फिर उत्तराखंड युवाओं (Uttarakhand youth) को बेहतर मंच तक पहुंचाना और उन्हें तैयार करना प्राथमिकता क्यों नहीं?
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
नवंबर 2000 में तीन नये राज्यों का गठन हुआ था। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड। उत्तराखंड नौ नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर भारत का 27वां राज्य बना था। उत्तरप्रदेश तब भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड यानि बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त सदस्य था और इसलिए उत्तराखंड को मान्यता नहीं दी गयी। यही स्थिति एक नवंबर 2000 को अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ की थी जो मध्यप्रदेश से अलग हुआ था। झारखंड का मामला भिन्न था। जब झारखंड राज्य बना था तब बीसीसीआई अध्यक्ष एसी मुथैया ने बिहार क्रिकेट संघ को मान्यता दी थी लेकिन इसके कुछ महीने बाद जगमोहन डालमिया बोर्ड अध्यक्ष बन गये और उन्होंने बिहार की मान्यता समाप्त करके झारखंड राज्य क्रिकेट संघ को बीसीसीआई का सदस्य बना दिया। झारखंड की टीम नवंबर 2004से रणजी ट्राफी में भी खेल रही है। छत्तीसगढ़ भी एसोसिएट सदस्य बन गया और 2016 में उसे पूर्ण सदस्य की मान्यता मिल गयी।
छत्तीसगढ़ की टीम इस साल से रणजी ट्राफी में भी खेल रही है। अब 15 दिन के अंदर अस्तित्व में आने वाले तीन राज्यों में से केवल उत्तराखंड ही बच गया है जिसे कि बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिली है। उत्तराखंड की तरफ से प्रयास भी किये गये लेकिन इस पहाड़ी राज्य से एक नहीं पांच संघ थे उत्तराखंड क्रिकेट संघ, यूनाईटेड क्रिकेट संघ, अभिमन्यु क्रिकेट संघ, उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तरांचल। हर कोई चाहता था कि उसके संघ को मान्यता मिले। कई संघ होने के कारण बीसीसीआई ने भी दिलचस्पी नहीं दिखायी और उत्तराखंड क्रिकेट की स्थिति बिहार जैसी हो गयी। बिहार में भी तीन क्रिकेट संस्थाओं में आपस में धींगामुश्ती चल रही है।
बीसीसीआई से मान्यता हासिल करने की खातिर जनवरी 2015 में उत्तराखंड क्रिकेट संघ, अभिमन्यु क्रिकेट संघ और यूनाईटेड क्रिकेट संघ ने एक मंच पर आने का फैसला किया। इस बैठक में उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तरांचल (उत्तराखंड) ने हिस्सा नहीं लिया। बीसीसीआई ने बिहार और उत्तराखंड को मान्यता देने के लिये अगस्त 2015 में एक तदर्थ समिति बनायी। पंजाब क्रिकेट संघ के एम पी पांडोव उत्तराखंड के लिये बने पैनल के अध्यक्ष थे। उत्तराखंड में इसके बाद भी उत्तराखंड क्रिकेट संघ यानि यूसीए और क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड में आपस में ठनी रही और राज्य के क्रिकेटरों को दूसरे राज्यों विशेषकर दिल्ली से खेलने के लिये मजबूर होना पड़ा। उच्चतम न्यायालय के कड़े रूख और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिये बीसीसीआई पर हर तरह से दबाव बनाने के बाद अब उत्तराखंड को मान्यता मिलने की उम्मीद फिर से बन गयी है।
लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार प्रत्येक राज्य को बीसीसीआई में एक मत का अधिकार होना चाहिए। ऐसे में उत्तराखंड का दावा
मजबूत बनता है। अभी तक महाराष्ट्र और गुजरात में तीन तीन क्रिकेट संघ हैं और वहां के खिलाड़ियों को न सिर्फ रणजी बल्कि अच्छे प्रदर्शन के दम पर राष्ट्रीय टीम में भी जगह बनाने का भरपूर मौका मिलता है। पूर्वोत्तर के राज्यों का क्रिकेट से ज्यादा लगाव नहीं है लेकिन उत्तराखंड और बिहार के खिलाड़ी दूसरे राज्यों से खेलने के लिये मजबूर हैं। उत्तराखंड के क्रिकेटरों ने राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी छाप छोड़ी है। महेंद्र सिंह धोनी के नाम से भले ही कौन परिचित नही होगा। वह कुमांऊ के रहने वाले हैं लेकिन उनकी परवरिश झारखंड में हुई। वह पहले बिहार और फिर झारखंड की तरफ से खेले। वह खुद को झारखंड का ही मानते थे। भारतीय टीम में शामिल एक अन्य खिलाड़ी मनीष पांडे कर्नाटक की तरफ से खेलते हैं लेकिन उनका जन्म नैनीताल में हुआ और बचपन भी यहीं बीता था।
दिल्ली की रणजी टीम में उत्तराखंड के कई खिलाड़ी खेलते रहे हैं। एक समय में एन एस नेगी और कुलदीप रावत दिल्ली का टीम का हिस्सा थे। दिल्ली की वर्तमान टीम में खेलने वाले उन्मुक्त चंद, रिषभ पंत, पवन सुयाल और पवन नेगी सभी उत्तराखंड से संबंध रखते हैं। उन्मुक्त ने वर्तमान रणजी सत्र के पहले दो मैचों में दिल्ली टीम की कप्तानी भी की थी। रिषभ बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाज हैं और इस 18 वर्षीय खिलाड़ी को भारतीय क्रिकेट का अगला उभरता सितारा माना जा रहा है। महाराष्ट्र के खिलाफ उन्होंने तिहरा शतक भी जमाया था। वह उस भारत अंडर 19 टीम के भी सदस्य थे जो जूनियर विश्व कप में खेली थी। पवन सुयाल बहुत अच्छे तेज गेंदबाज हैं तथा आईपीएल में मुंबई इंडियन्स की तरफ से खेलते हैं। पवन नेगी बायें हाथ का स्पिनर होने के साथ निचले क्रम के अच्छे बल्लेबाज भी है। वह भारत की तरफ से एक टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच भी खेल चुके हैं। नेगी आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली डेयरडेविल्स की तरफ से खेलते रहे हैं।
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जम्मू कश्मीर के विकेटकीपर बल्लेबाज पुनीत बिष्ट भी उत्तराखंड के हैं।वह पहले दिल्ली की तरफ से खेलते थे लेकिन इस सत्र में जम्मू कश्मीर की तरफ से खेल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश की टीम में रोबिन बिष्ट हैं जो पहले राजस्थान की तरफ से खेलते थे। उन्होंने 2011-12 सत्र में रणजी ट्राफी में सर्वाधिक रन बनाये थे और तब महान सुनील गावस्कर ने भी उनकी तारीफ की थी। रोबिन उत्तराखंड के रहने वाले हैं। उनके छोटे भाई चेतन बिष्ट अब भी राजस्थान के विकेटकीपर बल्लेबाज हैं। राजस्थान की रणजी टीम में ही युवा बल्लेबाज सिद्धांत डोभाल शामिल हैं।
सिद्धांत के पिता संजय डोभाल दिल्ली के नामी कोच हैं और द्वारका में अपनी क्रिकेट अकादमी भी चलाते हैं। राजस्थान की टीम में ही कभी नवीन नेगी विकेटकीपर बल्लेबाज हुआ करते थे। उत्तरप्रदेश से दिग्विजय सिंह रावत ने छह प्रथम श्रेणी मैच खेले थे। वे भी उत्तराखंड के हैं।
उत्तराखंड के कई युवा क्रिकेटर भी विभिन्न राज्यों की जूनियर टीमों में खेल रहे हैं। इनमें दिल्ली की टीम के सदस्य अनुज रावत और मयंक रावत प्रमुख हैं। पंजाब के पूर्व तेज गेंदबाज अमित उनियाल पौड़ी जिले के सांगुड़ा गांव के रहने वाले हैं। वह पंजाब की तरफ से 28 रणजी मैच खेलने के अलावा राजस्थान रायल्स के लिये आईपीएल में भी खेले थे। अमित अब चंडीगढ़ में कोचिंग अकादमी चलाते हैं। पिछले दिनों भारतीय टीम में जगह बनाने वाले तेज गेंदबाज बरिंदर सरां उन्हीं के शिष्य हैं। आखिरकार 19 साल के इंतजार के बाद उत्तराखंड का सपना पूरा हो ही गया। उत्तराखंड को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) की पूर्ण मान्यता मिल गई है। इसी के साथ ‘१३ अगस्त 2019’ उत्तराखंड क्रिकेट के सुनहरे पन्नों में भी दर्ज हो गया।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से चयनित प्रशासकों की समिति (सीओए) ने मंगलवार को क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड(सीएयू) को बीसीसीआइ से पूर्ण मान्यता दे दी। अब खिलाड़ियों के साथ-साथ राज्य का नाम भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकता नजर आएगा। बीसीसीआइ के इस निर्णय से राज्य का हर क्रिकेट खिलाड़ी गदगद है। हालांकि, अब मान्यता मिलने से राज्य के खिलाड़ियों के पलायन पर पूर्ण विराम लगेगा। क्योंकि पिछले 19 सालों में उत्तराखंड ने महेंद्र सिंह धोनी, मनीष पांडे, ऋषभ पंत, उनमुक्त चंद समेत अन्य उदीयमान प्रतिभाएं मान्यता न होने के चलते खोई हैं। एसोसिएशन के सदस्य होने के नाते, हम सभी से व्यक्तिगत आचरण के उच्च मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है ताकि संस्था की प्रतिष्ठा, छवि और सद्भावना संरक्षित रहे। लेकिन सचिव का दोहराव वाला आचरण किसी सदस्य के निर्धारित दायित्वों और कर्तव्यों के साथ अत्यधिक असंगत है। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड द्वारा शुरू की जा रही स्कॉलरशिप योजना में खिलाड़ियों को हर माह 10 हजार रुपये दिए जाएंगे, जबकि अनुबंधित खिलाड़ियों को मिलने वाली धनराशि पर शीर्ष परिषद की अगली बैठक में निर्णय किया
जाएगा। ऐसा करने वाला बीसीसीआइ से संबद्ध यह पहला राज्य संघ है, जिसने खिलाड़ियों को अनुबंध में शामिल किया है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )