कोर्ट से नहीं मिली राहत: नैनीताल के मल्लीताल में बुलडोजर ने गिराए कई अवैध घर, जानिए क्या है शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल, जिस पर हो रही कार्रवाई
मुख्यधारा डेस्क
आज हम आपको शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल को लेकर बताएंगे। यह चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि उत्तराखंड के नैनीताल शहर के मल्लीताल में शनिवार 22 जुलाई को शत्रु संपत्ति से कब्जा हटाने के लिए बुलडोजर गरज रहे हैं। हालांकि यहां पर रहने वाले लोगों ने नैनीताल हाईकोर्ट में इसके लिए याचिका भी दायर की थी। लेकिन इन परिवारों को हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली । जिसके बाद शनिवार को दर्जनों बुलडोजर पुलिस प्रशासन के अधिकारी पहुंचे और आवासों को गिराना शुरू कर दिया है। हालांकि कई परिवार बुलडोजर से पहले अपने अपने सामान लेकर चले भी गए हैं। मल्लीताल में शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल में चिन्हित 134 अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण की बड़ी कार्रवाई शनिवार सुबह से ही शुरू हो गई थी। प्रशासनिक व पुलिस अफसरों की मौजूदगी में एक साथ बुलडोजर गरज रहे हैं। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पूरे शहर में हलचल है। नैनीताल में राजा महमूदाबाद की शत्रु संपत्ति से जोरशोर से अतिक्रमण हटाया जा रहा है।
नैनीताल को मेट्रोपोल इलाके से 134 से ज्यादा अवैध कब्जे हटाए जाने हैं। विरोध की आशंका को देखते हुए नैनीताल में पुलिस प्रशासन अलर्ट मोड पर है। इलाके में पांच कंपनी पीएसी, 80 सब इंस्पेक्टर, 150 महिला कांस्टेबल समेत सैकड़ों की संख्या में सुरक्षाकर्मी मौके पर तैनात हैं। नैनीताल में राजा महमूदाबाद की शत्रु संपत्ति पर हुए अतिक्रमण को नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश और जिला प्रशासन के नोटिस के बाद हटाना शुरू कर दिया गया है। सुबह से करीब आधा दर्जन से अधिक जेसीबी मशीनों के द्वारा 134 से अधिक घरों को तोड़ना शुरू कर दिया गया है। घरों पर बुलडोजर चलने से पहले अधिकांश लोगों ने अपने-अपने घरों को खाली कर दिया। क्योंकि हाईकोर्ट ने सभी अतिक्रमण- कारियों को घर खाली करने के निर्देश दिए थे। शुक्रवार को हाईकोर्ट से अतिक्रमणकारियों की याचिका खारिज होने के बाद प्रशासन व पुलिस ने चिन्हित घरों को खाली कराने का अभियान छेड़ दिया। रातभर अतिक्रमण की जद में आए लोगों ने अपने घरों की छतों को उखाड़ा। बारिश के बाद लोग चले गए। सुबह मौसम खुलने के बाद प्रशासन ने बुलडोजर मौके पर उतार कर ध्वस्तीकरण अभियान शुरू कर दिया। जो लगातार जारी है।
हाई कोर्ट ने नैनीताल में राजा महमूदाबाद की शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल के कब्जेदारों को एसडीएम कोर्ट से जारी नोटिस पर रोक लगाने व आवास के वैकल्पिक इंतजाम करने को लेकर दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सभी अतिक्रमणकारियों से कोर्ट में यह लिखित रूप से देने के लिए कहा कि दस दिन के भीतर कब्जा खाली कर देंगे, तभी उन्हें दस दिन का समय दिया जाएगा। ऐसा नहीं करने पर ध्वस्तीकरण का आदेश यथावत रहेगा। लेकिन लंच के बाद अतिक्रमणकारियों ने लिखित रूप से देने से इन्कार कर दिया, जिसके बाद कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट की दो सदस्यी बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए अतिक्रमणकारियों से कब्जा खाली करने के लिए अंटर टेकिंग देने को कहा. कोर्ट के इस आदेश के बाद अतिक्रमणकारियों ने अंडर टेकिंग देने से इनकार कर दिया।
मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल एसएन बाबुलकर और सीएस रावत ने कोर्ट को बताया कि अगस्त 2010 में सरकार ने शत्रु संपत्ति पर उनके मालिकों की उपस्थिति में कब्जा लिया था, उस कुल 116 कब्जाधारी शामिल थे। उन्होंने कोर्ट को कहा कि वर्तमान याचिकाकर्ता किस आधार पर इन संपत्तियों पर अपना कब्जा बता रहे हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 134 हो गई और अब इन्हें यहां से हटाया जाए। आजादी के बाद देश से कई लोग पाकिस्तान में जाकर बस गए। इसके अलावा 1965 और 1971 के भारत- पाकिस्तान युद्ध को देखते हुए कई लोगों ने यहां से प्रवास किया। इन लोगों को देश छोड़ने के बाद उनकी प्रॉपर्टी छूट गई। ऐसी संपत्तियों को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। इस संबंध में सरकार ने सितंबर 1959 में पहला आदेश जारी किया गया था। जबकि इस संबंध में दूसरा आदेश दिसंबर 1971 में जारी किया गया था। दरअसल अतिक्रमण हटाने को लेकर याचिकाकर्ताओं को एसडीएम कोर्ट और सिविल कोर्ट से राहत नहीं मिलने पर, उन लोगों ने नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जहां याचिकाकर्ताओं एसडीएम कोर्ट और सिविल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते कहा कि नैनीताल की शत्रु संपत्ति पर उनका सालों से कब्जा रहा है।
हल्द्वानी में भी इसी साल रेलवे ने अवैध कब्जे हटाने के लिए हाईकोर्ट का खटखटाया था दरवाजा
हल्द्वानी में इसी साल जनवरी महीने में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने की उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दिया था। रेलवे की जिस 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे की बात कही जा रही है, वो हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में गफूर बस्ती नाम की जगह है। रेलवे की तरफ से कहा गया कि हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जिनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी मौजूद है। हाई कोर्ट के आदेश पर इन लोगों को पीपी एक्ट में नोटिस दिया गया, जिनकी रेलवे ने पूरी सुनवाई कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए। रेलवे का दावा है कि यहां पर तकरीबन 50 हजार लोग हैं। रेलवे ने 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और दूसरे ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। जिस जगह से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 20 मस्जिदें, 9 मंदिर और स्कूल हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश के बाद से ही लोग सड़कों पर हैं।
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बताया जा रहा है कि जिन लोगों के घर गिराए जाने थे, उनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं। लगभग 10 साल पहले गौला नदी में अवैध रेत खनन का मामला उठा। तब ऐसा आरोप लगा कि नदी किनारे रहने वाले लोग ही अवैध खनन में शामिल है। लिहाजा, लोगों को यहां से हटाने के लिए 2013 में पहली बार हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई। 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने 10 हफ्ते के अंदर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। हालांकि, इस आदेश को लागू नहीं किया गया। पिछले साल हाईकोर्ट में फिर याचिका दायर हुई, जिसमें कहा गया कि रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में देरी की गई। इस पर 20 दिसंबर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें अदालत ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। दरअसल, आरोप है कि हल्द्वानी में लगभग साढ़े चार हजार परिवारों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है। ये जमीन 29 एकड़ की है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल 20 दिसंबर को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था।इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि 50 हजार लोगों को रातो-रात बेघर नहीं किया जा सकता। रेलवे को विकास के साथ-साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर रेलवे और राज्य सरकार समेत सभी पक्षों से जवाब मांगा है। हालांकि अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
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