प्रयोग नहीं हो रहे प्राकृतिक संसाधनों (natural resources) और बर्बाद जा रहे बाज़ार उत्पादों का समुपयोग और पुनर्चक्रीकरण
दीप चन्द्र पंत
हमारे चारों ओर कई प्राकृतिक संसाधन ऐसे हैं जिनमें उपलब्ध गुण और ऊर्जा का उपयोग हम नही कर पा रहे हैं। इस दिशा में सोचा जाना चाहिए और समुचित समुपयोग के विषय में विचार आवश्यक प्रतीत होता है।
ऐसे ही बाजार में उपलब्ध सामग्री के साथ आ रहे रैपर्स बर्बाद जा रही सामग्री भी हो सकती है, जो बेवजह समस्या भी उत्पन्न कर सकते हैं। जैसे प्लास्टिक अवशेष नालियों को चोक कर जल भराव का कारण बनता है या घर का कूड़ा ढेर बनकर मुफ्त में मुसीबत बनता जा रहा है।
सूर्य की धूप या बहती हवा सोलर एनर्जी या विंड एनर्जी कई काम आ सकती हैं। बहते पानी से न केवल स्थानीय आवश्यकता की पनबिजली बन सकती हैं, अपितु घराट और सिंचाई में भी उपयोग हो सकता है। ऐसे ही प्लास्टिक रैपर्स उसी कम्पनी को बेचने के अतिरिक्त क्षतिग्रस्त होने पर पुनर्चक्रीकरण द्वारा पुन: उपयोग अन्य उपयोग हेतु काम आ सकते हैं।
एग्रीवास्ट व अन्य कार्बनिक वेस्ट कंपोस्टिंग या अन्य प्रयोग हो सकने वाले पदार्थ बनाने के काम आ सकता है। शायद जीवन में झेल रहे कई अभाव हम दूरदर्शी सोच से कोई उपयोग की सामग्री का निर्माण भी कर सकते हैं।
उत्तराखंड जैसे गरीब राज्य, जहां अभाव के कारण बेरोजगारी और पलायन का दंश हमको डंस रहा है, ऐसे विवेकपूर्ण प्रयासों से जीवन का रोमांच ही बदल सकते हैं, परंतु यहां एक नि:स्वार्थ और विवेकपूर्ण दृष्टि की आवश्यकता है।
(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं।)