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हिमालय (Himalayas) नहीं रहेगा हमारा रक्षक, पिघलते ग्लेशियर बनेंगे प्राकृतिक आपदाओं की वजह

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हिमालय (Himalayas) नहीं रहेगा हमारा रक्षक, पिघलते ग्लेशियर बनेंगे प्राकृतिक आपदाओं की वजह

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

असलियत में हम कहें कुछ भी, लेकिन यह कटु सत्य है कि हम दुनिया के बहुत सारे ग्लेशियरों को खोते चले जा रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि इस खतरे के प्रति हम मौन है, यह रवैया समझ से परे है। असली खतरा यह है और सबसे बड़ी चिंता की बात यह भी कि यदि दुनिया आने वाले वर्षो में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने में कामयाब भी रहती है, तब भी लगभग आधे से ज्यादा ग्लेशियर गायब हो
जाएंगे। दुनिया के ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं या यों कहें कि वे खत्म हो रहे हैं,वह भयावह आपदाओं का संकेत है। दुनिया के वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है कि जलवायु परिवर्तन की मौजूदा दर यदि इसी प्रकार बरकरार रही, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सदी के अंत तक दुनिया के दो तिहाई ग्लेशियरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। यह आशंका वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के उपरांत व्यक्त की है। उनके अनुसार यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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असलियत में हम कहें कुछ भी, लेकिन यह कटु सत्य है कि हम दुनिया के बहुत सारे ग्लेशियरों को खोते चले जा रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि इस खतरे के प्रति हम मौन है, यह रवैया समझ से परे है। असली खतरा यह है और सबसे बड़ी चिंता की बात यह भी कि यदि दुनिया आने वाले वर्षो में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने में कामयाब भी रहती है, तब भी लगभग आधे से ज्यादा ग्लेशियर गायब हो जाएंगे। अधिकतर छोटे ग्लेशियर तो धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ ही रहे हैं। जहां तक हिमालयी क्षेत्र का सवाल है, एक अध्ययन के मुताबिक हिमालयी ग्लेशियरों को साल 2000 से 2020 के दौरान तकरीबन 2.7 गीगाटन का नुकसान हुआ है। इस अध्ययन की मानें तो हिमखण्डों को हो रहे नुकसान को 2020 तक काफी कम करके आंका गया।

ब्रिटेन और अमरीका की अध्ययन टीम के अनुसार पिछले आकलनों में हिमालयी क्षेत्र में पिघलकर गिर रहे ग्लेशियरों के कुल नुकसान को 6.5 फीसदी कम करके आंका गया था। हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के अध्ययन के बाद खुलासा हुआ है कि यहां विभिन्न इलाकों में अधिकतर ग्लेशियर अलग-अलग दर पर पिघल रहे हैं। सरकार ने भी माना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर के पिघलने का न सिर्फ हिमालय की नदी प्रणाली के बहाव पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इसके चलते प्राकृतिक आपदाओं में भी काफी बढ़ोतरी होगी। सरकार ने इसका खुलासा ग्लेशियरों का प्रबंधन देखने वाली संसद की स्थायी समिति को किया है।

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संसद की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग ने हिमालय में ग्लेशियरों के लगातार पिघलना, पीछे खिसकना और साल के दौरान ग्लेशियर के क्षेत्र में अनुमानत: कमी की समस्या के बारे में बताया गया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में नौ ग्लेशियरों के द्रव्यमान संतुलन में पाया गया है कि इस हिमालय अंचल में ग्लेशियर विभिन्न क्षेत्रों में अलग- अलग दर से अपने स्थान से खिसक रहे हैं। या यूं कहें कि वे अलग- अलग गति से पिघल रहे हैं। इससे इस अंचल में हिमालयी नदी प्रणाली का प्रवाह न केवल गंभीर रूप से प्रभावित होगा, बल्कि ग्लेशियर झील के फटने की घटनाओं, हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी आपदाओं का जन्म भी होगा।यही एक आशंका नहीं है। हिमालय के कश्मीर और लद्दाख इलाके के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। वहां बर्फ गायब हो रही है।

अगर बीते 60 सालों का जायजा लिया जाए, तो कश्मीर इलाके के ही ग्लेशियरों ने 23 फीसदी जगह छोड़ दी है। कई जगह पर बर्फ की परत छोटी और पतली हो गई है। कश्मीर का सबसे बड़ा ग्लेशियर कोल्हाई तेजी से पिघल रहा है। हरमुख की पहाडिय़ों में स्थित थाजबास, होकसर,
शीशराम और नेहनार जैसे ग्लेशियर भी लगातार पिघल रहे हैं। ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की रफ्तार को देखते हुए यह आशंका बलवती हो गई है कि इससे बनने वाली झीलें से निचले इलाकों में कभी भी बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है। इससे भूस्खलन के खतरों को नकारा नहीं जा सकता।

कोल्हाई ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार से इसके अस्तित्व पर संकट तो मंडरा ही रहा है। इससे कश्मीर में सूखा और जल संकट की आहट को भी दरगुजर नहीं किया जा सकता। यह झेलम में पानी का मुख्य स्रोत है। इसके पीछे तापमान में बढ़ोतरी, जंगलों का तेजी से कटान, पहाड़ी जल स्रोतों पर बढ़ते मानवीय दखल, अतिक्रमण, वाहनों की बेतहाशा वृद्धि और कंक्रीट के जंगलों में अंधाधुंध हो रही बढ़ोतरी को कारण माना जाता है। इससे सूखा, बाढ़ की समस्याओं में तो इजाफा होगा ही, पानी के संकट को भी नकारा नहीं जा सकता। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

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वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि 2100 आने तक हिमालय के 75% ग्लेशियर पिघल कर खत्म हो जाएंगे।इससे हिमालय के नीचे वाले भू-भाग में रहने वाले 8 देशों के करीब 200 करोड़ लोगों को पानी की किल्लत और बाढ़ का खतरा होगा। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान, चीन, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं। काठमांडू के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलेपमेंट ने इसकी जानकारी दी है। बताया है कि आने वाले दिनों में एवलांच की घटनाएं भी तेजी से बढ़ेंगी। अलजजीरा के मुताबिक ग्लेशियर पिघलने का असर उन लोगों पर होगा जिन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग की ही नहीं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से जो बर्फ 2000 सालों में खत्म होने वाली थी वो केवल 30 सालों में खत्म हो चुकी है।पर्यावरण पर काम करने वाले एक वैज्ञानिक फिलिपस वेस्टर ने बताया कि हम आने वाले 100 सालों में हिमालय के ग्लेशियर खो देंगे। 3500 किलोमीटर में फैला हिमालय 8 देशों को कवर करता है। हिमालय की 200 ग्लेशियर झीलें खतरे में बताई गई हैं। पर्यावरणविद पैन पीयरसन के मुताबिक जब एक बार ग्लेशियर की बर्फ पिघलने लगती है तो उसे वापस जमा पानी मुश्किल होता है। इसलिए ये जरूरी है कि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में ग्लेशियर पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 240 मिलियन लोगों के साथ-साथ नदी घाटियों में अन्य 1.65 बिलियन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं।

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नेपाल स्थित ICIMOD, एक अंतर-सरकारी संगठन, जिसमें सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार और पाकिस्तान भी शामिल हैं, ने कहा कि वर्तमान उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र के आधार पर, ग्लेशियर सदी के अंत तक अपनी वर्तमान मात्रा का 80 % तक खो सकते हैं। ग्लेशियर दुनिया की 10 सबसे महत्वपूर्ण नदी प्रणालियों की जल आपूर्ति करता है जिनमें गंगा, सिंधु, येलो, मेकांग और इरावदी शामिल हैं, और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अरबों लोगों को भोजन, ऊर्जा, स्वच्छ हवा और आय की आपूर्ति करते हैं। हिमालयी ग्लेशियर पहले से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं।

हिमालयी ग्लेशियर पिघलने के कारण समुदायों को अप्रत्याशित और महंगी आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इन ग्लेशियर में गिरावट उनकी स्थिति और तापमान में होती वृद्धि पर निर्भर करता है। जैसा की अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान में होती वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस को पार कर सकती है। ऐसे में हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर जिनमें नेपाल और भूटान के हिस्से शामिल हैं वो अपनी 75 फीसदी बर्फ खो सकते हैं। वहीं यदि तापमान में होती वृद्धि यदि चार डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है तो इनमें 80 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।ये लेखक के अपने विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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