंद्र की भाजपा सरकार ने यह परमाणु परीक्षण इतना सीक्रेट किया था कि अमेरिका, चीन, जापान आदि देशों को इसकी भनक भी नहीं लग पाई थी। हालांकि इस परीक्षण से पहले मौजूदा समय में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसके साथ तौर पर संकेत दे दिए थे। जब देश ने पांच बेहद शक्तिशाली परमाणु धमाके किए थे तब इसे चौतरफा दबाव का सामना करना पड़ा था। 1996 में तो इसी सिलसिले में अमेरिकी अधिकारी खुद भारत आए और भारत को न्यूक्लियर प्रोग्राम के वो सबूत सौंपे जो अमेरिका के पास थे।

इसी बीच 1996 में ही वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने और इस बात के आदेश दिए कि न्यूक्लियर टेस्ट किए जाएं। इस आदेश के केवल दो दिनों बाद उनकी सरकार गिर गई। उसके बाद वर्ष 1998 में फिर मध्यवर्ती लोकसभा चुनाव हुए और एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी देश के दोबारा प्रधानमंत्री बने। लेकिन अटल जी ने परमाणु परीक्षण का फैसला जारी रखा था। वाजपेयी के पीएम बनने के बाद दिल्ली स्थित साउथ ब्लॉक में सीक्रेट मीटिंग्स हुईं । ये मुलाकात तब के डीआरडीओ प्रमुख अब्दुल कलाम और वाजपेयी के बीच हुई। मीटिंग में एटॉमिक एनर्जी चीफ डॉक्टर आर चिदंबरम, बार्क चीफ अनिल काकोदकर, एनएसए ब्रजेश मिश्रा, गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी मौजूद थे। इसी के बाद परमाणु परीक्षण को हरी झंडी दे दी गई थी ।

11 मई 1998 को परिस्थितियां भारत के अधिक अनुकूल नहीं थी

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नाडीज और भारत की पूरी वैज्ञानिक टीमों ने आखिरकार 11 मई 1998 को पोखरण में परमाणु परीक्षण करने की तारीख निर्धारित कर दी थी। परमाणु परीक्षण से 5 दिन पहले बहुत ही गुप्त तरीके से सारा सामान पोखरण राजस्थान पहुंचाया गया था।

अमेरिका की खुफिया एजेंसी भारत में लगातार निगरानी कर रही थी, इसलिए भारत को अधिकतर दिन वाले काम रात में ही करने पड़ रहे थे । यही नहीं सारे वैज्ञानिकों की टीम को सेना की वर्दी में बनाकर रखा जा रहा था। इसके पीछे की वजह ये थी कि रात में सेटेलाइट से पोखरण में हो रही गतिविधि का पता लगाना मुश्किल था। इस परीक्षण के लिए देश के वैज्ञानिकों ने हर परीक्षा दी । बेहद कम सुरक्षा इंतज़ाम रखे गए ताकि किसी तरह का कोई शक पैदा न हो।

वहीं सभी वैज्ञानिकों को कोड नेम दिया गया। अब्दुल कलाम को मेजर जनरल पृथ्वीराज का नाम दिया गया। जब परीक्षण का मौका आया तब हवाएं साथ देती नहीं दिख रही थीं।

दरअसल ये आबादी वाले इलाके की ओर बह रही थीं। इस स्थिति में परीक्षण करने पर रेडिएशन फैलने का खतरा था। लेकिन दोपहर तक हवाएं शांत हो गईं और भारत के धमाके की गूंज से दुश्मनों के साथ-साथ दुनिया कांप उठी । भारत के युद्ध के बाद अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस, इंग्लैंड ने जबरदस्त नाराजगी जताई।

भारत के इस प्रभाव परीक्षण करने के बाद 11 मई का दिन अमर हो गया और इसे राष्ट्रीय तकनीक दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। आपको बता दें कि भारत ने पहला परीक्षण वर्ष 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पोखरण में किया था। उस समय भी विश्व के कई देशों ने भारत पर चौतरफा दबाव बनाया था।

 

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