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दुर्दशा पर आंसू बहा रही यमुना (Yamuna)

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दुर्दशा पर आंसू बहा रही यमुना (Yamuna)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

गंगा नदी जिसे मां गंगा या फिर गंगा मैया कहकह मातृ भाव से पूजी जाती है और उसी प्रकार यमुना या जमुना नदी के आर पार बसे लोग जमुना मैया कह कर ही जल का आचमन करते रहे है। भारत में फलीफूली उस विशिष्ठ संस्कृति जिसमें “वासुदेव: कुटुंब” की भावना प्रबल हो उसे हम इन्हीं दो नदियों के समान गंगा जमना तहजीबज कहकर संदर्भित करते हैं। आपसी प्रेम, भाईचारे और एकता की मिसाल गंगा-जमुनी तहजीब की बातें हिन्दुस्तान में तो देखने को मिलती है। लेकिन जिस गंगा जमुनी तहजीब से हिन्दुस्तान की पहचान होती रही है। उस हिन्दुस्तान में नदियां अब सांसों के लिए तरप रही हैं। इन नदियों में इतना जहर घोला जा चुका है कि अब वो झाग की शक्ल में तैरने लगा है भारत की सर्वाधिक प्राचीन और पवित्र नदियों में गंगा के समकक्ष ही यमुना की गणना की जाती है।

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भगवान कृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही यह नदी ब्रज संस्कृति की संवाहक है। भारतवासियों के लिए यह केवल एक नदी नहीं है, भारतीय संस्कृति में इसे मां का स्थान दिया गया है ।उत्तरकाशी जिले के गढ़वाल हिमालय में, यमुनोत्री, चार धाम के बीच एक पवित्र स्थान स्थित है। यमुनोत्री से यमुना नदी का उद्गम होता है। यमुनोत्री ग्लेशियर 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से हरे भरे जंगलों और वनस्पतियों और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। यह कालिंद चोटी के ठीक नीचे स्थित है। इसलिए कालिंद पर्वत से निकलकर यमुना को कालिंदी के नाम से भी जाना जाता है। यमुना के उत्तर में बंदरपूच पर्वत स्थित है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ भगवान हनुमान ने लंका को जलाने के बाद अपनी पूंछ की आग बुझाई थी। नदी के स्रोत के पास, यमुनोत्री मंदिर देवी यमुना को समर्पित है। देवी यमुना एक काले संगमरमर की मूर्ति में एक मंदिर में निवास करती है। यह गंगोत्री मंदिर की तरह एक पवित्र स्थान है। अप्रैल-मई में अक्षय तृतीया तक दिवाली के बाद सर्दियों के दौरान मंदिर बंद रहता है।

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यमुना नदी के पास सूर्य कुंड के नाम से जाना जाने वाला एक छोटा गर्म पानी का झरना है जहाँ भक्त मलमल के कपड़े में बंधे चावल और आलू उबालते हैं। सूर्य कुंड के पास, दिव्य शिला नामक एक शिला है, जिसकी पूजा देवता को पूजा करने से पहले की जाती है। सूर्य कुंड में बने चावल और आलू मंदिर में चढ़ाए जाते हैं और बाकी को प्रसाद के रूप में लिया जाता है। इस पवित्र स्थान की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय मई से नवंबर के बीच का समय मानसून के मौसम से बचना है क्योंकि भूस्खलन के कारण यह एक जोखिम भरा मामला हो सकता है।फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यहां का माहौल सबसे अच्छा है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, बर्फ से ढके पहाड़, वनस्पतियां और जीव-जंतु पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। रोमांच चाहने वालों के लिए यमुनोत्री में कैंपिंग और ट्रेकिंग की जा सकती है। यमुनोत्री ग्लेशियर में अपने उद्गम स्थल से निकल 4 राज्यों से होते हुए और कई सहायक नदियों को अपने आंचल में लेती हुई यमुना नगर, मथुरा, नोएडा, फिरोजाबाद, इटाबा, हमीरपुर, बागपत, सहारनपुर, फैजाबाद, दिल्ली, मथुरा, आगरा, इटावा, कालपी, प्रयागराज आदि महत्वपूर्ण शहर यमुना नदी के किनारे बसे हुए हैं धार्मिक पुराणों के अनुसार भगवान सूर्य नारायण को यमुना नदी का पिता, धर्मराज को इनका भ्राता तथा भगवान श्री कृष्ण कि अष्ट पटरानियों में एक मां कालिंदी भी है।

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भगवान श्री कृष्ण को ब्रज की संस्कृति का जनक कहा जाता है उसी स्थान पर यमुना नदी को जननी के रूप में माना जाता है। बृज धाम में मां यमुना को आज भी ब्रजवासी श्याम सुंदर श्री यमुना महारानी कह कर पुकारते हैं तथा वहां बारहों महीने श्री यमुना जी की उनकी पूजा होती है। कार्तिक मास में इसका एक अलग महत्व होता है। कार्तिक मास में बृजवासी यमुना नदी में दीपदान करते हैं संपूर्ण नदी को दीपों से सुसज्जित कर देते हैं। कार्तिक माह में यमुना नदी की शोभा देखते ही बनती है।  सही अर्थों में कहां जाए तो यमुना नदी ब्रिज वासियों की माता है। अतः इसीलिए बृज मैं उन्हें यमुना मैया कहकर पुकारा जाता है ब्रह्म पुराण के अंतर्गत यमुना नदी के आध्यात्मिक स्वरूप का स्पष्टीकरण करते
हुए विवरण प्रस्तुत किया गया है, च्च्जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्षणों से सच्चिदानंद स्वरूप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्म रूप से गायन किया है वहीं परम तत्व साक्षात यमुना है। श्री रूप गोस्वामी जी जो कि गौरी विद्वान है उन्होंने यमुना को साक्षात चिदानंद में बतलाया है। गर्ग संहिता में यमुना के पंचांग में पांच नाम वर्णित हैं, पटल, पद्धति, कवय, स्तोत्र, सहस्त्र।

प्राचीन नदियों में यमुना नदी की गणना गंगा नदी के साथ ही की जाती है, ये दोनों नदियां भारतवर्ष की सबसे प्राचीन और पवित्र नदियां हैं। आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रूप गंगा और यमुना के दो आब की पुण्यभूमि में ही बन सका था। यह दोनों नदियां भारत भूमि की पवित्र, पुरातन तथा सांस्कृतिक हैं। यमुना नदी तो ब्रजमंडल की एकमात्र महत्वपूर्ण नदी है।ब्रज मंडल में ब्रज संस्कृति के संबंध में यमुना नदी को मात्र एक नदी कहना पर्याप्त नहीं है बल्कि यहां इन्हे भगवान श्री कृष्ण की पटरानी के रूप में देखा जाता है, तथा विधि-विधान से यहां यमुना जी की पूजा की जाती है। यमुना नदी ब्रज की दीर्घकालीन परंपरा की प्रेरक तथा यहां की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार मानी गई हैं। बृज भूमि में यमुना नदी का एक विशेष महत्त्व है। यमुना नदी के साथ ब्रिज मंडल की कई पुरातन मान्यताएं जुड़ी हुई है। ब्रिज धाम में यमुना नदी सबसे अधिक पूजनीय है तथा ब्रज वासियों को मनोवांछित फल देने वाली कही गई हैं।

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महान कवियों ने बृज भाषा के जो भक्त कवि और विशेषता वल्लभ संप्रदाय कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भांति मां यमुना के प्रति भी अपनी अतिशय श्रद्धा भक्ति व्यक्त की है।वृंदावन यमुना की एक ही धारा के तट पर बसा हुआ है वृंदावन में मध्यकाल में अनेक धर्माचार्य और बड़े-बड़े भक्त कवियों ने निवास करके श्रीकृष्ण की उपासना और श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार किया था। वृंदावन में यमुना के किनारे पर बड़े-बड़े सुंदर घाट बने हुए हैं और उन्हीं पर अनेकानेक सुंदर-सुंदर मंदिर देवालय और धर्मशालाएं बनी है। इनसे उस यमुना के तट की शोभा और अधिक कई गुना बढ़ जाती है। वृंदावन से आगे चलकर दक्षिण की ओर बहती हुई यमुना नदी मथुरा नगर में प्रवेश करती है। मथुरा में भगवान श्री कृष्ण अवतार धारण किया था जिस वजह से इसके महत्व की वृद्धि हुई मथुरा में भी यमुना नदी के तट पर बड़े ही सुंदर सुंदर घाट बने हुए हैं। जमुना में नाम से अथवा पुल से देखने पर मथुरा नगर की और वहां के घाटों का मनोरम दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है।

बीते हुए काल में यमुना नदी मथुरा वृंदावन में एक विशाल नदी के रूप में बहती थी परंतु जब से इससे नैहरे निकाली गई हैं। तब से उसका जली आकार छोटा होता चला गया केवल बरसात के मौसम में ही यमुना नदी अपना पूर्ववर्ती रूप धारण करती हैं उस समय पर मिलो तक इसका पानी फैल जाता है।दरअसल यमुना नदी पश्चिमी हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलकर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील बहकर सफर करती हुई उत्तरी सहारनपुर के मैदानी इलाके में पहुंचती हैं। फिर उसके पश्चात ये नदी दिल्ली, आगरा से होती हुई संगम प्रयागराज में गंगा नदी से जा मिलतीहै। ऐतिहासिक काल में यमुना नदी मधुबन के समीप बहती थी जहां उसके तट पर शत्रुघ्न जी ने
सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी। श्री वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका विवरण प्राप्त होता है। पुराणों से इस बात का ज्ञान होता है की पुराने वृंदावन में यमुना नदी गोवर्धन के निकट बहती थी जबकि वर्तमान समय में यमुना नदी गोवर्धन से लगभग 4 मील दूर हो गई हैं। वहीं अगर यमुना नदी के आधुनिक प्रवाह क्षेत्र की बात करें तो वर्तमान समय में यमुना नदी सहारनपुर जिले की फैजाबाद मैं गांव के निकट मैदान में आने पर ये उसके आगे 65 मील तक आगे बढ़ती हुई हरियाणा के अंबाला और करनाल जिलों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जिलों से अलग करतीहै। इस भू-भाग में यमुना नदी में मस्कर्रा, कठ, हिंडन और सबी नामक चार नदियां मिलती हैं। जिसके कारण यमुना नदी के आकार में परिवर्तन हो जाता है, इन नदियों के मिलने से इनका जल स्तर और बढ़ जाती है। मैदान में आते ही इससे पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी यमुना नहर निकलती है। यमुना नदी वेदों के काल से ही गंगा नदी के साथ बहती हैं और गंगा के साथ-साथ यमुना नदी भी हिंदू संस्कृति में पवित्र मानी गई हैं। यमुना नदी उत्तर भारत मैं बहने वाली सबसे लंबी नदियों में से एक है। इस नदी की लंबाई लगभग 1376 किलोमीटर है यह नदी गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी के रूप में मानी जाती है।

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दिल्ली सरकार ने भले ही 2025 तक यमुना नदी के पानी को नहाने लायक साफ करने का वादा किया हो लेकिन पर्यावरण विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में नदी में प्रदूषण का स्तर और बढ़ गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पल्ला को छोड़कर, राष्ट्रीय राजधानी में प्रत्येक स्थान पर परीक्षण के लिए एकत्र पानी के नमूने में जैविक ऑक्सीजन मांगज् (बीओडी) का सालाना औसत स्तर बढ़ गया है। बीओडी पानी की गुणवत्ता मापने के लिए एक महत्वपूर्ण मानक है। यह किसी जलाशय में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा है। अगर बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम हो, तो उसे अच्छा स्तर माना जाता है।  पर्यावरण विभाग की ओर से इस संबंध में तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति पल्ला, वजीराबाद, आईएसबीटी पुल, आईटीओ पुल, निजामुद्दीन पुल, ओखला बैराज और असगरपुर में यमुना नदी के पानी के नमूने एकत्र करती है। यमुना नदी पल्ला में ही दिल्ली में प्रवेश करती है। समिति के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले पांच साल के दौरान (2017 से 2022) पल्ला में वार्षिक औसत बीओडी स्तर में खास परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन यह वजीराबाद में करीब ३ मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर करीब 9 मिलीग्राम प्रति
लीटर हो गया है।

इस दौरान आईएसबीटी पुल पर बीओडी स्तर लगभग 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर50 मिलीग्राम प्रति लीटर और आईटीओ पुल पर 22 मिलीग्राम प्रति लीटर से 55 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया है। निजामुद्दीन पुल पर बीओडी स्तर 23 मिलीग्राम प्रति लीटर से करीब 60  मिलीग्राम प्रति लीटर, ओखला में 26 मिलीग्राम प्रति लीटर से 69 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया है। यदि बीओडी 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है और घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है तो यमुना नदी के पानी को स्नान के लिए ठीक माना जा सकता हैयमुना नदी के जलस्तर में आ रही गिरावट, पैदा हुआ जल संकट दिल्ली में भीषण गर्मी की शुरुआत से पहले ही यमुना नदी का जलस्तर कम होने लगा है। इसके चलते दिल्ली के कई इलाकों में पानी का संकट देखने को मिल रहा है। इसके लिए सरकार को नदियों के संरक्षण के लिए एक नीति का गठन करना चाहिये। जिसका कार्य संचालन केन्द्र सरकार के हाथ में होना चाहिए।अपनी प्राकृतिक धरोहरों को कैसे बचाना है और सहेजना है।

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इसका उदाहरण हमें मथुरा जैसे शहरों से लेना चाहिए। जहाँ संस्थाओं व सम्बंधित विभागों में बहुत अच्छा सामंजस्य है। यमुना की प्रदूषण-मुक्ति के लिये सरकार के साथ-साथ जन-जन को जागना होगा। सरकार की सख्ती एवं जागरूकता ज्यादा जरूरी है। यमुना प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय हरित पंचाट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकाय औद्योगिक इकाइयों के लिए समय-समय सख्त नियम बनाते रहे हैं। पर लगता है कि इनके दिशानिर्देशों पर अमल करवाने वाला तंत्र कमजोर साबित हो रहा है। वरना क्या कारण है कि सख्ती के बाद भी
औद्योगिक कचरा और जहरीले रसायन यमुना में बहाए जा रहे हैं? औद्योगिक इकाइयों को सख्त हिदायत है कि वे तरल कचरा नदियों में प्रवाहित न करें। पर जिस सरकार, उसके महकमे और कानून प्रवर्तन एजंसी पर इसे सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी है, लगता है वह काम ही नहीं कर रही। कुछ समस्याएं राजनीतिक नफा-नुकसान से ऊपर होती है। उन्हें राजनीतिक नजरिये से नहीं, मानवीय नजरिये से देखना होता है। अन्यथा जीवन मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जायेगा। मनुष्य के भविष्य के लिए यह चिन्ता का बड़ा कारण हैं। दिल्ली की यमुना इसी प्रकार अगर प्रभावित एवं प्रदूषित होती रही तो अगली शताब्दी में दिल्ली की बहुत कुछ विशेषताएं समाप्त हो जाएंगी। क्या आप ऐसी सुबह चाहेंगे जब दिल्ली का जीवन घोर अंधेरों से घिरा हो? विडम्बना यह है इस ओर हमारे दायित्व के प्रति हम सबने आंखें मूंद रखी हैं

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं)

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