उत्तराखंड में व्यापार और मेलों की परंपरा (tradition of fairs) - Mukhyadhara

उत्तराखंड में व्यापार और मेलों की परंपरा (tradition of fairs)

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उत्तराखंड में व्यापार और मेलों की परंपरा (tradition of fairs)

Deepchandra pant

दीप चंद्र पंत 

आदान प्रदान और आवश्यकता आपूर्ति के कई साधन व्यक्ति को अन्य श्रोत से प्राप्त करने पड़ते हैं। किसी भी जगह मनुष्य की आवश्यकता का हर सामान उत्पन्न नहीं हो सकता। ऐसे में व्यापार की वह विधा विकसित हुई, जिससे कोई भी मुनष्य आवश्यकता की आपूर्ति अन्य संभाव्य श्रोत से प्राप्त कर सकता है।

  लेन देन हेतु मुद्रा की अनुपस्थिति में अदल बदल अथवा लेन देन की वह विधा विकसित हुई, जिसे barter economy कहा जाता है।
उत्तराखंड के सार्वजनिक स्थल विशेष रूप से मेलों के अवसर पर व्यापार की यह विधा विकसित हुई है। इनमें स्थल विशेष के उत्पादन, जो लोगों के उपभोग और आवश्यकता के लिए आवश्यक हो, आदान प्रदान होता था। जैसे भोट प्रदेश से भेड़ों को चराने आए लोग भेड़ों की पीठ में नमक, मसाले, कपड़े आदि लाद लाते थे और उसके बदले अनाज ले जाते थे।
मेलों के अतिरिक्त परिचित हो चुके घरों तक भी वे आपूर्ति करने और बदले में अनाज, फल, सब्जी आदि आवश्यकता की चीजें ले जाया करते थे। ऐसे ही स्थल विशेष के उत्पादन जैसे डाले, सूपे, मस्ट आदि, जरूरत के विभिन्न धातुओं से बने बर्तन वा कृषि उपकरण आदि।
विभिन्न धार्मिक अवसरों पर होने वाले आयोजनों के अवसर पर ऐसे व्यापार की संभावना अधिक होने के कारण इन मेलों का व्यापारिक महत्व भी बहुत अधिक था।
उत्तरायण सरयू नदी में स्नान के लिए बागेश्वर के मेले का व्यापारिक महत्त्व कुमाऊँ क्षेत्र में बहुत अधिक था। ऐसे ही पूरे उत्तराखंड में विभिन्न अवसरों पर लगने वाले मेले व्यापार के माध्यम हुआ करते थे।

(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं।)

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